नई दिल्ली। तमिलनाडु में राज्य सरकार के गिरफ्तार मंत्री सेंथिल बालाजी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी की बरखास्तगी के मामले पर शुक्रवार को सुनवाई की और कहा कि राज्यपाल बिना मुख्यमंत्री की सिफारिश के मंत्री को बरखास्त नहीं कर सकता। सर्वोच्च अदालत ने कहा है- हम इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले से सहमत हैं। अनुच्छेद 136 के तहत इस फैसले में किसी भी दखल की जरूरत नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सेंथिल बालाजी को जमानत नहीं दी।
इसके साथ ही जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें बालाजी को मंत्री पद से हटाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। इससे पहले चेन्नई के सामाजिक कार्यकर्ता एमएल रवि ने मद्रास हाई कोर्ट में यह याचिका दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। तब कोर्ट ने कहा था- मुख्यमंत्री यह तय कर सकते हैं कि मंत्री बालाजी को राज्य मंत्रिमंडल में रखा जाना चाहिए या नहीं। हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती दी गई थी।
गौरतलब है कि वी सेंथिल बालाजी साल 2011 और 2015 के बीच अन्ना डीएमके के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार में परिवहन मंत्री थे। आरोप है कि अपने कार्यकाल के दौरान वे नौकरी के बदले नकदी घोटाले में शामिल थे। बाद में वे डीएमके में शामिल हो गए और 2021 में मंत्री बने। तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी को 14 जून को ईडी ने धन शोधन मामले में गिरफ्तार किया था। इसके बाद राज्यपाल आरएन रवि ने 29 जून 2023 को जेल में बंद वी सेंथिल बालाजी को तत्काल प्रभाव से मंत्रिपरिषद से बरखास्त कर दिया था। उन्होंने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से कोई सलाह मशविरा नहीं किया था। तब स्टालिन ने कहा था- हम राज्यपाल के फैसले को कोर्ट में चुनौती देंगे। राज्यपाल को मंत्री को बरखास्त करने का अधिकार नहीं है।