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जमूरों के भरोसे चलता आभासी-संसार

अब राहुल हों या नरेंद्र भाई, इतना बड़ा देश है, किस-किस को फॉलो करें? जिसे न करें, वही मुंह फुला लेगा। एक अनार, सौ बामारों का कैसे इलाज़ करे? इसलिए अपने अनुगामियों की तुलना में नरेंद्र भाई सिर्फ़ 0.003 प्रतिशत लोगों को और राहुल महज़ 0.001 फ़ीसदी लोगों को ही फॉलो करते हैं। मैं तो मानता हूं कि इतना बड़प्पन दिखाना भी जनतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए काफी है। वरना संसार के सब से बड़े लोकतंत्र का राष्ट्रपति को पूरा ठेंगा ही दिखाए बैठा है।

आप ही की तरह इतनी तो अक़्ल मुझ में भी है कि मैं समझ सकता हूं कि नरेंद्र भाई मोदी और राहुल गांधी जैसे बड़े लोग अपने आभासी-मंचों यानी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का संचालन ख़ुद नहीं करते हैं। इस काम के लिए वे एक टोली रखे रहते हैं। ठीक भी है। अगर ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर वे स्वयं ही बैठे रहेंगे तो देश कब चलाएंगे? और, देश नहीं चलाएंगे तो देश चलेगा कैसे? सो, देश को चलाने की ख़ातिर वे आभासी-संसार में अपनी मौजूदगी बनाए रखने का ज़िम्मा दूसरों पर छोड़ देते हैं और फिर यह दूसरों की बुद्धि पर है कि वे अपने-अपने ज़िल्ले-सुब्हानी की कैसी शक़्ल दुनिया के सामने पेश करते हैं। 

मगर नरेंद्र भाई हों या राहुल, अपने नाम से चलने वाली चूं-चूं मुठिया यानी ट्विटर और शक़्ल-पुस्तिका यानी फेसबुक पर परोसी जा रही सारी सामग्री के लिए तकनीकी और नैतिक तौर पर ज़िम्मेदार तो वे ख़ुद ही माने जाएंगे न! सो, अगर उन की तरफ़ से शीशी भरी गुलाब कीजैसी कोई ट्रक-टेंपो शेर-ओ-शायरी पोस्ट होती है तो लोग तो उन्हीं पर हंसेंगे। लोगों को भले ही मालूम हो कि यह नरेंद्र भाई या राहुल के दिमाग़ की नहीं, उन की टोली के किसी नन्हे-मुन्ने राही के अधकचरे मस्तिष्क की उपज है – इतनी जवाबदेही तो मूल खातेदार की मानी ही जाएगी कि उस ने अपने बहीखातों के पन्नों पर ऐसे जमूरे बिठा क्यों रखे हैं

ज़्यादातर बड़े लोग इसलिए बड़े हैं कि उन्हें तो ज़माना फॉलो करता है, मगर वे इने-गिनों को ही अपने सामाजिक संप्रेषण मंचों पर फॉलो करते हैं। मसलन, ट्विटर पर इस वक़्त सब से ज़्यादा फॉलोअर एलन मस्क के हैं। वे ट्विटर के मालिक जो ठहरे! जितने चाहें फॉलोअर बना लें। सो, उन के 13 करोड़ 38 लाख से ज़्यादा फॉलोअर हैं। मगर वे ख़ुद सिर्फ़ 190 लोगों को फॉलो करते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के करीब पौने चार करोड़ फॉलोअर हैं, लेकिन वे महज़ 47 को ही फॉलो करते हैं। अरे, अमेरिकी राष्ट्रपति हैं भाई, कोई सड़क-चलते थोड़े ही हैं। यह अलग बात है कि उन के पूर्ववर्ती बराक ओबामा के सामने वे फॉलोअर की तादाद में कहीं नहीं ठहरते हैं। ओबामा दुनिया में ट्विटर-अनुगामियों के मामले में मस्क के बाद दूसरे क्रम पर हैं। उन की गठरी में 13 करोड़ 30 लाख फॉलोअर हैं, मगर वे इतने उदार भी हैं कि 5 लाख 62 हज़ार से ज़्यादा लोगों को ख़ुद भी फॉलो करते हैं। 

हमारे नरेंद्र भाई के पौने नौ करोड़ से ज़्यादा फॉलोअर हैं। वे ढाई हज़ार से कुछ ज़्यादा लोगों को फॉलो भी करते हैं। हाथ धो कर जिन राहुल गांधी के वे पीछे पड़े हैं, उन राहुल के ट्विटर-अनुगामियों की संख्या 2 करोड़ 32 लाख है, मगर राहुल ख़ुद सिर्फ़ 269 को ही फॉलो करते हैं। नरेंद्र भाई अब तक 38 हज़ार से ज़्यादा ट्वीट कर चुके हैं। राहुल ने पौने 7 हज़ार के आसपास ट्वीट किए हैं। राहुल ने ट्विटर पर अपना खाता अप्रैल 2015 में खोला था और नरेंद्र भाई ने जनवरी 2009 में। इस हिसाब से राहुल औसतन सवा दो ट्वीट हर रोज़ करते हैं और नरेंद्र भाई सवा 7 ट्वीट हर रोज़। 

