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फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से प्रदूषित पानी समुद्र में छोड़े जाने लोग चिंतित

radioactive wastewater:- जापान के समुद्र तटों पर इन दिनों छुट्टी मनाने वालों का जमघट लगना शुरू हो गया है। यह समय समुद्री भोजन का लुत्फ उठाने वालों और तटों के पास व्यवसाय करने वालों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, लेकिन फुकुशिमा के लोगों के लिए आने वाला समय चिंताजनक हो सकता है।

सुनामी प्रभावित फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र से शोधित रेडियोधर्मी अपशिष्ट पानी कुछ ही सप्ताह में समुद्र में छोड़ना शुरू किया जा सकता है। हालांकि, इस विवादित योजना को लेकर अब भी जापान के बाहर और अंदर लोग विरोध कर रहे हैं। स्थानीय निवासी सबसे ज्यादा चिंतित हैं। उनका मानना है कि संयंत्र का अपशिष्ट पानी समुद्र में छोड़े जाने से 12 साल पहले जैसी आपदा का फिर से सामना करना पड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो उनके व्यवसाय और आजीविका को काफी नुकसान होगा।

संयंत्र के दक्षिण में करीब 50 किलोमीटर दूर इवाकी के उसुइसो तट पर व्यवसाय करने वाले 70 वर्षीय युकीनागा सुजुकी ने कहा, ‘‘बिना साफ समुद्र के मैं अपना जीवन यापन नहीं कर सकता।’

हालांकि, सरकार ने अब तक यह घोषणा नहीं की है कि संयंत्र का अपशिष्ट पानी कब से छोड़ा जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि अपशिष्ट पानी समुद्र में छोड़े जाने के संभावित प्रभाव सिर्फ अफवाहों तक सीमित हैं। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को हानि होगी या नहीं। वहीं, निवासियों का कहना है कि वे इस फैसले के आगे असहाय महसूस कर रहे हैं।

सुजुकी ने अधिकारियों से अनुरोध किया कि कम से कम अगस्त के मध्य तक यानी जब तक समुद्र तटों पर लोगों की भीड़ कम नहीं हो जाती, तब तक के लिए योजना को रोक दिया जाए। उन्होंने कहा, अगर आप मुझसे पूछें कि मैं पानी छोड़ने के बारे में क्या सोचता हूं, तो मैं इसके खिलाफ हूं। लेकिन मैं इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि सरकार ने एकतरफा योजना बनाकर पानी छोड़ने का मन बना लिया है। इस भीड़भाड़ वाले सीजन में पानी छोड़ना पूरी तरह अनुचित है, चाहे इसका कोई नुकसान न हो।

2011 की सुनामी में बर्बाद हुए फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में प्रदूषित पानी संग्रहीत है। जापान सरकार ने 2021 में इस पानी को समुद्र में छोड़ने की मंजूरी दी थी। सरकार का कहना है कि इस रेडियोधर्मी पानी को सौ से ज्यादा बार साफ करके सुरंग के माध्यम से प्रशांत महासागर में छोड़ने की योजना है। उनका कहना है कि यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों से भी ज्यादा सुरक्षित तरीका है। (एपी)

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