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माइक पेंस: दरबारी बना प्रतिस्पर्धी!

अमेरिका में अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिपब्लिकन पार्टी में मुकाबला मजेदारबन रहा है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उनके अपने खेमें में से चुनौती मिल रही है। माइक पेंस ने अपने पुराने बॉस डोनाल्ड ट्रंप से मुकाबला करना तय किया है। उम्मीदवारों की पहले से ही काफी लम्बी सूची में उनका नाम भी जुड़ गया है। बताया जा रहा है कि माइक पेंस पहले ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जो उन्हें उपराष्ट्रपति बनवाने वाले अपने राष्ट्रपति के खिलाफ मैदान में उतरे है।

पेंस एक सीधे-साधे उपराष्ट्रपति और अपने पूर्व बॉस डोनाल्ड ट्रंप के वफादार दरबारी थे।ट्रंप के कार्यकाल में एक के बाद एक कई स्कैंडल हुए परन्तु पेंस ने चूं तक नहीं की।ट्रंप प्रशासन विवादों में घिरा रहा,ट्रंप ने कई बदतमीजियां कीं परन्तु पेंस चुपचाप सब कुछ झेलते रहे। ऐसा कहा जाता है कि एक बार ज़रूर उन्होंने अपना टिकट छोड़ने – या ट्रंप के स्थान पर खुद के लिए टिकट का दावा करने – पर विचार किया था। वह तब जब 2016 के चुनाव के एक महीने पहले एक्सेस हॉलीवुड टेप सामने आये जिसमें ट्रंपने शेखी बघारते हुए कहा था कि महिलाओं के साथ जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध बनाना (सेक्सुअल असाल्ट) उनकी आदतों में शुमार रहा है। इस कारण ट्रंप और पेंस के संबंधों में खटास आई परन्तु उन्होंने चुनाव लड़ने से तौबा की और ट्रंप के चार साल के कार्यकाल के उनके प्रति वफादार (कुछ कहते हैं ताबेदार) बने रहे।

हाँ, 6 जनवरी 2021 को भी उन्होंने कड़ा रुख अपनाते हुए ट्रंप की इस मांग को मानने से इंकार कर दिया था कि वे सत्ता हस्तांतरण की सामान्य प्रक्रिया को रोक कर, चुनाव में उन्हें विजयी घोषित कर दें। पेंस ने ऐसा नहीं किया। उन्होने बाइडन की जीत पर अपनी मुहर लगाई। इस पर ट्रंप ने व्हाइट हाउस से ट्वीट किया, “माइक पेंस ने वह करने की हिम्मत नहीं दिखाई जो किया जाना चाहिए था।” और इसके साथ ही “माइक पेंस को  फांसी पर लटका दो” के नारे लगाती हुई दंगाईयों की भीड़ ने संसद भवन पर हल्ला बोल दिया।

उसके पहले तक माइक पेंस खुशामदी रुख अख्तियार किये रहे। एक अच्छे इवैंजेलिकल (गोस्पेल्स में पूरी तरह यकीन रखने वाला) ईसाई की तरह व्यवहार करते रहे।ट्रंप की तरह, पेंस पर भी जांच बैठी। कई सार्वजनिक सुनवाईयों और अपनी प्रकाशित रिपोर्ट में छह जनवरी के घटनाक्रम की जांच के लिए बिठाई गयी संसदीय समिति ने पेंस को हीरो करार दिया।ट्रंप के विरुद्ध चार आधारों पर आपराधिक प्रकरण कायम करने की सिफारिश जस्टिस डिपार्टमेंट से की। पेंस ने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप गलत थे। मुझे चुनाव को पलटने का कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने बिना विचारे जो कुछ कहा उससे मेरी, मेरे परिवार और कैपीटोल (ससंद) में उस दिन मौजूद सभी लोगों की जान खतरे में पड़ गयी थी। मैं जानता हूँ कि एक न एक दिन इतिहास इसके लिए ट्रंप को जवाबदेह ठहराएगा।” ऐसा ही कुछ, पद छोड़ने के बाद गुप्त दस्तावेज अपने पास रखने के मामले की जांच में भी हुआ।ट्रंप के विपरीत, पेंस को केवली मामूली पड़ताल का सामना करना पड़ा। उन पर कोई आपराधिक आरोप नहीं लगाये गए।

अपना पद छोड़ने के बाद पेंस एक बार फिर एक दब्बू नेता की भूमिका में आ गए। शायद इसलिए क्योंकि अमरीका में राजनीतिज्ञ और जनता दोनों ही उन्हें बहुत गंभीरता से नहीं लेते। अपने पूरे राजनैतिक जीवन में वे अपने पूर्ववर्तियों की विरासत के सामने बौने साबित होते रहे हैं। गवर्नर के रूप में वे अपने पूर्ववर्ती  मिच डानियल्स की तुलना में बौने थे। कैपिटोल में वे दिवंगत रिचर्ड लूगर की छाया में रहे। लूगर भी इंडिआना से थे और कांग्रेस फॉरेन रिलेशन्स समिति के अध्यक्ष थे।

पेंस ने अपने बारे में इस धारणा को तोड़ने की कोशिश में अपने संस्मरण प्रकाशित किये, जिसका शीर्षक है “सो हेल्प मी गॉड”।इसमें उन्होंने उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के सबसे कुख्यात दिनों के बारे में लिखा है। परन्तु इस किताब को “ट्रंप के रिकॉर्ड का उनके प्रशासन के किसी सदस्य द्वारा सबसे मज़बूत बचाव” के रूप में प्रचारित किया गया! पेंस को उम्मीद है कि उन्होंने जिस ढंग से अपनी संवैधानिक कर्तव्यों का पालन किया उससे उन्हें उन चंद रिपब्लिकनों के वोट मिलेंगे जो उनके पूर्व बॉस को नापसंद करते हैं और साथ ही, ट्रंप की लानत-मलामत न करने के कारण वे “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” के नारे में विश्वास रखने वालों का दिल भी जीत सकेंगे।

परन्तु सच यह है कि पेंस दोनों ही कैम्पों के प्रतियोगियों की दौड़ में आगे नहीं हैं। राष्ट्रपति पद का रिपब्लिकन उम्मीदवार बनने की दौड़ में ट्रंप सबसे आगे हैं। उनके ठीक पीछे हैं रोन डेसांटिस। कुल मिलाकर, इस बात की सम्भावना कम ही है कि वे अपनी पार्टी के उम्मीदवार बन पाएंगे। हाँ, बुधवार को अपनी 64वीं वर्षगाँठ पर अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर उन्होंने इतिहास में अपना नाम ज़रूर दर्ज करवा लिया है। वे ऐसे पहले उपराष्ट्रपति हैं जो अपने पूर्व बॉस से दो-दो हाथ करेंगे। काश उन्होंने यह तब किया होता जब इसकी जरूरत थी। तब शायद उनके रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने की उम्मीद काफी ज्यादा होती (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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