भारत में बेरोजगारी असल समस्या का मुखौटा मात्र है। उस मुखौटे के पीछे अंडरइंपलॉयमेंट और परोक्ष बेरोजगारी का विशाल संकट है। जाहिर है, भारत के सामने एक एक दुश्चक्र में फंसने का खतरा है।
भारत सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में वेतनभोगी महिला कर्मियों की संख्या दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। वैसे कुल मिला कर रोजगार की स्थिति भी चिंताजनक बनी हुई है, भले शहरों में युवा कर्मियों के लिए स्थिति कुछ बेहतर हुई हो। सावधिक श्रम शक्ति सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक (पीएलएफएस) की यह रिपोर्ट का संदेश यह है कि भारत में युवा आबादी के जिस लाभ की चर्चा अक्सर की जाती है, व्यावहारिक रूप से वैसा होने की स्थितियां बन नहीं रही हैं। अगर क्वालिटी एम्पलॉयमेंट की बात करें, तो सूरत और भी खराब नजर आती है। ताजा रिपोर्ट ने पहले से मौजूद ऐसी जानकारियों एक बार फिर से पुष्टि की है। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में शहरी बेरोजगारी दर अप्रैल से जून 2020 की तिमाही में 20.9 फीसदी पर पहुंच गई थी। तब से बेरोजगारी दर तो कम हुई है, लेकिन अपेक्षित तनख्वाह वाली नौकरियां कम ही उपलब्ध हैं। जबकि नौकरी खोजने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है।
स्थिति यह है कि युवा आबादी कम वेतन वाले काम पाकर भी अपने को सौभाग्यशाली मानते हैँ। यह काम भी ना मिले, तो वे अपना कोई छोटा-मोटा काम कर लेते हैं, जिन्हें सरकार स्वरोजगार बताती है। लगभग 1.4 अरब लोगों की आबादी के साथ भारत चीन को पीछे छोड़ दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। इस आबादी का आधे से ज्यादा यानी लगभग 53 फीसदी 30 साल से कम आयु के हैं। भारत के इस जनसंख्या-लाभ की चर्चा सालों से हो रही है, लेकिन अच्छी नौकरियां ना होने के कारण करोड़ों युवा असल में अर्थव्यवस्था पर बोझ बनते जा रहे हैं। आर्थिक शोध एजेंसी आईसीआरआईईआर ने बताया है कि बेरोजगारी समस्या का मुखौटा मात्र है। उस मुखौटे के पीछे अंडरइंपलॉयमेंट और परोक्ष बेरोजगारी का विशाल संकट है। जाहिर है, भारत के सामने एक दुश्चक्र में फंसने का खतरा है। अगर रोजगार दर कम होती रही तो आय कम होगी और आय कम हुई तो युवाओं और बढ़ती आबादी के लिए नए रोजगार पैदा करने के लिए धन उपलब्ध नहीं होगा। बेशक, यह देश के सामने सबसे गंभीर समस्या है।