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मणिपुर में कोई हल नहीं?

हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सका है। राज्य में ऐसा माहौल बन गया है कि हर व्यक्ति सामने वाले को संदेह की निगाहों से देखने लगा है। ऐसे में समाधान सिर्फ संवाद से ही निकल सकता है। मगर उसके लिए निष्पक्ष माध्यम की जरूरत है।

मणिपुर में हिंसा और अविश्वास के माहौल का कोई समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। बल्कि अगर मैतयी और कुकी समुदायों के बीच अविश्वास की बात करें, तो हालत बिगड़ती जा रही है। राज्य की हालत से परिचित जानकारों ने कहा है कि सबसे बड़ी समस्या संवाद के सभी माध्यमों का टूट जाना है। ऐसे हालात में अक्सर सरकारें बातचीत का माहौल बनाती हैं। लेकिन जब सरकार को ही एक पक्ष माना जाने लगे, तो फिर समाधान निकलना बहुत टेढ़ी खीर बन जाता है। मणिपुर में ऐसा ही हुआ लगता है। इस बीच बड़े पैमाने पर हिंसा, आगजनी और विस्थापन के बीच प्रदेशवासियों और दूसरे प्रदेशों से आए कामगारों और कारोबारियों की हालत खराब होती जा है। एक ओर जहां उन्हें सुरक्षा की चिंता है, वहीं कामकाज भी ठंडा है। और बाहर से आए कामगारों के लिए फिलहाल राज्य से बाहर जाना भी आसान नहीं है। मई की शुरुआत से मैतेयी और कुकी-नागा समुदाय के बीच जारी हिंसा में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। सैकड़ों लोग घायल हुए हैं और हजारों मकान और अन्य इमारतों को जला दिया गया है।

हिंसा से डरे बहुत से लोगों ने घर से पलायन कर राज्य के राहत शिविरों या पड़ोसी मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और सुदूर दिल्ली तक शरण ली है। अनुमान के मुताबिक राज्य में दूसरे राज्यों से आए प्रवासियों की तादाद करीब पांच हजार है। इनमें बंगाली और मारवाड़ी के अलावा बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग और म्यांमार से दशकों पहले लौटे तमिल समुदाय के लोग भी शामिल हैं। राज्य में उन्हें बाहरी कहा जाता है। ये लोग पहले से भेदभाव का शिकार रहे हैँ। मौजूदा हालत में उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैँ। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से हालत सुधरने की उम्मीद निराधार साबित हो चुकी है। हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सका है, जबकि राज्य में ऐसा माहौल बन गया है कि हर व्यक्ति सामने वाले को संदेह की निगाहों से देखने लगा है। ऐसे में समाधान सिर्फ संवाद से ही निकल सकता है। जबकि उसके लिए निष्पक्ष माध्यम की जरूरत है।

By NI Editorial

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