अमेरिकी राजनीति में बड़े मियांओं का बोलबाला है। इस कदर किसब ठहरा सा, सब कुछ बासा-बासा सा लगता है। और सन 2025 तक तो वहां राजनीति और गतिहीन व सुस्त हो जाएगी। जो बाईडन ने 2024 का राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का फैसला किया है। बाईडन 80 साल के हैं और दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र के सबसे बुजुर्ग राष्ट्रपतियों में से एक हैं।उधर76 वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप के रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार होने की प्रबल सम्भावना है। सो कही अमरीका भी अपने राजनीतिज्ञों की उम्रदराज़, बुढ़ा नहीं हो चला है?
शक नहीं कि जो बाईडन ने अपने कठिन कार्यकाल में जबरदस्त सक्रियता व कार्यक्षमता का प्रदर्शन किया है। उन्हे गंभीर अंदरूनी और बाहरी समस्याओं का सामना करना पड़ा है। इसलिए उनके राष्ट्रपति बनने के समय से ही यह प्रश्न पूछा जाता रहा है और पूछा जाता रहेगा कि क्या वे फिर राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनेंगे? या फिर वे अपनी उम्र के मद्देनजर चैन की बंसी बजाते हुए रिटायर्ड जीवन गुजारने का फैसला लेंगे? आखिरकार उन्हें राजनीति में बहुत समय हो गया है। वे अपनी युवावस्था से राजनीति में हैं। सन् 1972 में वे सीनेट के लिए चुने गए थे। इस तरह उनका सार्वजनिक जीवन आधी सदी से लम्बा हो गया है। अगर वे दुबारा राष्ट्रपति बनते हैं तो अपने दूसरे कार्यकाल की समाप्ति तक वे 86 साल के हो होंगे। हाल में व्हाईट हाउस में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने बिल क्लिंटन की मेजबानी की जो तीन दशक पहले राष्ट्रपति थे किंतु उनसे चार साल छोटे हैं।
और जो बाईडन अकेले नहीं हैं। सीनेट के रिपब्लिकन सदस्य मिच मेकोनेल 81 साल के हैं? उनके नाम सीनेट के इतिहास में सबसे अधिक अवधि तक सदस्य रहने का रिकार्ड है। वे रिटायर होने के मूड में कतई नहीं हैं। चक शूमर, जो इसी सदन में बहुमत प्राप्त डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हैं, 72 साल के हैं। सीनेटर बर्नी सेंडर्स, जो पिछली दो डेमोक्रेटिक प्रायमरीज में वामपंथियों के अगुवा रहे हैं, 81 साल के हैं। पिछले साल तक 82 वर्ष की नेन्सी पिलोसी, हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव्स में डेमोक्रेटों की नेता थीं और वे अपनी पार्टी की सबसे लंबी अवधि की नेता है। उनके रिटायरमेंट की वजह उनकी आयु नहीं बल्कि रिपब्लिकनों के पक्ष में लहर थी।
जो बाईडन और डोनाल्ड ट्रंप ऐसे पहले राजनेता नहीं हैं जिनकी उम्र को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं और आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। सन् 1984 में एक शो में जब संचालक ने रोनाल्ड रीगन को याद दिलाया कि वे अमेरिका के (उस समय तक के) वृद्धतम राष्ट्रपति हैं, तो 73 साल के रीगन ने जवाब दिया-‘‘मैं आपको यह बताना चाहूंगा कि मैं उम्र को चुनावी मुद्दा नहीं बनाना चाहता। मैं अपने प्रतिद्वंदी की कम उम्र और अनुभवहीनता का उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए नहीं करना चाहता!” रीगन भारी बहुमत से दुबारा राष्ट्रपति बने।
