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घटते रसूख की मिसाल

संकेत हैं कि पश्चिम एशिया के देश अब अमेरिका का दामन छोड़ कर रूस के सहयोगी बन गए हैं। चूंकि ये देश पेट्रोलियम और गैस का भंडार हैं, इसलिए उनके रुख में ऐसा बदलाव पूरी दुनिया के लिए मायने रखता है।

तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक+ ने अमेरिका को झटका दिया है। ओपेक में प्रमुख देश सऊदी अरब है। ताजा फैसले का सीधा संकेत है कि सऊदी अरब अमेरिका की मर्जी और मंशा की बिल्कुल परवाह नहीं कर रहा है। जिस समय पश्चिमी देशों में बमुश्किल महंगाई कुछ काबू में आती नजर आ रही थी, ओपेक+ ने तेल के रोजाना उत्पादन में कटौती का फैसला कर लिया। इससे विश्व बाजार में तेल के भाव फिर चढ़ गए हैँ। स्पष्टतः ओपेक+ के निर्णय से महंगाई और बढ़ेगी। आम अनुमान है कि उसके परिणामस्वरूप विभिन्न देशों के सेंट्रल बैंक ब्याज दरें बढ़ाएंगे। उसका नतीजा अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर धीमी होने के रूप में तो सामने आएगा ही, साथ ही उससे अमेरिका और यूरोप का मौजूदा बैंकिंग संकट और भीषण रूप ले सकता है। दूसरी तरफ विश्व बाजार में कच्चे तेल का भाव बढ़ने से रूस को फायदा होगा। ओपेक तेल निर्यातक देशों का संघ है। जब से रूस इससे जुड़ा इस संगठन को ओपेक प्लस के नाम से जाना जाता है।

रोजाना 11 लाख 60 हजार बैरल कम कच्चे तेल का उत्पादन करने का फैसला घोषित होने के तुरंत बाद विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने लगी। ओपेक ने कहा है कि यह फैसला तेल बाजार में स्थिरता लाने के मकसद से किया गया है। लेकिन अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ने कहा है अभी बाजार में जैसा अनिश्चय है, उसे देखते हुए उत्पादन में कटौती उचित नहीं है। जाहिर है, अमेरिका को यह निर्णय पसंद नहीं आया है। इससे यह राय और मजबूत हुई है कि सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंध सामान्य बनाने के लिए हुए समझौते से पश्चिम एशिया में अमेरिका का प्रभाव घटा है। उसके ऐसा लगता है कि अब उस क्षेत्र के देश फैसला लेने से पहले अमेरिका से राय-मशविरा करने की जरूरत नहीं महसूस कर रहे हैं। यह विश्व समीकरण में आया एक बड़ा बदलाव है। पश्चिम एशिया के देश अब रूस के सहयोगी बन गए हैं। चूंकि ये देश पेट्रोलियम और गैस का भंडार हैं, इसलिए उनके रुख में ऐसा बदलाव पूरी दुनिया के लिए मायने रखता है।

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By NI Editorial

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