राहुल और नरेंद्र भाई दोनों अपने-अपने ट्विटर पर ऐसे-ऐसों को फॉलो करते हैं कि आप दंग रह जाएं। दोनों की ही सूची में ऐसे-ऐसे शामिल नहीं हैं कि आप देख कर चकित रह जाएं। मैं नहीं कहता कि वे जिन के अनुगामी हैं, उन के नाम देख कर या वे जिन के अनुगामी नहीं हैं, उन्हें सूची में अनुपस्थिति देख कर नरेंद्र भाई या राहुल के बारे में कोई राय बनाई जानी चाहिए। क्योंकि दोनों को इस संदेह का लाभ मिलना चाहिए कि वे ट्विटर पर किस का अनुगमन करेंगे और किस का नहीं – यह भी उन की तरफ़ से उन की लिपिक-टोली ने तय कर दिया होगा। लेकिन फिर भी व्यवस्था के मानस को समझने के लिए यह जानना दिलचस्प तो है ही कि वे किन्हें फॉलो करते हैं। 

तो आप को यह जान कर हैरत हो सकती है कि राहुल गांधी देश भर के जिन महज़ छह बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को फॉलो करते हैं, वे हैं -मृणाल पांडे, राघव बहल, पी, साईंनाथ, सायमा, नंदन नीलकेनी और कौशिक बसु। अगर आप सोचते हैं कि नरेंद्र भाई के ख़िलाफ़ झंडा बुलंद किए घूम रहे लेखकों, पत्रकारों, टीवीकर्मियों और यूट्यूब-सूत्रधारों को तो राहुल ज़रूर फॉलो करते होंगे तो चाहें तो अपने एकदम ग़लत होने पर विलाप कर लें! लेकिन नरेंद्र भाई हैं कि राहुल के रोम-रोम का विश्लेषण करने वाला शायद ही कोई ऐसा कलाकार-पत्रकार होगा, जिसे वे ट्विटर पर फॉलो नहीं करते हैं। मैं अनुपम खेर, शेखर कपूर और विवेक अग्निहोत्री की ही नहींसुधीर चौधरी, रूबिका लियाकत, सुशांत सिन्हा, गौरव आर्य और सुमित अवस्थी से ले कर, और-तो-और, अमन चोपड़ा तक की भी बात कर रहा हूं। बस, गिनते चले जाइए। 

कांग्रेस के जिन दिग्गजोंको राहुल फॉलो करते हैं, उन के नाम मैं आप को क्या बताऊं? लेकिन यह मैं आप को ज़रूर बताना चाहता हूं कि दिल्ली के सिर्फ़ तीन कांग्रेसियों को वे फॉलो करते हैं – अजय माकन, अनिल चौधरी और अमृता धवन। उन की सूची में जयप्रकाश अग्रवाल, सुभाष चोपड़ा, हारून यूसुफ़, संदीप  दीक्षित, रागिनी नायक, अलका लांबा, अरविंदर सिंह लवली, वग़ैरह कोई नहीं है। इसी तरह मध्यप्रदेश में अरुण यादव तो राहुल की सूची में हैं, मगर सुरेश पचौरी और अजय सिंह राहुल नहीं। कांग्रेस-अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के चार में से दो कार्यालयीन समन्वयकों को राहुल फॉलो करते हैं, मगर बाकी दो को नहीं। मैं ऐसी बहुत-सी अजीबोगरीब विरोधाभासी मिसालें दे सकता हूं, मगर आप कहेंगे कि मैं बाल की खाल निकाल रहा हूं, सो, यहीं रुक जाता हूं। 

अब राहुल हों या नरेंद्र भाई, इतना बड़ा देश है, किस-किस को फॉलो करें? जिसे न करें, वही मुंह फुला लेगा। एक अनार, सौ बामारों का कैसे इलाज़ करे? इसलिए अपने अनुगामियों की तुलना में नरेंद्र भाई सिर्फ़ 0.003 प्रतिशत लोगों को और राहुल महज़ 0.001 फ़ीसदी लोगों को ही फॉलो करते हैं। मैं तो मानता हूं कि इतना बड़प्पन दिखाना भी जनतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए काफी है। वरना संसार के सब से बड़े लोकतंत्र का राष्ट्रपति को पूरा ठेंगा ही दिखाए बैठा है। अमेरिका में तो किसी ने नहीं पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? यहां कम-से-कम मैं यह सवाल तो कर रहा हूं कि अगर अपने ट्विटर-मंच को संतुलित बनाने के लिए थोड़े ज़्यादा दरवाज़ों पर दस्तक दे दोगे तो आप का कुछ बिगड़ जाएगा क्या

लेकिन राहुल को ही क्यों कुछ कहूं? राहुल कम-से-कम 269 को तो फॉलो करते हैं, कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे तो सिर्फ़ 86 पर ही रुके हुए हैं। मीडिया-संप्रेषण की भारी-भरकम और सब से अहम ज़िम्मेदारी निभा रहे प्रभारी महासचिव जयराम रमेश तो 72 पर ही लटके हुए हैं। पार्टी-संगठन के प्रभारी महासचिव के. सी. वेणुगोपाल 150 से आगे नहीं बढ़ रहे। इन तीनों से ज़्यादा केंद्रीय भूमिका तो कांग्रेस में इस वक़्त राहुल की भी नहीं है। सो, जब खड़गे, जयराम और वेणुगोपाल मेरे सामने हैं तो मैं राहुल की उदारता का अभिनंदन क्यों न करूं? भांग जब पूरे कुंए में पड़ी हो तो मैं किसे त्रैलोक्यविजया-प्रेमी कहूं, किसे नहीं?

By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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