सन् 2009 से बाईडन के निजी चिकित्सक रहे केविन ओ कोनर के अनुसार बाईडन अब भी 80 साल के एक स्वस्थ और फुर्तीले पुरूष हैं जो राष्ट्रपति पद से जुड़े सभी दायित्वों का निर्वहन करने के लिए फिट हैं। जहां तक डोनाल्ड ट्रंप का सवाल है, व्हाईट हाउस के एक डाक्टर के अनुसार उनकी जीन्स इतनी अपूर्व और असाधारण हैं कि यदि वे अपने खानपान का थोड़ा सा भी ख्याल रखते तो कम से कम 200 साल जीते। अपनी रिपब्लिकन पार्टी से जो नेता ट्रंप को चुनौती दे रहे हैं उनमें हैली के अलावा फ्लोरिडा के 44 वर्षीय गवर्नर रोन डेसांटिस, पूर्व विदेशमंत्री माईक पोमपियो जो 59 साल के हैं, पूर्व उपराष्ट्रपति माईक पेन्स, जो इस धरती पर 63 साल बिता चुके हैं, और 57 साल के सीनेटर टिम स्काट, शामिल हैं।
तो 82 और 77 साल के ये बड़े मियां फिर से चुनाव क्यों लड़ना चाहते हैं? एक कारण सत्ता प्रेम हो सकता है। जहां तक ट्रंप का सवाल है, वे सत्ता से दीवानगी की हद तक प्रेम करते हैं। या फिर यह भी हो सकता है कि अमरीकी राजनीतिज्ञ यह मानते हों कि उम्र रिटायरमेंट का कारण नहीं हो सकती बल्कि वह तो उन्हें सत्ता में रहने के लिए और सुपात्र बनाती है। भारत में भी यही हाल है। हमारे अधिकांश नेता खासे बुजुर्ग हैं। बहुत से 70 के पार हैं और कुछ 80 के पार भी। परंतु रिटायरमेंट के बारे में शायद वे सोचते ही नहीं हैं। वे दिन-रात सत्ता के पीछे भाग रहे हैं और युवाओं को ‘पप्पू’ और ‘वंशवाद के लाभार्थी’ ठहरा रहे हैं। सत्ता हासिल करने के लिए वे देश को बांटने के लिए तैयार हैं, जैसे इस समय अमेरिका बंटा हुआ है। ऐसा कहते हैं कि सत्ता भ्रष्ट करती है। मुझे ऐसा लगता है कि सत्ता, 70 साल के बाद व्यक्ति के दिमाग को भी भ्रष्ट कर देती है। कई लोग कहते सुने जाते हैं कि नौकरी से रिटायरमेंट के बाद वे ‘जनसेवा’ में जुट जाएंगे जिसका अर्थ होता है राजनीति में जाना। जहां तक युवाओं का सवाल है, 18 से 35 साल के लंबी दाढ़ियों और शिकायतों की उससे भी लंबी लिस्ट लिए चिर असंतुष्ट युवकों की फौज अमेरिका और भारत दोनों में है।और ये नौजवान किसी भी ऐसी सरकारी रेवड़ी या लाभ प्राप्त करने को आतुर रहते हैं जिसके लिए उन्हें कोई काम न करना पड़े।
राजनीति में अक्सर जो दिखता है, हम उसे ही सही मान लेते हैं।
अमरीका की कांग्रेस में वर्तमान सीनेट इतिहास में बुजुर्गियत के लिहाज से दूसरे नंबर (औसत आयु 63.9 वर्ष) पर है और हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव्स तीसरे नंबर (औसत आयु 57.5 वर्ष) पर। अर्थात, बुजुर्गों का यह जमावड़ा उस देश पर शासन कर रहा है जिसकी औसत आयु 38 वर्ष है। अमेरिकी भी नहीं चाहते कि बाईडन साहब फिर से चुनाव मैदान में कूदें। इसका कारण वे यही बताते हैं कि उनकी उम्र कुछ ज्यादा हो गई है। परंतु जब समय आएगा तब वे 80 साल के इस आदमी को फिर से चुनाव जिता देंगे। सड़कों पर विरोध और समर्थन में प्रदर्शन होंगे तथा देश और विभाजित हो जाएगा। भारत हो चाहे अमेरिका दोनों में ऐसे नेताओं को चुना जाना बंद होना चाहिए जिनकी उम्र कुछ नया सोचने और करने की नहीं रह गई है। लोगों को ऐसे हाथों में शासन की बागडोर देनी होगी जो अपने जीवन के पांचवें दशक या ज्यादा से ज्यादा छठवें दशक के शुरूआती सालों में हों। (कॉ0.पी: अमरीश हरदेनिया)