यूक्रेन-रूस में चल रहे युद्ध का अंत दूर-दूर तक दिखलाई नहीं दे रहा है। रूस का दावा है कि उसने बखमुत शहर पर कब्ज़ा कर लिया है परन्तु वह उसी क्षेत्र में और सैनिक भेज रहा है। इसके उलट यूक्रेन कह रहा है कि इस पूर्वी शहर पर कब्ज़े के लिए एक साल से जारी भीषण युद्ध में “दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचा है”।ऐसा लगता है कि न तो कोई जीत रहा है और ना ही कोई हार रहा है। इसलिए युद्ध चलता जा रहा है। परन्तु दोनों पक्ष कूटनीति की बिसात पर अपनी-अपनी चालें चल रहे हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की समर्थन, आर्थिक मदद और असलहा हासिल करने के लिए दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक दौड़ लगा रहे हैं।
अभी दस दिन पहले तक वे यूरोप में घूम रहे थे। वे पहले इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी से मिले, जिन्होंने उनसे वायदा किया कि जब तक ज़रूरी होगा तब तक इटली, रूस से जंग के लिए यूक्रेन को हथियार सप्लाई करता रहेगा। वहां से टाइफून लड़ाकू जेट विमानों की सुरक्षा में वे बर्लिन पहुंचे और जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज़ से मिले। शोल्ज़ ने यूक्रेन के लिए 2।9 अरब डॉलर के सहायता पैकेज की घोषणा की, जिसमें हवाई हमलों से बचने की प्रणाली और टैंक शामिल हैं। बर्लिन से शोल्ज़ के साथ वे जर्मनी के आखेन शहर गए जहाँ उन्हें यूरोप के लोगों में एकता स्थापित करने के लिए शारलेमेन पुरस्कार से नवाज़ा गया। यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने उनकी तारीफों के पुल बांध दिए। उन्होंने कहा, “यूक्रेन तो यूरोप के सभी प्रिय आदर्शों का मूर्त स्वरूप है: उसमें अपने मत पर दृढ रहने का साहस है, वह अपने मूल्यों और अपनी आज़ादी के लिए लड़ना जानता है और वह शांति और एकता के प्रति प्रतिबद्ध है।” पुरस्कार प्राप्त करने के बाद जेलेंस्की फ्रांस पहुंचे जहाँ राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने युद्ध जारी रखने के लिए यूक्रेन की हर संभव सहायता देने का वायदा किया।
वायदों से भरी अपनी झोली पीठ पर टांग जेलेंस्की जेड के आगे न जाने कितने प्लस वाली श्रेणी की अपनी सुरक्षा के साए में यूरोप से हिरोशिमा में चल रही जी7 शिखर बैठक में पहुंचे। उनकी यात्रा “आकस्मिक और अनापेक्षित” बताई गयी। हिरोशिमा में वे पश्चिम से बाहर की दुनिया के सामने अपनी बात रखना चाहते थे।
यूक्रेन के कूटनीतिक मिशन से भारत, चीन, ब्राज़ील और कम से कम 20 अफ्रीकी देश एकदम अप्रभावित हैं। यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा के अनुसार इसका कारण यह है कि ये देश रूस के नैरेटिव पर तो ध्यान दे रहे हैं परन्तु यूक्रेन का सच समझ नहीं पा रहे हैं। कुलेबा ने पिछले साल अक्टूबर में अफ्रीकी देशों सेनेगल, आइवरी कोस्ट, घाना और कीनिया की अपनी यात्रा में रूस के झूठ के मुकाबिल यूक्रेन का सच बताने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था कि पहली बात तो यह है कि 2014 में रूस ने जब सबसे पहले यूक्रेन पर हमला किया था तब यूक्रेन की नीति तटस्थता की थी और वह नाटो की सदस्यता लेने के बारे में सोच तक नहीं रहा था। दूसरे, रूस का यह दावा एकदम झूठा है कि यूक्रेन और रूस एक देश हैं। कुलेबा ने अफ्रीकी पत्रकारों से बातचीत में कहा, “ज़रा सोचिये कि अगर आपका पड़ोसी देश आपसे कहे कि तुम्हारी न तो कोई अलग भाषा है, न संस्कृति और ना ही इतिहास। तुम्हारा अलग देश बनना तो एक भूल है।” और तीसरे यह कि रूस का यह कहना गलत है कि वह तो केवल शांति चाहता है।
इस साल अप्रैल में यूक्रेन की उप विदेशमंत्री एमीन झापरोवा ने अपनी भारत यात्रा के दौरान भी यही बातें कहीं थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत और यूक्रेन दोनों ने औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संघर्ष किया था परन्तु साथ ही आश्चर्य व्यक्त किया कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल पिछले कुछ महीनों में तीन बार मास्को हो आये हैं परन्तु उन्होंने एक बार भी कीव का रुख नहीं किया। शायद भारत की इसी बेरुखी का कारण जानने के लिए जेलेंस्की ने यह सुनिश्चित किया कि जी7 शिखर बैठक के दौरान उनकी प्रधानमंत्री मोदी से आमने-सामने बातचीत हो। परन्तु इस बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला। ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डि सिल्वा ने तो ‘समय की कमी’ के कारण जेलेंस्की से वन-टू-वन मुलाकात करने से ही इंकार कर दिया। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने शुरू में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि हिरोशिमा में मुलाकातें जेलेंस्की के लिए गेमचेंजर नहीं होंगीं।
राष्ट्रपति जेलेंस्की का दुर्भाग्य था कि हिरोशिमा की यात्रा के बाद भी वे तटस्थ देशों को अपना नहीं बना सके। परन्तु हाँ, वे अमरीका से 375 अरब डॉलर का सैनिक सहायता का आश्वासन लेकर ज़रूर गए। जो बाइडन ने कहा कि इस पैकेज में गोलाबारूद, तोपें, बख्तरबंद गाड़ियाँ और ट्रेनिंग शामिल है। इसके कुछ ही दिन पहले, बाइडन ने इंग्लैंड और अपने अन्य मित्र देशों को अमरीका में बने एफ-16 लड़ाकू विमान यूक्रेन को देने की इज़ाज़त दी थी। बाइडन ने यूरोप को दिए आश्वासन को दोहराते हुए कहा कि “पूरे जी7 देशों के साथ हम भी यूक्रेन के साथ हैं और मैं वायदा करता हूँ कि हम डिगेंगे नहीं” परन्तु प्रश्न यह है कि जेलेंस्की अपनी निपुण कूटनीति की मदद से क्या तटस्थ देशों को अपने पक्ष में कर सकेंगे, विशेषकर जुलाई से पहले जब वे एक शांति शिखर वार्ता का आयोजन करने की योजना बना रहे हैं। उनकी कोशिश यह भी है कि रूस पर लगे प्रतिबन्ध कमज़ोर न पड़ें।
बहरहाल, आसार तो यही हैं कि युद्ध जारी रहेगा क्योंकि सिर्फ कूटनीतिक कारणों से शायद ही कोई देश अपने आर्थिक हितों पर कुठाराघात होने देगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)