अब ऐसा लगता है कि दुनिया म्यांमार के लोगों को उनकी तकदीर के भरोसे छोड़ चुकी है। अब ताजा खबरें बताती हैं कि पश्चिमी प्रतिबंधों से अर्थव्यवस्था भले बाधित हुई हो, लेकिन यह पूरी तरह ठप नहीं हुई।
साल 2021 में एक फरवरी को म्यांमार की सेना ने नव-निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को जेल में डालते हुए सत्ता पर कब्जा जमा लिया था। उस घटना के बाद गुजरे दो साल में देश में गृह युद्ध जैसी स्थिति रही है। पहले अभूतपूर्व अहिंसक प्रतिरोध देखने को मिला। उसे दमन से दबा दिया गया, तो उसके बाद से हथियारबंद गुटों ने छापामार लड़ाई का तरीका अपना रखा है। तख्ता पलट के तुरंत बाद पश्चिमी देशों ने म्यांमार पर सख्त प्रतिबंध लगाए थे। उसका असर अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में देखने को मिला। लेकिन अब ऐसा लगता है कि दुनिया म्यांमार के लोगों को उनकी तकदीर के भरोसे छोड़ चुकी है। अब ताजा खबरें बताती हैं कि पश्चिमी प्रतिबंधों से अर्थव्यवस्था भले बाधित हुई हो, लेकिन यह पूरी तरह ठप नहीं हुई।
बल्कि हाल के दिनों में वस्त्र उद्योग जैसे कुछ क्षेत्रों में रिकवरी देखने को मिली है। 2022 में जनवरी से सितंबर तक म्यांमार से यूरोपियन यूनियन, जापान और अमेरिका के लिए 3.3 बिलियन डॉलर के वस्त्र का निर्यात हुआ। यह एक रिकॉर्ड है। 2021 की इसी अवधि की तुलना में यह डेढ़ गुना ज्यादा है। जाहिर है, उन देशों ने म्यांमार को अर्थव्यवस्था को इतना ठप नहीं किया, जिससे सैनिक शासकों के लिए राज करना मुश्किल हो जाता। हकीकत यह है कि एचएंडएम, एडीडास और यूनिकलो जैसी पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने म्यांमार के कारोबारियों से वस्त्र उत्पादों को खरीदना जारी रखा है। इसके अलावा कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें आर्थिक प्रतिबंध बेअसर होते देखे गए हैँ। आम उपभोक्ता वस्तुओं की निर्माता कंपनियों ने म्यांमार में अपना कारोबार जारी रखा है। जबकि वैसे गुजरे दो वर्षों में म्यांमार में आम इनसान की जिंदगी मुहाल हुई है। मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण देश में चावल और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमत पिछले दो वर्ष में बढ़ कर 1.3 गुना हो गई है। खाद्य तेलों की कीमत दो गुना बढ़ गई है। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक म्यांमार की 40 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गई है। 2019 में ये आंकड़ा 20 प्रतिशत था। लेकिन सैनिक शासक बेपरवाह हैं। वे अपनी सत्ता को स्थायित्व देने के लिए चुनाव का नाटक रचने की तैयारियों में जुटे हुए हैँ।