नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से एक दिन पहले गुरुवार को इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम और वीवीपैट मशीन को लेकर पांच घंटे की सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने ईवीएम के वोट और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीपीपैट मशीन से निकलने वाली पर्चियों के सौ फीसदी मिलान की मांग को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई की। अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा कि मतदाताओं को वीवीपैट की पर्ची देने में क्या दिक्कत है?
दोनों जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर समेत अन्य वकीलों और चुनाव आयोग की पांच घंटे दलीलें सुनी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रशांत भूषण, गोपाल शंकरनारायण और संजय हेगड़े ने पैरवी की। प्रशांत भूषण एडीआर की तरफ से पेश हुए। वहीं, चुनाव आयोग की ओर से एडवोकेट मनिंदर सिंह और केंद्र सरकार की ओर सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता मौजूद थे।
प्रशांत भूषण ने अदालत के सामने एक रिपोर्ट पेश की। इसमें आरोप था कि केरल में मॉक पोलिंग के दौरान कोई भी बटन दबाने पर भाजपा को वोट जा रहे थे। अदालत ने इस बारे में चुनाव आयोग से पूछा तो आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने इसे गलत और बेबुनियाद बताया। इसके बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि क्या वोटिंग के बाद मतदाताओं को वीवीपैट से निकली पर्ची नहीं दी जा सकती है? इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाताओं को वीवीपैट की पर्ची देने में बहुत बड़ा जोखिम है।
चुनाव आयोग ने कहा- इससे वोट की गोपनीयता से समझौता होगा और बूथ के बाहर इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल दूसरे लोग कैसे कर सकते हैं, हम नहीं कह सकते। चुनाव आयोग ने अदालत को यह भी बताया कि ईवीएम बनाने वाली कंपनी को पता नहीं होता है कि ईवीएम पर कौन का बटन किस पार्टी के लिए आवंटित होगा। अदालत ने गुरुवार की सुनवाई में ईवीएम और वीवीपैट के काम करने का पूरा तरीका समझा और साथ ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी ली।
अदालत ने यह भी कहा कि चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता कायम रहनी चाहिए। शक नहीं होना चाहिए कि ये होना चाहिए था और हुआ नहीं। इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, 21 विपक्षी दलों के नेताओं ने कम से कम 50 फीसदी वीवीपैट मशीनों की पर्चियों से ईवीएम के वोटों के मिलान की मांग की थी। उस समय, चुनाव आयोग हर क्षेत्र में सिर्फ एक ईवीएम के वोट का वीवीपैट मशीन से मिलान करता था। आठ अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने यह संख्या बढ़ा कर पांच कर दी थी। उसके बाद से इसे बढ़ाने की कई बार मांग हुई है लेकिन अदालत ने हर बार इनकार किया है।