नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड (ईबी) का उपयोग कर चुनावी वित्तपोषण में कथित घोटाले की न्यायिक निगरानी में एसआईटी से जांच कराने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने 15 फरवरी को इस योजना को असंवैधानिक ठहराया था और इसे रद्द कर दिया था।
दो गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच “स्पष्ट लेन-देन” का आरोप लगाया गया है। याचिका में चुनावी बॉन्ड योजना को “घोटाला” करार दिया गया, जिसके तहत अधिकारियों को “शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के वित्तपोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, जिन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों को दान दिया था, जैसा कि चुनाव आयोग (ईसी) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को “असंवैधानिक” करार देते हुए रद्द कर दिया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड योजना “अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।” न्यायालय ने कहा था कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाई हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के बारे में जानकारी आवश्यक है।
दायर की गई याचिका में कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड घोटाले में 2जी घोटाले या कोयला घोटाले के विपरीत धन का लेन-देन होता है, जहां स्पेक्ट्रम और कोयला खनन पट्टों का आवंटन मनमाने ढंग से किया गया था, लेकिन धन के लेन-देन का कोई सबूत नहीं था। फिर भी इस अदालत ने उन दोनों मामलों में अदालत की निगरानी में जांच का आदेश दिया, विशेष सरकारी अभियोजकों को नियुक्त किया और उन मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतें बनाईं। चुनावी बॉन्ड 2018 में पेश किए गए थे और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किए गए थे।