इतिहास अपने-आप को दोहराएगा। अमेरिका फिर सन् 2020 के मैच का गवाह होगा। तब वे चार साल ‘कम बुजुर्ग’ थे। जो बाईडन ने पिछले प्रचार अभियान की शुरुआत के चार साल पूरे होने पर वापिस अपनी पुरानी घोषणा दुहराई है। उन्होंने कहा है कि वे अपना ‘काम पूरा करने के लिए’ फिर राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ेंगे।
बाईडन के लिए चुनाव में अपनी पार्टी का प्रत्याशी चुना जाना आसान होगा क्योंकि डेमोक्रेट्स के पास दूसरे चेहरे हैं ही नहीं। जहां तक रिपब्लिकन पार्टी का सवाल है वहां कई नेता उम्मीदवार बनने की दौड़ में हैं परंतु ट्रंप उनमें सबसे आगे दौड़ते नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि 2024 में अमरीका के राजनीति के अखाड़े में 2020 का मैच फिर से खेला जाएगा।
सवाल है कि ये दोनों सुपर सीनियन सिटीजन्स, जिनके जीवन के अच्छे दिन कई दशक पीछे छूट चुके हैं, फिर से राष्ट्रपति बनने की जिद पर क्यों अड़े हुए हैं? क्या सत्ता की उनकी भूख शांत नहीं हुई है? कई लोगों ने उनसे अपील की थी कि वे देश के पहले राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन के नक्शेकदम पर चलते हुए अपने पद से इस्तीफा देकर देश का नेतृत्व युवा हाथों में सौंप दें। परंतु नहीं। बाईडन साहब को लगता है कि उनकी पारी अभी खत्म नहीं हुई है।
बाईडन कई दशकों से राष्ट्रपति बनने के फेर में थे। सन 2024 में वे चौथी बार चुनाव लड़ेंगे। सन 1988 में वे पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे। तब वे 46 साल के थे। फिर उन्होंने 2008 में 66 साल की आयु में एक बार फिर चुनाव लड़ा। आखिरकार भाग्य की देवी उन पर मुस्कुराईं और 2020 में 78 वर्ष की उम्र में वे व्हाईट हाउस में पहुंच ही गए। अगर वे अगला चुनाव जीत जाते हैं तो जब वे व्हाईट हाउस छोड़ेंगे तब उनकी आयु 86 वर्ष होगी। यह साफ है कि बाईडन को दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनना और बने रहना बहुत सुहा रहा है। और भला क्यों नहीं।
बराक ओबामा जब 48 साल की आयु में राष्ट्रपति बने थे तब वे युवा, ताजादम और ऊर्जावान लगते थे। छप्पन वर्ष की आयु में जब उन्होंने पद छोड़ा तब वृद्धावस्था की छाप उन पर दिखलाई पड़ने लगी थी। वे थके हुए और हताश दिखते थे। इसके विपरीत बाईडन पद संभालने के बाद से दिन-ब-दिन और जवान व फुर्तीले होते जा रहे हैं। जब वे चलते हैं तब वे हल्के से लंगड़ाते हैं परंतु चुस्त-दुरुस्त दिखलाई देते हैं। भाषण देते समय कब-जब वे यह भूल जाते हैं कि उन्हें आगे क्या कहना है परंतु जब वे अपना रेबेन 3025 लगाकर हवाई जहाज पर चढ़ रहे होते हैं तो वे सचमुच बहुत सजीले नजर आते हैं। और उनके कारण रेबेन फिर से फैशन में आ गया है।
एक बार फिर चुनाव लड़ने का निश्चय शायद उनमें और ऊर्जा भर देगा। परंतु क्या यह एक जवान अमेरिका के लिए अच्छा होगा?
