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राक्षस है भारत में सोशल मीडिया!

दुनिया में इस समय चौथी औद्योगिक क्रांति के खतरों को लेकर बहस छिड़ी है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी कृत्रिम मेधा को मॉन्सटर मान रहे इलॉन मस्क और युवाल नोवा हरारी सहित एक बड़ी जमात चाहती है कि इस पर हो रहे शोध पर रोक लगाई जाए। ‘गॉडफादर ऑफ एआई’ के नाम से मशहूर ज्योफ्री हिंटन ने गूगल से इस्तीफा दे दिया है। वे दुनिया भर में लोगों को एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के खतरों के प्रति आगाह कर रहे हैं। भारत अभी उस बहस में जाने के योग्य नहीं है क्योंकि हम अभी तीसरी औद्योगिक क्रांति के खतरे से ही जूझ रहे हैं। कंप्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट की क्रांति के रथ पर सवार इस क्रांति का प्रतीक सोशल मीडिया है, जिसने भारत में इंसानी जीवन, सामाजिक व्यवस्था और राष्ट्रीय एकता व अखंडता को खतरे में डाला है। यह नफरत भरी बातें, फर्जी खबरें और अफवाह फैलाने का एक राक्षसी प्लेटफॉर्म बन गया है। कुछ समय पहले तक इस माध्यम से जो उम्मीद लगाई गई थी वह लगभग पूरी तरह से धूल धूसरित हो गई है। हो सकता है कि किसी समय में, कुछ देशों में और कुछ लोगों ने इसे क्रांति का हथियार बनाया हो लेकिन भारत में तो यह प्रतिक्रांति का सबसे असरदार हथियार बन गया है।

सोशल मीडिया किस तरह से राक्षस बन गया है यह समझने के लिए हाल की दो मिसालें देखी जा सकती हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 26 अप्रैल को एक ट्विट किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि वे मनीष सिसोदिया की पत्नी की सेहत का हालचाल जानने अस्पताल गए थे। केजरीवाल ने लिखा- अभी सीमा भाभी (मनीष जी की पत्नी) से अस्पताल में मिलकर आ रहा हूं। कल से वो अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें मल्टीपल सोरायसिस बीमारी है। बहुत ही गंदी बीमारी है। उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए भगवान से प्रार्थना करता हूं।

यह एक ईमानदार और मानवीय भावना प्रकट करने वाला ट्विट है। लेकिन यह लेख लिखे जाते समय तक इस ट्विट पर 7,495 कमेंट हुए थे और अपवाद के लिए एकाध को छोड़ दें तो सब के सब न्यूनतम मर्यादित मानवीय व्यवहार से गिरे हुए थे। एक बीमार महिला से मिलने गए एक पारिवारिक दोस्त को लेकर ऐसी अभद्र टिप्पणियां और ऐसे अश्लील मीम्स लोगों ने कमेंट में डाले हैं, जिसकी किसी भी सभ्य समाज में कल्पना नहीं की जा सकती है। कह सकते हैं कि इस तरह की गिरी हुई टिप्पणी करने वाले बॉट्स हो सकते हैं यानी मशीन के जरिए ऐसी टिप्पणी हुई हों लेकिन उस मशीन की कमान तो किसी न किसी व्यक्ति के हाथ में है! वह व्यक्ति कितना गिरा हुआ होगा, जो बॉट्स के सहारे ही अपने प्रतिद्वंद्वी का चरित्रहनन करने के लिए ऐसा गिरा हुआ काम कर रहा है?

इसी तरह 26 अप्रैल को ही फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने एक ट्विट करके ‘इंटरनेट के अच्छे लोगों’ से मदद मांगी थी। उन्होंने पूछा था कि अगर एक दो दिन में कोई अमेरिका के अटलांटा जा रहा हो तो बताए उन्हें एक छोटा सा पैकेट भेजना है, जो बहुत अर्जेंट है। लेख लिखते समय तक इस पर 1,306 टिप्पणियां आई थीं और अपवाद के लिए एकाध को छोड़ कर सबके सब स्वरा भास्कर के प्रति राजनीतिक और वैचारिक दुर्भावना से प्रेरित थीं। मदद ऑफर करने वाली एक या दो टिप्पणी थी बाकी सारी यह बताने वाली थीं कि छोटा पैकेट नशीले पदार्थों का हो सकता है, इसलिए कोई स्वरा पर भरोसा न करे।

