चीन-पाकिस्तान की सैन्य रणनीति में समरूपता बैठाने की कोशिशों के बीच अब टू फ्रंट वॉर की बात बेमायने हो गई है। कभी युद्ध की नौबत आई, तो भारत के सामने कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक एक ही मोर्चा होगा।
कई रक्षा विशेषज्ञ इस बात की चर्चा करते रहे हैं कि 5 अगस्त 2019 (जिस दिन भारत सरकार ने कश्मीर के लिए धारा 370 रद्द की और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया) के बाद का एक प्रमुख घटनाक्रम चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य संबंधों में आई निकटता है। दोनों देशों की सैन्य रणनीति और तैयारियों में समरूपता बैठाने की कोशिशों के बीच इन विशेषज्ञों की राय रही है कि अब भारत में टू फ्रंट वॉर की बात बेमायने हो गई है। टू फ्रंट वॉर का मतलब एक साथ चीन और पाकिस्तान दोनों के मोर्चों पर युद्ध होने से था। बल्कि अब सूरत यह है कि चीन और पाकिस्तान ने समान मोर्चा बना लिया है। इसलिए जब कभी युद्ध की नौबत आई, तो भारत के सामने कश्मीर से लद्दाख होते हुए अरुणाचल प्रदेश तक एक ही मोर्चा होगा। इस हफ्ते पाकिस्तान के नौ सेनाध्यक्ष की हुई बीजिंग यात्रा से इस आकलन की एक तरह से पुष्टि होती नजर आई है।
वहां चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफू ने पाकिस्तान के नौ सेनाध्यक्ष से कहा कि दोनों देशों की नौ सेनाओं सहित तमाम सेनाओं को ‘नए क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार’ करना चाहिए, ताकि ‘इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने’ की अपनी साझा क्षमता को वे बढ़ा सकेँ। ली ने कहा कि चीन और पाकिस्तान के द्विपक्षीय रिश्तों में सैन्य संबंध का सबसे प्रमुख स्थान है। उनकी यह टिप्पणी गौरतलब है- ‘दोनों देशों की सेनाओं को अपने आदान-प्रदान को नए क्षेत्रों तक बढ़ाना चाहिए। उन्हें सहयोग को एक नई ऊंचाई देनी चाहिए, जिससे तमाम तरह की चुनौतियों और खतरों का मुकाबला करने की उनकी क्षमता बढ़े और वे मिल कर दोनों देशों और इस क्षेत्र में अपने सुरक्षा हितों को बरकरार रख सकेँ।’ पाकिस्तान के नौ सेनाध्यक्ष अमजद खान नियाजी की इस चीन यात्रा से पहले चीन के सेंट्रल मिलिटरी कमीशन के उपाध्यक्ष झांग यूशिया ने कहा था कि चीनी सेना पाकिस्तान की सेना के साथ अपने संबंध को अधिक गहरा और अधिक विस्तृत करना चाहती है। यह चर्चा भी जोरों पर है कि चीन पाकिस्तान के ग्वादार में बने बंदरगाह पर अपनी सेना तैनात करना चाहता है।