अमरीका के अधिसंख्य नागरिक युवा हैं। देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति भी बुरी नहीं है। परंतु यह देश का दुर्भाग्य ही है कि उसके शीर्ष नेतृत्व में बुजुर्गों का बहुमत है। देश के 70 प्रतिशत नागरिक नहीं चाहते कि बाईडन एक बार फिर चुनाव लड़ें और उनमें से कई डेमोक्रेट मतदाता भी हैं, जिनका मानना है कि बाईडन से मुक्ति पाने का समय आ गया है। मतदाताओं में बाईडन के समर्थक सिर्फ43 प्रतिशत है।
परंतु हाय री किस्मत। भारत की तरह अमरीका में भी डेमोक्रेट विकल्पहीनता की समस्या से जूझ रहे हैं। उनके पास कोई ऐसा दूसरा व्यक्ति नहीं है जो रिपब्लिकनों और विशेषकर डोनाल्ड ट्रंप की मुसीबतें खड़ी करने और अराजकता फैलाने की अपूर्व क्षमता का मुकाबला कर सके। कमला हैरिस घोर अलोकप्रिय हैं। बर्नी सेंडर्स बहुत बूढ़े हैं। ऊपर से वे अपने क्रांतिकारी राजनैतिक विचारों के चलते डेमोक्रेटों के ट्रंप कहे जाते हैं। शेष उम्मीदवारों में से अधिकांश महिलाएं हैं और कई अश्वेत भी हैं परंतु समस्या यह है कि वे सभी उम्र में बहुत छोटे और अनुभवहीन हैं।
इसलिए जो बाईडन ही सबसे उपयुक्त उम्मीदवार दिख रहे हैं। एक ऐसी पार्टी जिसमें वामपंथियों का दबदबा बढ़ रहा है, में से अमेरिका एक ऐसे व्यक्ति को ही चुनना चाहेगा जो अपेक्षाकृत मध्यमार्गी है। यही कारण है कि न चाहते हुए भी वे बाईडन को ही चुनेंगे। आखिर चार और वर्षों तक ट्रंप की मूर्खताओं और मसखरी झेलने से बेहतर होगा 82 वर्ष के बाईडन को चुनना। फिर ऐसा भी तो नहीं है कि ट्रंप एकदम युवा हैं। वर्तमान में ट्रंप का समर्थन करने वाले मतदाताओं का प्रतिशत 41 है जो बाईडन से केवल दो प्रतिशत कम है।
जब कोई राष्ट्रपति पद पर रहते हुए फिर से चुनाव लड़ता है तो जाहिर है कि मतदाता राष्ट्रपति के रूप में उसके काम के आधार पर उसका आंकलन करते हैं। इस मामले में बाइडन का रिकार्ड काफी बेहतर है। उन्होंने अमरीकी सेना का उपयोग किए बिना रूस को यूक्रेन पर कब्जा न करने देने में सफलता हासिल की है। घरेलू मोर्चे उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। एक नयी औद्योगिक नीति को लागू करना, जिसके चलते सेमीकंडक्टर चिप का देश में उत्पादन तेजी से बढ़ा है तो इस मामले में अमरीका की ताईवान पर निर्भरता भी घटी। उसके अलावा उन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था के कार्बन फुटप्रिंट को घटाने के लिए बड़ी राशि अनुदान के रूप में देने की नीति लागू की। हालांकि कांग्रेस में रिपब्लिकनों ने उनकी कम खर्चीली चाइल्ड केयर योजना को पारित नहीं होने दिया परंतु उन्होंने इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और कोविड राहत के लिए महत्वपूर्ण विधेयक पारित करवाने में सफलता प्राप्त की। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बाईडन के संतुलित और टिकाऊ निर्णयों से लाभ हुआ है और उनके नेतृत्व में अर्थव्यवस्था में तेजी से मजबूती आई है। इसके विपरीत ट्रंप के कार्यकाल में उनकी एक बेवकूफाना टिप्पणी या ट्वीट से स्टाक मार्केट में भूचाल आ जाया करता था।
इन सबका लाभ बाईडन को चुनाव में मिलेगा, विशेषकर आर्थिक मोर्चे पर उनकी सफलताओं का। महामारी के कारण अर्थव्यवस्था लंगड़ाने लगी थी परंतु अब सुचारू रूप से आगे बढ़ रही है। और अभी तो चुनाव में 18 महीने बाकी हैं। तब तक आर्थिक हालात और बेहतर हो जाएंगे। परंतु बाईडन में एक कमी है ओर वह है वाकपटुता का अभाव। ट्रंप की तरह उनमें हजारों लोगों की भीड़ को सम्मोहित करने की क्षमता नहीं है। सन् 2020 में बड़ी सभाओं और सम्मेलनों पर कोविड के कारण रोक थी। अब ऐसा नहीं है। और हम यह मान सकते हैं कि ट्रंप के वाक् प्रहार अब और कटु व निष्ठुर होंगे। बाईडन के लिए कमला हैरिस भी एक बोझ हैं। वे पूरी तरह से फ्लाप साबित हुई हैं। ऐसे में मतदाताओं को लग सकता है कि अगर पद पर रहते हुए बाईडन स्वर्ग सिधार जाते हैं तो एक ऐसी महिला के हाथों में अपरिमित सत्ता और शक्ति आ जाएगी जो उस काम के लिए न तो तैयार है और ना ही काबिल।
ऐसे में अपनी बुजुर्गियत के बावजूद बाईडन देश के लिए सबसे अच्छे विकल्प हैं। वे अमेरिका के प्रजातंत्र को महफूज रख सकते हैं। उसे अन्य प्रजातंत्रों के लिए रोल मॉडल बना सकते हैं। और इसकी जरूरत पड़ेगी क्योंकि ट्रंप अपना मुंह बंद नहीं रखेंगे। उन्होंने अभी से यह स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रपति बनने के बाद बदला लेना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। हाल में एक कंजरवेटिव सम्मेलन में अपने प्रशंसकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था‘‘मैं ही तुम्हारा प्रतिशोध हूं”।
तो एक शानदार मैच को फिर से देखने के लिए तैयार हो जाईए। यह भी उतना ही रोमांचक और उत्तेजक होगा जितना कि पिछला था। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)