Donald Trump : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले दिन चीन पर टैरिफ लगाने से परहेज किया। वाशिंगटन ने इस बात की जांच का आदेश दिया कि क्या चीन ने ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान हुए व्यापार समझौते का पालन किया या नहीं। यह कदम आक्रामक टैरिफ के साथ चीन को टारगेट करने के उनकी पिछली बयानबाजी में बदलाव का संकेत है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप प्रशासन अमेरिकी औद्योगिक आधार को मजबूत करने के मकसद से दूसरे देशों की कथित गलत व्यापार प्रथाओं और मुद्रा हेरफेर के खिलाफ काम करने की योजना बना रहा है। सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने चीन पर लगाए जाने वाले संभावित टैरिफ पर चर्चा की, लेकिन कोई स्पष्ट समयसीमा नहीं बताई। हालांकि उन्होंने कहा कि मैक्सिकन और कनाडाई वस्तुओं के खिलाफ टैरिफ 1 फरवरी से लागू हो सकते हैं। बता दें ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान (Election Campaign) के दौरान चीनी वस्तुओं पर 60 फीसदी शुल्क सहित महत्वपूर्ण टैरिफ वृद्धि का वादा किया था। ट्रंप ने ब्रिक्स ब्लॉक के देशों को भी चेतावनी दी, जिसमें भारत भी शामिल है, कि उन्हें उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। नए टैरिफ लगाने में इस देरी को नई अमेरिकी प्रशासन का अधिक व्यवहारिक नजरिया माना जा रहा है।
रिपोर्ट्स से पता चलता है कि ट्रंप (Trump) तत्काल दंडात्मक कार्रवाई के बजाय बातचीत की ओर बढ़ रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ व्यापार मामलों पर बातचीत करने में रुचि रखते हैं, संभवतः वह अपने पहले कार्यकाल के दौरान किए गए सौदे के पहलुओं पर चर्चा करना चाहते हैं। भारत, जो अपनी संरक्षणवादी व्यापार नीतियों के लिए जाना जाता है, को ट्रंप ने अतीत में विशेष रूप से उसके उच्च आयात शुल्कों के लिए निशाना बनाया। उन्होंने ब्राजील के साथ-साथ भारत की भी आलोचना की, अमेरिकी वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाने का दोषी ठहराया। यह पहली बार नहीं है जब भारत अमेरिकी व्यापार नीति के निशाने पर है। ट्रंप ने पहले हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिल जैसे उत्पादों पर उच्च आयात शुल्क (High Import Duty) के लिए भारत को ‘टैरिफ किंग’ करार दिया था। भारत ने कुछ टैरिफ कम किए लेकिन ट्रंप असंतुष्ट रहे, उन्होंने कहा, ‘भारत बहुत अधिक शुल्क लेता है। वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच व्यापार तनाव 2019 में चरम पर पहुंच गया, जब भारत ने अमेरिकी उत्पादों पर अपने स्वयं के टैरिफ लगाकर स्टील और एल्यूमीनियम पर अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की।
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इसके जवाब में, अमेरिका ने सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) के तहत भारत के तरजीही ट्रेड ट्रीटमेंट को वापस ले लिया, जिससे भारतीय निर्यात प्रभावित हुआ। वर्तमान में, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार दोनों अर्थव्यवस्थाओं का एक प्रमुख पहलू है। 2023-24 में, भारत ने अमेरिका को 77.52 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया, जिससे यह देश का सबसे बड़ा निर्यात बाजार बन गया। दूसरी तरफ, भारत अमेरिका से 42.2 बिलियन डॉलर का सामान आयात करता है। अगर इस व्यापार प्रवाह में कोई रुकावट आती है तो आईटी, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स जैसे प्रमुख क्षेत्रों गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत को ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में जोखिम और संभावित लाभ दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
यदि अमेरिका अधिक संरक्षणवादी रुख अपनाता है, तो भारत पर अपने व्यापार अवरोधों को कम करने का दबाव हो सकता है। एक तरफ, भारतीय उत्पादों पर उच्च अमेरिकी टैरिफ उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को कम कर सकते हैं। वहीं अगर ट्रंप चीन पर टैरिफ बढ़ाते हैं, तो भारतीय निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार (American Market) में अंतराल को भरने का अवसर भी है। पिछले व्यापार युद्ध के दौरान, भारतीय निर्यातकों को बढ़ी हुई मांग से लाभ हुआ था क्योंकि अमेरिकी कंपनियों ने चीनी प्रोडक्ट्स के विकल्प तलाशे। भारत और अमेरिका के बीच मजबूत भू-राजनीतिक संबंध व्यापार विवादों से उत्पन्न कुछ चुनौतियों को कम करने में मदद कर सकते हैं, साथ ही चीन के प्रभाव पर साझा चिंताएं व्यापार तनाव को घटा सकती है।