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चेतावनी में दम है

जब कुछ तबकों को छोड़ कर बाकी लोगों की वास्तविक आय घटेगी, तो जाहिर है वे उपभोग में कटौती करेंगे। सरकार ने अर्थव्यवस्था के इस पक्ष में सुधार लाने की तनिक भी जरूरत नहीं समझी है।

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने आगाह किया है कि भारत के फिर से ‘हिंदू रेट और ग्रोथ’ में फंस जाने का अंदेशा है। हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ शब्द 1960-70 के दशकों में बहुत प्रचलित था, जब भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर आम तौर पर चार प्रतिशत के आसपास रहती थी। अब एक बार फिर से वह कहानी लौटने का अंदेशा पैदा हुआ है, तो जाहिर है, यह गहरी चिंता की बात है। राजन ने अपनी आशंका के कारण भी बताए हैं। उनमें पहला यह है कि देश में निजी निवेश की दर लगातार कम बनी हुई है। इस तथ्य की ओर पहली बार ध्यान नहीं खींचा गया है। कुछ समय पहले खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन उद्योगपतियों की बैठक में निवेश ना करने के लिए उन्हें फटकार लगा चुकी हैँ। समझा यह जाता है कि आर्थिक मुश्किलों के समय में अगर सरकार अपना निवेश बढ़ाती है, तो उससे बनी परिस्थितियों में निजी क्षेत्र निवेश करने के लिए उत्साहित होता है। लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हुआ है।

निजी क्षेत्र की दलील रही है कि देश में उपभोग घट जाने के कारण मांग नहीं है, ऐसे में वह अपनी पहले से निर्मित क्षमता के मुताबिक ही उत्पादन नहीं कर रहा है। तो ऐसे में नए निवेश की गुंजाइश कहां है? रघुराम राजन ने कहा है कि इसके अलावा ब्याज दर के लगातार ऊंचा होते जाने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मंदी जैसे हालात के कारण भी भारत में निवेश की स्थितियां सुधरने की संभावना फिलहाल नहीं है। दरअसल, उपभोग घटने का एक कारण रोजगार और कारोबार में गिरावट है, तो दूसरी वजह मंहगाई और ऊंची ब्याज दर है। जब कुछ तबकों को छोड़ कर बाकी लोगों की वास्तविक आय घटेगी, तो जाहिर है वे उपभोग में कटौती करेंगे। सरकार ने अर्थव्यवस्था के इस पक्ष में सुधार लाने की तनिक भी जरूरत नहीं समझी है। नतीजा है कि धीरे-धीरे सकल भारतीय अर्थव्यवस्था एक दुश्चक्र में फंसती चली जा रही है। बहरहाल, चूंकि सत्ता पक्ष ने रघुराम राजन की छवि कांग्रेस समर्थक की बना रखी है, इसलिए उनकी बात पर सरकार ध्यान देगी, इसकी उम्मीद कम ही है।

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By NI Editorial

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