नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाने से सोमवार को इनकार कर दिया, जिसके तहत बिहार में दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी करने वाले संशोधित आरक्षण कानूनों को रद्द कर दिया गया था।
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की ओर से दायर 10 याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गई।
शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर नोटिस भी जारी नहीं किया। उसने याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए कहा कि इन्हें सितंबर में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया जाएगा। राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ से उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया। दीवान ने छत्तीसगढ़ के ऐसे ही एक मामले का जिक्र किया और कहा कि शीर्ष अदालत ने उस मामले में उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा, दीवान ने उन प्रतिवादियों को नोटिस जारी करने का भी अनुरोध किया, जिन्होंने आरक्षण सीमा बढ़ाने के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम मामले को सूचीबद्ध करेंगे, लेकिन हम (उच्च न्यायालय के फैसले पर) कोई रोक नहीं लगाएंगे।… वर्तमान चरण में कोई अंतरिम राहत नहीं दी जाएगी।’’ पीठ ने याचिकाओं पर नोटिस भी जारी नहीं किए। इससे पहले, राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था। उच्च न्यायालय ने 20 जून के अपने फैसले में कहा था कि पिछले साल नवंबर में बिहार की द्विसदनीय विधायिका द्वारा सर्वसम्मति से पारित किए गए संशोधन संविधान में प्रदत्त ‘‘अधिकार से परे, कानून की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण और समानता के अधिकार का उल्लंघन’’ हैं।