नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी ने देश के सारे चुनाव एक साथ कराने के विचार को खारिज कर दिया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी ने एक राष्ट्र, एक चुनाव का विरोध करते हुए कहा है कि देश में लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के जरूरी है कि इस विचार को त्याग दिया जाए। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक राष्ट्र, एक चुनाव पर पर विचार के लिए बनाई गई पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति को चिट्ठी लिख कर कांग्रेस का पक्ष बताया है।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी चिट्ठी में कहा है कि संसदीय शासन व्यवस्था को अपनाने वाले देश में एक साथ चुनाव की अवधारणा के लिए कोई स्थान नहीं है और उनकी पार्टी एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार का पुरजोर विरोध करती है। रामनाथ कोविंद कमेटी के सचिव नीतेन चंद्र को भेजे पत्र में खड़गे ने यह भी कहा है कि एक साथ चुनाव कराने का विचार संविधान की मूल संरचना के विरुद्ध है और यदि एक साथ चुनाव की व्यवस्था लागू करनी है तो संविधान की मूल संरचना में पर्याप्त बदलाव की आवश्यकता होगी।
गौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में सितंबर में एक कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी ने पिछले साल 18 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र लिखा था। कांग्रेस अध्यक्ष ने 17 बिंदुओं में अपने सुझाव कमेटी समिति के पास भेजे हैं। खड़गे ने अपने पत्र में लिखा है- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार का कड़ा विरोध करती है। एक संपन्न और मजबूत लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि इस पूरे विचार को त्याग दिया जाए।
खड़गे ने लिखा है- एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर जो उच्चस्तरीय कमेटी बनाई गई है, वह पक्षपाती है। क्योंकि इसमें विपक्षी दलों का कोई प्रतिनिधि नहीं है। एक साथ चुनाव को लेकर सरकार ने पहले ही अपने विचार व्यक्त कर दिए हैं। वह देश में ऐसे ही चुनाव करवाना चाहती है। ऐसे में इसको लेकर कमेटी बनाना सिर्फ दिखावा है। खड़गे ने आगे लिखा है- कमेटी के प्रमुख पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं। साल 2018 में संसद में उन्होंने कहा था कि बार बार चुनाव करवाने से विकास के काम रुक जाते हैं। कांग्रेस बताना चाहती है कि विकास इसलिए नहीं हो पा रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी काम करने की बजाय चुनाव ही करते रहते हैं।
इस विचार का विरोध करते हुए खड़गे ने लिखा है- कमेटी का तर्क है कि अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो खर्चा बचेगा। यह बिल्कुल बेबुनियाद है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 3,870 करोड़ रुपए का खर्च हुआ था, जिसके बारे में कमेटी का दावा है कि यह काफी ज्यादा है। इससे ठीक उल्ट भाजपा को 2016-2022 के दौरान 10,122 करोड़ रुपए का चंदा मिला, जिसमें से 5271.97 करोड़ रुपए के बेनामी बॉन्ड हैं। अगर कमेटी और सरकार सच में चुनाव के खर्च पर गंभीर है तो इलेक्टोरल बॉन्ड की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए। उन्होंने इस आधार पर भी विरोध किया है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए कई विधानसभाओं को भंग करने की जरुरत होगी, जो अभी भी अपने कार्यकाल के आधे या उससे कम समय पर हैं। यह उन राज्यों के मतदाताओं के साथ धोखा होगा।