नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है। सर्वोच्च अदालत ने सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई की और तीन हफ्ते में जवाब देने को कहा। हालांकि अदालत ने इस कानून के अमल पर रोक लगाने की मांग नहीं मानी। supreme court issues notice
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याचिकाकर्ताओं के वकील चाहते थे कि सर्वोच्च अदालत कानून के अमल पर रोक लगा दे क्योंकि अगर इसके तहत किसी को नागरिकता दी जाती है तो उसे फिर वापस नहीं लिया जा सकता है। लेकिन अदालत ने रोक नहीं लगाई।
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गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून चार साल पहले पास हुआ था पिछले दिनों केंद्र सरकार ने इसके नियमों की अधिसूचना जारी करते हुए इसे लागू कर दिया। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 237 याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें से 20 में इस कानून के अमल पर रोक लगाने की मांग की गई है। अदालत ने मंगलवार को इन याचिकाओं पर सुनवाई की। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय मांगा। लेकिन अदालत ने उन्हें तीन हफ्ते का समय दिया है।
सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि यह कानून किसी की भी नागरिकता नहीं छीन रहा है, बल्कि इसके जरिए 2014 से पहले देश में आए लोगों को ही नागरिकता दी जा रही है। उसके बाद आए किसी नए शरणार्थी को नहीं। याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि केंद्र के जवाब देने तक नई नागरिकता नहीं दी जाए। उन्होंने कहा- ऐसा कुछ होता है तो हम फिर कोर्ट आएंगे। इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि हम यही हैं।
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इसके बाद अदालत ने केंद्र सरकार को कानून पर रोक लगाने के मामले में जवाब देने के लिए दो अप्रैल तक का समय दिया। अदालत ने कहा- उस पर आठ अप्रैल तक हलफनामा फाइल कर सकते हैं। इस तरह हम नौ अप्रैल को सुनवाई से पहले जरूरी बातों को सुन लेंगे। साथ ही यह भी कहा गया कि असम और त्रिपुरा से जुड़ी याचिकाओं में अलग नोटिस दिया जाए।
गौरतलब है कि केंद्र ने सीएए लागू होने की अधिसूचना 11 मार्च को जारी की थी। इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी।
इस कानून के खिलाफ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, असम कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद, डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया सहित कई संगठनों और व्यक्तियों ने याचिका लगाई है।
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सरकार ने दिसंबर 2019 में संसद से इस कानून को पास कराया था और जनवरी में कानून की अधिसूचना जारी हो गई थी। लेकिन इसे लागू करने के लिए नियम अधिसूचित नहीं किए गए थे। इसलिए चार साल से ज्यादा समय से यह कानून लागू नहीं हो पाया था।