राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

आंदोलन मैनेज हो गया?

इस बात को नहीं भुलाया जा सकता कि आरोपी को तुरंत गिरफ्तार ना कर पुलिस ने डर और आशंकाओं का वह माहौल बनने दिया, जिससे उत्पीड़ित पहलवानों का हौसला टूटा। इस रूप में न्याय की भावना के साथ एक तरह का विश्वासघात हुआ है।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन पर उतरे पहलवान सार्वजनिक रूप से भले यह कह रहे हों कि उनका संघर्ष जारी रहेगा, लेकिन जिस रूप में लगभग डेढ़ महीने तक यह आंदोलन चला, उसके आगे भी जारी रहने की संभावना न्यूनतम है। इस बात के साफ संकेत हैं कि गृह मंत्री अमित शाह इस आंदोलन को मैनेज करने में सफल हो गए हैँ। पहलवानों के साथ उनकी सहमति बन जाने के ठोस संकेत हैँ। बेशक, (कथित तौर पर) उत्पीड़ित महिला पहलवान हुई थीं, इसलिए पहलवानों को यह अधिकार है कि वे अपना हित देखें और किसी समाधान पर पहुंचने के प्रयास में शामिल हों। लेकिन गौरतलब यह है कि इस मामले में एफआईआर दर्ज हो चुकी है। उसमें एक नाबालिग पहलवान के यौन उत्पीड़न का मामला भी है, जो पॉक्सो कानून के तहत आता है। इसी एफआईआर को वापस लिए जाने या इसे बदले जाने की बात मीडिया में आई है। बहरहाल, विधि विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय न्याय व्यवस्था के तहत जघन्य अपराध एक बार दर्ज हो जाने के बाद उत्पीड़ित व्यक्ति भी उसे वापस नहीं ले सकता, लेकिन यह राज्य के खिलाफ अपराध का मामला बन जाता है।

ये दीगर बात है कि अगर उत्पीड़ित पक्ष मामले को आगे बढ़ाने में सहयोग ना करे, तो फिर केस साबित होने की संभावनाएं बेहद कम हो जाती हैं। इस बीच नौ जून को आंदोलन का प्रस्तावित कार्यक्रम स्थगित हो चुका है, तो दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस ने आरोपी बृजभूषण शरण सिंह से उनके घर जाकर पूछताछ की है। कुल संकेत यह है कि अब जो भी मामला चलेगा, वह पुलिस और कानून की दायरे में चलेगा। इस तरह जन आंदोलन से सत्ताधारी भाजपा के लिए जो असहज स्थितियां बन रही थीं, उन्हें नियंत्रित कर लिया गया है। इसके बावजूद इस बात को नहीं भुलाया जा सकता कि आरोपी को तुरंत गिरफ्तार ना कर पुलिस ने डर और आशंकाओं का वह माहौल बनने दिया, जिससे उत्पीड़ित पहलवानों का हौसला टूटा। इस रूप में न्याय की भावना के साथ एक तरह का विश्वासघात हुआ है। यह इस देश के लिए गहरी चिंता की बात है।

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *