इस बार रिजर्व बैंक ने मिनी नोटबंदी की है। दो हजार के नोट चलन से बाहर करने का फैसला वैसे तो वित्त मंत्रालय और केंद्र सरकार के शीर्ष स्तर की सहमति से हुआ होगा लेकिन चूंकि फैसले की घोषणा करने प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री या सरकार का कोई अन्य मंत्री नहीं आया इसलिए यह कहना सुरक्षित है कि मिनी नोटबंदी रिजर्व बैंक ने की है। नवंबर 2016 की नोटबंदी का ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद किया था। उसके बाद कई भाषणों में वे इस फैसले का बचाव करते रहे और इसके फायदे समझाते रहे। यह संयोग है कि उस समय भी नोटबंदी का फैसला करके वे जापान गए थे और इस बार जापान में थे तो रिजर्व बैंक ने नोटबंदी की घोषणा की। इस बार कोई भी दो हजार के नोट बंद करने का फायदा नहीं समझा रहा है क्योंकि फायदा समझाएंगे तो विपक्ष का यह आरोप प्रमाणित होगा कि दो हजार के नोट जारी करना गलत फैसला था। इस सवाल का जवाब देना होगा कि अगर बड़े नोट बंद करने का मकसद काला धन समाप्त करना था तो उससे भी बड़ा एक नोट क्यों जारी किया गया था?
बहरहाल, फैसले के तुरंत बाद आर्थिक मामलों के जानकारों ने अलग अलग चैनलों पर समझाया और बाद में अखबारों में लिखा भी कि इस बार पहली नोटबंदी जैसी अफरा-तफरी नहीं मचेगी। इसके पक्ष में यह तर्क दिया गया कि उस समय पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट का हिस्सा चलन वाली कुल मुद्रा में 85 फीसदी के करीब था, जबकि आज जितनी मुद्रा चलन में है उसमें दो हजार रुपए के नोट का हिस्सा सिर्फ 10 फीसदी के करीब है। ध्यान रहे इस समय 30 लाख करोड़ रुपए की मुद्रा चलन में है, जिसमें रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 3.62 लाख करोड़ रुपए मूल्य के दो हजार के नोट हैं। सोचें, जिस समय पांच सौ और एक हजार के नोट बंद हुए थे तब बाजार में 20 लाख करोड़ रुपए से कुछ कम की मुद्रा चलन में थी, जो डिजिटल इंडिया बनने के बाद डेढ़ गुने से ज्यादा हो गई है। बहरहाल, पहले जैसी अफरा-तफरी नहीं मचने का सिद्धांत बताने वाले जानकारों का कहना है कि दो हजार रुपए मूल्य के ज्यादातर नोट दो फीसदी उच्च आय वर्ग के लोगों के पास हैं।
लेकिन असल में यह पूरा सिद्धांत सिरे से गलत है। क्योंकि यह मानना गलत है कि 98 फीसदी लोगों के पास दो हजार के नोट नहीं हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों के पास बहुत ज्यादा नोट हों लेकिन ज्यादातर घरों में दो हजार रुपए के दो-चार नोट जरूर होंगे। और अगर किसी व्यक्ति के पास दो हजार रुपए के दो या चार नोट भी हैं तो उसे अनिवार्य रूप से बैंक में जाकर लाइन में लगना होगा। अगर कोई व्यक्ति बैंक में जाकर नोट बदलवाने या अपने खाते में जमा कराने की बजाय बाजार में उसे चलाने की कोशिश करता है तो उसे वैसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, जैसी मुश्किलें 2016-17 में उसके सामने थी। रिजर्व बैंक का सरकुलर जारी होने के साथ ही दो हजार रुपए के नोट की कीमत गिर गई है। अब इसे बाजार में इसकी पूरी कीमत पर नहीं चलाया जा सकेगा। जिस तरह से नोटबंदी के समय कई जगहों से खबर आई थी कि लोग अपने पास पड़े पुराने नोटों को कम कीमत पर बदलवा रहे हैं उसी तरह दो हजार के नोट भी खुले बाजार में कम कीमत में बदलवाने होंगे। सो, लोगों के सामने दो रास्ते हैं। पहला बैंक में लाइन में लगें या फिर खुले बाजार में कम कीमत पर उससे खरीदारी करें या कम कीमत पर बदलवाएं। रिजर्व बैंक का फरमान जारी होने के अगले दिन से इसका असर भी दिखने लगा। मीडिया में खबर आई कि गुजरात में दो हजार रुपए के नोट से लोग 10 ग्राम सोना 70 हजार रुपए की दर पर और चांदी 80 हजार रुपए किलो खरीद रहे हैं। क्या इससे 2016 की याद नहीं आती है? पेट्रोल पंपों पर करोड़ों की संख्या में दो हजार के नोट पहुंचने लगे हैं और दुकानदार दो हजार के नोट तभी ले रहे हैं, जब खरीदारी पूरी रकम की हो।
