नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालत के फैसलों को लेकर विधायिका की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि अदालत का फैसला खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि विधायिका किसी फैसले में कमी को दूर करने के लिए नया नियम बना सकती है। शनिवार को राजधानी दिल्ली में एक मीडिया हाउस ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के लीडरशीप सम्मेलन में चीफ जस्टिस ने कोर्ट और कानून से जुड़े मुद्दों पर अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा कि जज जब किसी मामले में फैसला देते हैं तो वो ये नहीं सोचते कि समाज और लोग कैसी प्रतिक्रिया देंगे। एक चुनी हुई सरकार और न्यायपालिका में यही अंतर होता है। चीफ जस्टिस ने न्यायिक व्यवस्था में महिलाओं को समान मौके और प्रवेश के स्तर पर मूलभूत दिक्कतें होने की बात कही। उन्होंने कहा- हमें योग्यता को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। यदि सभी को समान अवसर मिलेंगे तो और भी महिलाएं न्यायपालिका में आएंगी। ज्यादातर परीक्षाएं अंग्रेजी और शहर केंद्रित होती हैं।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने भाषण में कहा- विधायिका यह नहीं कह सकती कि हमें लगता है कि फैसला गलत है और इसलिए हम इसे खारिज करते हैं। किसी कोर्ट के फैसले को विधायिका द्वारा सीधे तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने आगे कहा- मामलों में फैसला देते वक्त जज संविधान की नैतिकता से निर्देशित होते हैं, ना कि सार्वजनिक नैतिकता से। सच तो ये है कि जज चुने नहीं जाते। वे हमारी मजबूती होते हैं। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- सुप्रीम कोर्ट भारत के लोगों की अदालत है। इसका उद्देश्य लोगों की शिकायतों को समझना है। भारत का सुप्रीम कोर्ट जो करता है, वह अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से बहुत अलग है। अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट साल में 80 केसों पर फैसला सुनाता है। हमने अभी तक इस साल 72 हजार केस निपटाए हैं, अभी दो महीने बाकी हैं।