नई दिल्ली। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की नई व्यवस्था वाला विधेयक राज्यसभा से पास हो गया। विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया। विपक्ष के सांसदों के वॉकआउट के बाद राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त, अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों, सेवा शर्तों को विनियमित करने वाला विधेयक ध्वनिमत से पास हो गया। विपक्ष ने इसके विरोध में कहा था कि यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए लाया गया है। इसके बाद सभी विपक्षी सांसद सदन वॉकआउट कर गए। विधेयक पास होने के बाद सदन बुधवार सुबह तक के लिए स्थगित कर दी गई।
इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने यह बिल पेश किया था। इसे चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कामकाज का संचालन) कानून, 1991 की जगह लाया गया है। बिल को पारित करवाने के दौरान मेघवाल ने कहा कि नया कानून जरूरी हो गया है क्योंकि पहले के कानून में कुछ कमजोरियां थीं। उन्होंने विपक्ष के आरोपों को भी खारिज कर दिया कि यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए लाया गया है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में एक आदेश दिया था, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता वाला एक पैनल बनाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक संसद इनकी नियुक्ति के लिए कोई कानून नहीं बना देती है तब तक यह कमेटी ही चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए सरकार नया कानून ले आई है, जिसमें देश के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करने वाले पैनल में से चीफ जस्टिस को हटा कर उनकी जगह एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रावधान किया गया है। हालांकि सरकार ने विपक्ष और कुछ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों की आपत्तियों के बाद इसमें कुछ संशोधन किए हैं। बहरहाल, इसमें एक प्रावधान यह किया गया है कि कोई भी मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त अपनी ड्यूटी के दौरान अगर कोई कार्रवाई निष्पादित करते है तो उनके खिलाफ कोर्ट में कोई भी कार्रवाई नहीं हो सकती है।