नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। सर्वोचच अदालत ने कहा है कि बिना रस्म के हिंदू विवाह वैध नहीं है। अदालत ने कहा है कि हिंदू विवाह कोई नाचने-गाने या खाने-पीने का मौका भर नहीं है और न यह कोई व्यापारिक लेन-देन है। जब तक इसमें रस्में नहीं निभाई जातीं, तब तक इसे हिंदू मैरिज एक्ट के तहत वैध नहीं माना जा सकता है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार और एक धार्मिक उत्सव है, जिसे भारतीय समाज के अहम संस्थान का दर्जा दिया जाना जरूरी है।
अदालत ने दो कॉमर्शियल पायलट्स के तलाक के मामले की सुनवाई के दौरान यह बात कही। इन दोनों ने वैध हिंदू विवाह समारोह नहीं किया था। इन टिप्पणियों के साथ बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए कहा कि दोनों पायलट्स कानून के मुताबिक शादीशुदा नहीं हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने उनके मैरिज सर्टिफिकेट को रद्द करार दे दिया। कोर्ट ने उनके तलाक की प्रक्रिया और पति व उसके परिवार पर लगाया गया दहेज का केस भी खारिज कर दिया।
अदालत ने कहा कि शादी कोई नाचने-गाने और खाने-पीने का इवेंट नहीं है। न यह कोई ऐसा मौका है जहां आप एक-दूसरे पर दबाव डालकर दहेज और तोहफों का लेन-देन करें, जिससे बाद में केस होने की संभावना रहे। अदालत ने कहा- विवाह कोई व्यापारिक लेन-देन नहीं है। हम युवा पुरुष और महिलाओं से कहना चाहते हैं कि शादी के बंधन में बंधने के पहले विवाह संस्थान के बारे में अच्छे से सोच लें और ये समझने की कोशिश करें कि ये संस्थान भारतीय समाज के लिए कितना पवित्र है।