दो हजार के तीन लाख 62 हजार करोड़ रुपए मूल्य के नोट अभी चलन में हैं अगर इसका ज्यादातर हिस्सा दो फीसदी लोगों के पास है और काले धन के रूप में जमा है तब भी सरकार को उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि कोई काला धन बाहर आएगा। पहली नोटबंदी में 99 फीसदी से ज्यादा पांच सौ और एक हजार के नोट वापस आ गए थे और इस बार भी संभव है कि सौ फीसदी नोट बैंकों में वापस लौट जाएं। ऐसा कैसे होगा, यह बताने की जरूरत नहीं है। पिछली बार सबने सीख लिया है कि नोट कैसे बदले और जमा कराए जाते हैं। तभी इस बार सरकार काले धन के बारे में कुछ नहीं कह रही है। उलटे चार महीने से ज्यादा समय तक बिना किसी पहचान पत्र के नोट बदले जाएंगे। तभी ऐसा लग रहा है कि इस बार सरकार सिर्फ इतना चाहती है कि सारे पैसे बैंक में वापस आ जाएं। ध्यान रहे इस बार मिनी नोटबंदी का कोई मकसद नहीं बताया गया है और यह भी नहीं कहा गया है कि सरकार इससे क्या हासिल करना चाहती है। उलटे यह कहा गया है कि इस नोट को जारी करने का मकसद पूरा हो गया है।
बहरहाल, 2016 की केंद्र सरकार की नोटबंदी की विफलता कई तरह से सामने आई थी। सबसे पहले तो लोगों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। लोग चार हजार रुपए के नोट बदलने के लिए घंटों बैंकों के सामने लाइन में खड़े रहते थे। दूसरे, जिनके पास एक निश्चित मात्रा से ज्यादा नकदी थी उन्होंने खुले बाजार में कम कीमत पर नोट बदलवाए और बिचौलियों ने बैंकर्स से साठ-गांठ करके बैंकों में पैसे जमा कराए। इससे काला धन इकट्ठा करने वाला एक नया वर्ग पैदा हुआ। तीसरे, नए नोट छापने और उन्हें लोगों तक पहुंचाने में सरकार को भारी भरकम खर्च करना पड़ा और चौथे, देश की अर्थव्यवस्था को दो फीसदी तक का नुकसान हुआ। इस बार भी खबर है कि दो हजार के नोट चलने से हटने के बाद लोगों को दिक्कत न हो इसलिए देवास में 22-22 घंटे छपाई होगी और पांच सौ रुपए मूल्य के दो करोड़ नोट छापे जाएंगे। सोचें, इस पर आने वाले खर्च का बोझ किसके ऊपर जाएगा? पिछली बार भी पुराने नोट खत्म करने और नए छाप कर उन्हें हर जगह पहुंचाने पर बहुत खर्च हुआ था। नए नोटों को लेकर एक आंकड़ा यह है कि पिछले चार साल में दो हजार के 102 करोड़ नोट नष्ट किए गए हैं। वापसी के बाद और करोड़ों नोट नष्ट होंगे। इस पर हुए खर्च का बोझ भी तो जनता के सिर पर ही पड़ेगा!
तभी 2016 में जितनी चीजें हुई थीं, थोड़ी बहुत मात्रा में वह सब कुछ इस बार भी होगा। इस बार भी लोगों को बैंकों में लाइन में लगना होगा चाहे उनके पास दो हजार के कितने भी नोट हों। इस बार भी कुछ लोगों को बिचौलियों के जरिए अपने दो हजार के नोट बदलवाने होंगे। यह भी तय है कि अर्थव्यवस्था पर इसका कुछ न कुछ असर होगा। यह सही है कि छोटे कारोबारी इतने बड़े नोट से कारोबार नहीं करते थे लेकिन मुद्रा के प्रति अविश्वास कम होना भी अर्थव्यवस्था को किसी न किसी स्तर पर प्रभावित करेगा। हो सकता है कि प्रत्यक्ष रूप से बाजार और अर्थव्यवस्था पर इसका ज्यादा असर न हो लेकिन मानसिक रूप से यह कई आर्थिक फैसलों को प्रभावित करेगा। यह धारणा मजबूत होगी कि सरकार ने मुद्रा का मजाक बना रखा है। अगर सरकार मनमाने तरीके से पुरानी मुद्रा बंद करने नई मुद्रा जारी करने का फैसला कर रही है तो आर्थिक मामलों में सरकार के फैसलों को लेकर अनिश्चितता का माहौल बनेगा। कारोबारी आशंकित रहेंगे कि क्या पता सरकार आगे क्या फैसला करे? अनिश्चितता का यह माहौल कारोबार के लिए ठीक नहीं होता है।