ये दोनों पिछले एक हफ्ते की प्रतिनिधि घटनाए हैं। सोचें, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को इस तर्क के आधार पर जरूरी बताया जा रहा था कि इनसे बहुत मदद मिलती है। किसी अच्छे काम के लिए लोगों को इकट्ठा करना हो, जरूरी सूचना पहुंचानी हो, स्वास्थ्य संबंधी या किसी दूसरी तरह की मदद हासिल करनी हो, तो यह काम आता है। कोरोना के समय इसका यह रूप देखने को मिला भी था। हालांकि तब भी अगर मदद मांगने वाले और मदद करने वालों के ट्विट पर आई टिप्पणियों को पढ़ते तो पता चलता कि बड़ी संख्या में टिप्पणियां वैचारिक व राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित हैं। फिर भी उस समय इसका एक महत्व दिखा था। अब वैसा कुछ नहीं है।

उलटे अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की स्थिति ऐसी हो गई है कि बात बात में पुलिस और प्रशासन को इस पर रोक लगानी पड़ रही है। इंटरनेट बंद करना पड़ता है ताकि ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप आदि प्लेटफॉर्म्स के जरिए फर्जी खबरों, नफरत फैलाने वाली बातों और अफवाहों को फैलने से रोका जा सके। आखिर ऐसा क्यों होता है? तकनीक के फायदे और नुकसान दोनों होते हैं, यह विचार प्रकट करने वाला कोई व्यक्ति क्या बता सकता है कि कब शांति और सौहार्द न बिगड़े इसके लिए किसी तकनीक पर पाबंदी लगाई हो गई? क्या कभी न्यूज चैनलों के प्रसारण पर इस आधार पर पाबंदी लगाई गई है कि ये नफरत फैला रहे हैं या इनसे शांति व सद्भाव बिगड़ेगा? हालांकि अब ज्यादातर न्यूज चैनल सोशल मीडिया का ही विस्तार बन गए हैं फिर भी राक्षस नहीं हुए हैं। इसी तरह क्या कभी अखबारों का छपना इस आधार पर रोका गया है कि इनसे समाज में हिंसा भड़क सकती है? फिर क्यों बार बार मोबाइल इंटरनेट बंद करना होता है ताकि सोशल मीडिया का एक्सेस रोका जा सके? ताजा मिसाल रामनवमी के बाद कई राज्यों में भड़की हिंसा में देखने को मिला। कई राज्यों में कई दिन तक मोबाइल इंटरनेट बंद किया गया। यह भी एक तथ्य है कि इंटरनेट बंद करने के मामले में भारत दुनिया का अव्वल देश है।

क्या यह अपने आप में इस बात की सबूत नहीं है कि भारत में सोशल मीडिया का स्वरूप राक्षसी होता जा रहा है? उसके इस्तेमाल में न्यूनतम वस्तुनिष्ठता नहीं है। स्वीकार्य सामाजिक व्यवस्था के प्रति सम्मान नहीं है और संविधान व कायदे-कानून के प्रति न्यूनतम प्रतिबद्धता नहीं है। यह अपनी नापसंद की राजनीतिक विचारधारा के हिंसक अस्वीकार और किसी दूसरे धर्म या समाज के प्रति नफरत फैलाने का माध्यम हो गया है। ऐसा लग रहा है कि जैसे पूरा देश जहर से भरा हुआ था और वह जहर निकालने के लिए ऐसे ही किसी समय और माध्यम का इंतजार कर रहा था। वह समय भी आ गया है और माध्यम भी मिल गया है। दुनिया के दूसरे देशों में भी किसी न किसी समय में इस माध्यम का ऐसा दुरुपयोग हुआ होगा लेकिन भारत की स्थिति बाकी देशों से भिन्न है। भारत दुनिया में सर्वाधिक सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक भिन्नता वाला देश है। इसलिए यहां असहमति के प्रति सम्मान और दूसरी संस्कृति, परंपरा या धर्म को मानने वालों के प्रति सहिष्णुता की ज्यादा जरूरत है। तभी यहां सोशल मीडिया का राक्षसी होते जाना बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा खतरनाक हो गया है। ऐसा लग रहा है कि लोग एक दूसरे के प्रति नफरत व हिंसक विचार से भरे हुए हैं, जिसका प्रकटीकरण सोशल मीडिया के माध्यम से हो रहा है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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