नई दिल्ली। तिरुपति के लड्डू प्रसादम् में जानवर की चर्बी और मछली के तेल वाले घी के कथित इस्तेमाल को लेकर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बयान देने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री नायड़ी को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि उन्होंने बिना किसी ठोस सबूत या आधार के मीडिया में जाकर बयान दिया। उनको भगवान को राजनीति से दूर रखना चाहिए था। अदालत ने यह भी कहा कि उनका बयान देना उनके पद और जिम्मेदारी के अनुकूल नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच में सोमवार को इस मामले में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान दोनों जजों ने बारी बारी से चंद्रबाबू नायडू को फटकार लगाई। अदालत ने कहा- जब प्रसाद में पशु चर्बी होने की जांच मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एसआईटी को दी, तब उन्हें मीडिया में जाने की क्या जरूरत थी? कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखें। बेंच ने कहा- जुलाई में लैब रिपोर्ट आई। लेकिन उसमें मिलावट की बात वह स्पष्ट नहीं है। अदालत हैरानी जताते हुए कहा- मुख्यमंत्री एसआईटी जांच के आदेश देते हैं और फिर सितंबर में मीडिया के सामने बयान देते हैं। एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति मंदिर की ओर से पेश हुए वकील सिद्धार्थ लूथरा से पूछा- इस बात के क्या सबूत हैं कि लड्डू बनाने में दूषित घी का इस्तेमाल किया गया था। इस पर उन्होंने कहा कि हम जांच कर रहे हैं। इसके बाद जस्टिस गवई ने पूछा- फिर तुरंत प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? आपको धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। बेंच ने करीब एक घंटे की सुनवाई के बाद कहा कि मामले की जांच एसआईटी से ही कराएं या फिर किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से, इसके लिए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से हम सुझाव चाहते हैं। सभी याचिकाओं पर एक साथ तीन अक्टूबर को दोपहर बाद साढ़े तीन बजे सुनवाई करेंगे।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी, वाईवी सुब्बा रेड्डी, विक्रम संपत और दुष्यंत श्रीधर के अलावा सुरेश चव्हाण की चार याचिकाएं थीं। स्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील राजशेखर राव, वाईवी सुब्बा रेड्डी की ओर से सिद्धार्थ लूथरा, आंध्र प्रदेश सरकार की तरफ से मुकुल रोहतगी और केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता मौजूद थे। इन चार वरिष्ठ और अनुभवी जजों की मौजूदगी में अदालत ने राज्य सरकार, मंदिर प्रशासन और सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को फटकार लगाई। अदालत ने उनकी खिंचाई करते हुए पूछा कि किस आधार पर वे मिलावट के नतीजे पर पहुंचे। जब मुकुल रोहतगी ने लैब रिपोर्ट की बात कही तो जस्टिस केवी विश्वनाथ ने कहा- रिपोर्ट अभी साफ नही है। अगर आपने जांच के आदेश दे दिए थे, तो मीडिया में जाने की क्या आवश्यकता थी? रिपोर्ट जुलाई में आई थी और बयान सितंबर में आया। शुरुआती रिपोर्ट कहती है कि यह वह मटेरियल नहीं था, जिसे प्रसाद बनाने में इस्तेमाल किया गया।
जस्टिस गवई ने नाराजगी जताते हुए कहा- जब आप संवैधानिक पद पर बैठे होते हैं तो हम उम्मीद करते हैं कि आप ऐसे बयान नहीं देंगे। हम आपसे उम्मीद करते हैं कि आप भगवान को इससे दूर रखें। मीडिया में इतनी जल्दी बोलने की क्या जरुरत थी? इसके बाद जस्टिस विश्वनाथ ने कहा- जब तक आप निश्चित नहीं हो जाते, तब तक आप जनता के बीच ऐसे बयान कैसे दे सकते हैं? ऐसे में जांच का क्या मतलब रह जाता है। जब मंदिर प्रशासन की ओर से बताया गया कि लोगों ने स्वाद की शिकायत की थी इसलिए जांच कराई गई तो अदालत ने पूछा कि क्या लड्डू को जांच के लिए भेजा गया था? अदालत ने यह भी पूछा कि क्या घी का कोई सैंपल टेस्ट में फेल हुआ और तब उसे जांच के लिए भेजा गया? इन सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया।