अब प्रश्न है कि मीडिया के जिस हिस्से की इसमें भूमिका रही और जिन राजनेताओं ने एक अफवाह को साख प्रदान की, क्या कभी कानून के हाथ उन तक पहुंच सकेंगे? यह प्रश्न इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं।
तमिलनाडु में बिहारियों पर हमले की अफवाह को लेकर जैसी सियासत गरमाई, वह आज के भारत का आईना है। इस मामले में तो फिर भी सच सामने आ गया, लेकिन देश में गुजरे वर्षों में जो माहौल रहा है, उसमें अनगिनत अफवाहें बहुत से लोगों के मन में स्थायी सच के रूप में बैठ चुकी हैं। तमिलनाडु सरकार की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि उसने न सिर्फ सच को सामने लाने में सक्रिय भूमिका निभाई, बल्कि अफवाहबाजों पर कानूनी कार्रवाई की शुरुआत भी की है। गौरतलब है कि तमिलनाडु में कथित हिंसा को किसी व्यक्ति ने अपनी आंख से नहीं देखा था। लेकिन हर व्यक्ति मोबाइल फोन पर वीडियो और मैसेज आने का हवाला दे रहा था। जबकि सच यह है कि जिस पवन की हत्या का वीडियो वायरल कर दहशत का माहौल बनाया गया, उसका कत्ल किसी महिला से संबंध के शक में किया गया था। इस मामले में पुलिस ने एक झारखंड निवासी को गिरफ्तार किया है। इससे पहले तमिलनाडु में बिहार के लोगों के साथ मारपीट व हत्या की अफवाह इतनी तेजी से फैली कि बिहार के कामगार बड़ी संख्या में वापस लौटने लगे।
गौरतलब है कि इस अफवाह को फैलने में न सिर्फ मीडिया और सोशल मीडिया, बल्कि राजनीतिक पार्टियों और नेताओं की भी बड़ी भूमिका रही। इस बात के लिए फैक्ट चेकर्स की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उनकी मेहनत से जल्द ही यह साफ हो गया कि हमले की अफवाह जानबूझ कर फैलाई गई। अब प्रश्न है कि मीडिया के जिस हिस्से की इसमें भूमिका रही और जिन राजनेताओं ने एक अफवाह को साख प्रदान की, क्या कभी कानून के हाथ उन तक पहुंच सकेंगे? यह प्रश्न इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ऐसी घटनाएं कभी गौ-तस्करी और कभी धर्म परिवर्तन की कोशिश के नाम पर भी देश में लगातार हो रही हैं। उन घटनाओं का परिणाम अक्सर हिंसा के रूप में सामने आता है। चूंकि यह धारणा बन गई है कि अफवाह फैलाने में कोई जोखिम नहीं है, इसलिए निहित स्वार्थी या किसी खास राजनीति से प्रेरित तत्व ऐसे कार्यों में बेखौफ शामिल होते रहे हैँ।