नई दिल्ली। संविधान दिवस के मौके पर रविवार को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने देश के आम लोगों को नसीहत देते हुए कहा कि वे अदालत का दरवाजा खटखटाने से डरे नहीं। उन्होंने कहा कि अदालतें आम लोगों के लिए ही हैं। हालांकि साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि लोग अपनी हर समस्या के समाधान के लिए अदालत को ही आखिरी विकल्प के तौर पर नहीं देखें। इस बीच रविवार को संविधान दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट के परिसर में डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा का राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनावरण किया।
चीफ जस्टिस ने संविधान दिवस के मौके पर रविवार को एक कार्यक्रम में कहा- सुप्रीम कोर्ट ने जनता की अदालत के रूप में काम किया है, इसलिए जनता को अदालतों में जाने से डरना नहीं चाहिए। न ही इसे आखिरी विकल्प के रूप में नहीं देखना चाहिए। देश की हर अदालत में आने वाला हर केस संवैधानिक शासन का ही विस्तार है। संविधान दिवस के मौके पर आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उद्घाटन भाषण दिया। कार्यक्रम में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी मौजूद रहे।
अपने भाषण में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतें अब अपनी कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग कर रही हैं और यह फैसला इसलिए लिया गया ताकि लोगों को पता चले कि कोर्ट के बंद कमरों के अंदर क्या हो रहा है। उन्होंने कहा कि कोर्ट की वर्किंग की मीडिया रिपोर्टिंग अदालती कामकाज में जनता की भागीदारी को भी बताती है। चीफ जस्टिस ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन की मदद से अपने फैसलों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने का फैसला भी किया है।
चीफ जस्टिस ने कहा- पिछले सात दशकों में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने लोगों की अदालत के रूप में काम किया है। हजारों नागरिकों ने इस विश्वास के साथ इसके दरवाजे खटखटाए हैं कि उन्हें यहां से न्याय मिलेगा। कई केस तो ऐसे होते हैं, जिनमें लोग अपनी निजी स्वतंतत्रा की सुरक्षा, गैरकानूनी गिरफ्तारियों के खिलाफ जवाबदेही, बंधुआ मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा, आदिवासी अपनी मातृभूमि की सुरक्षा, हाथ से मैला ढोने जैसी सामाजिक बुराइयों की रोकथाम और यहां तक कि साफ हवा पाने के लिए कोर्ट के दखल की उम्मीद के लिए अदालत में आते हैं। उन्होंने कहा- भारत का सुप्रीम कोर्ट शायद दुनिया की एकमात्र अदालत है जहां कोई भी नागरिक चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखकर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक मशीनरी को गति दे सकता है।