नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में संपत्ति के पुनर्वितरण को लेकर चल रही बहस और कांग्रेस पर हो रहे हमलों के बीच निजी संपत्ति पर व्यक्ति के अधिकार और सरकार द्वारा उस पर कब्जा करने के कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर ली है। संविधान के नीति निर्देशक तत्वों से जुड़े अनुच्छेद 39 (बी) को लेकर संविधान पीठ की नौ जजों की बेंच ने सुनवाई की, जिसकी अध्यक्ष चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे। सुनवाई पूरी करने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
संविधान पीठ ने इससे जुड़ी 16 याचिकाओं पर सुनवाई की है। इनमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन की ओर से दायर मुख्य याचिका भी शामिल है। एसोसिएशन ने महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डिवेलपमेंट एक्ट यानी म्हाडा कानून के अध्याय आठ-ए का विरोध किया है। 1986 में जोड़ा गया यह अध्याय राज्य सरकार को पुरानी व कमजोर इमारतों और उसकी जमीन को अधिग्रहित करने का अधिकार देता है बशर्ते उसके 70 फीसदी मालिक ऐसा अनुरोध करें। इस संशोधन को प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन की ओर से चुनौती दी गई है।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि म्हाडा कानून संविधान के अनुच्छेद 31 सी द्वारा संरक्षित हैं, जिसे कुछ नीति निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाले कानूनों की रक्षा के इरादे से 1971 के 25 वें संशोधन कानून द्वारा डाला गया था। प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन और अन्य ने म्हाडा कानून के अध्याय आठ-ए को चुनौती देते हुए दावा किया है कि अध्याय के प्रावधान मालिकों के खिलाफ भेदभाव करते हैं और उन्हें बेदखल करने का प्रयास करते हैं।
यह याचिका 1992 में दायर की गई थी और 20 फरवरी, 2002 को नौ जजों की बेंच को भेजे जाने से पहले इसे तीन बार पांच और सात जजों की बड़ी बेंच के पास भेजा गया था। गौरतलब है कि मुंबई में करीब 13 हजार अधिग्रहित इमारतें हैं जिनके रखरखाव या फिर से बनाने की जरूरत है। हालांकि, किरायेदारों के बीच या डेवलपर नियुक्त करने पर मालिकों और किरायेदारों के बीच मतभेद के कारण इस काम में अक्सर देरी होती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नजीर बनेगा। इस मामले में यह सवाल अहम है कि क्या निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति मान कर सरकार उस पर कब्जा कर सकती है?