राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

विपक्षी एकता का आधा अधूरा प्रयास

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी पार्टियों की रणनीति को लेकर हाल में कई वक्तव्य आए हैं, जिन पर बारीकी से और वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार करने की जरूरत है। पहले कांग्रेस पार्टी के तिरूवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने कहा कि अगर हर लोकसभा सीट पर विपक्ष का एक उम्मीदवार हो तो भाजपा को रोका जा सकता है। यह बात पहली बार कांग्रेस के सामने प्रेजेंटेशन देते हुए प्रशांत किशोर ने कही थी। भाजपा को कायदे से टक्कर देने का यह एकमात्र फॉर्मूला है। परंतु मुश्किल यह है कि कांग्रेस यह मान कर बैठी है कि वह पूरे देश की पार्टी है और बाकी विपक्षी पार्टियां एक एक राज्य की हैं। यह बात कांग्रेस के बड़े नेता पी चिदंबरम ने कही है। इसी से मिलती जुलती बात कांग्रेस के संचार विभाग के प्रवक्ता जयराम रमेश ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जवाब देते हुए कही। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकता संभव नहीं है। तो दूसरी ओर प्रादेशिक पार्टियां जबरदस्ती राष्ट्रीय बनने की जिद ठाने बैठी हैं।

इससे पहले नीतीश कुमार ने सीपीआई एमएल के अधिवेशन में कहा था कि, ‘अब कांग्रेस को निर्णय लेना होगा कि 2024 में क्या रणनीति होनी चाहिए और विपक्षी एकता को किस तरह से मजबूत करना चाहिए। यदि कांग्रेस इस बात पर तैयार हो जाए तो 2024 में भाजपा एक सौ सीटों के अंदर सिमट कर रह जाएगी’। लेकिन सवाल है कि ऐसा होगा कैसे? अगर विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के बचे खुचे आधार में अपनी साझेदारी करना चाहेंगी तो कांग्रेस उसके लिए तैयार नहीं होगी और अगर कांग्रेस बाकी सभी विपक्षी पार्टियों को एक एक राज्य की पार्टी बता कर अपनी अनिवार्यता जाहिर करती रहेगी तो विपक्ष को साथ लाना मुश्किल होगा। सो, जैसा कि चिदंबरम ने कहा कि ‘गिव एंड टेक’ का रास्ता लेना होगा। सबको अपने अपने हितों में से कुछ त्याग करना होगा।

बहरहाल, नीतीश कुमार की कांग्रेस से अपील को लेकर मीडिया में जो चर्चा हुई वह इस बात पर केंद्रित रही कि नीतीश ने भाजपा को एक सौ सीट के नीचे समेट देने की बात कही है। यह एक तरह का अतिवाद है। लेकिन चूंकि भाजपा भी दावे करने में ऐसे ही अतिरेक करती है इसलिए विपक्षी पार्टियां भी उस रास्ते पर चल रही हैं। लेकिन असली बात वहीं है, जो नीतीश ने पिछले साल भाजपा से संबंध तोड़ते समय कही थी। तब उनका संकल्प भाजपा की 50-60 सीटें कम करने का था। उन्होंने और उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा था कि बहुमत तो आंकड़ों का खेल है। अगर भाजपा की 50 से 60 सीटें कम हो जाती हैं तो उसका बहुमत समाप्त हो जाएगा। सो, भाजपा को बहुमत से नीचे लाने से लेकर उसको सौ सीट के नीचे समेटने तक के नीतीश कुमार के संकल्प में कई अगर मगर हैं।

उन्होंने खुद ही कहा कि कांग्रेस फैसला करे कि किस तरह से विपक्षी एकता बनानी है। सवाल है कि क्या कांग्रेस जो फैसला करेगी, उसे देश की सारी विपक्षी पार्टियां मानेंगी? जबकि अभी यह भी तय नहीं है कि खुद नीतीश की बात दूसरी विपक्षी पार्टियां मानेंगी या नहीं। उन्होंने कई विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की है लेकिन ऐसी कोई खबर नहीं है कि विपक्षी पार्टियों ने उनको अधिकृत किया है कि वे उनकी तरफ से कांग्रेस के सामने कोई प्रस्ताव रखें। सो, अगर नीतीश विपक्ष की ओर से अधिकृत नहीं हैं तो विपक्षी एकता के बारे में फैसला करने की अपील कांग्रेस से करने का क्या मतलब है? अगर वे अपने राज्य बिहार की बात करें तो बात समझ में आती है। बिहार में कांग्रेस उनकी सहयोगी है और अगर राजद, जदयू, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां मिल कर लड़ती हैं तो 40 सीटों पर भाजपा के मुकाबले विपक्ष का एक उम्मीदवार हो सकता है। नीतीश, तेजस्वी और कांग्रेस की पहल पर इस तरह का समीकरण झारखंड में भी बन सकता है। अगर इन दो राज्यों की 54 में से हर सीट पर भाजपा के मुकाबले विपक्ष का एक उम्मीदवार हो तो भाजपा के लिए मुकाबला बहुत कठिन हो जाएगा। जदयू के अलग होने के बाद इन 54 में से भाजपा के पास 29 और एनडीए के पास 36 सीटे हैं। जब तक जदयू साथ थी तब तक 45 सीटें एनडीए के पास थीं।

जहां तक हर सीट पर एक विपक्षी उम्मीदवार उतारने की बात है तो अगर विपक्षी पार्टियां ईमानदारी से इस दिशा में काम करें तो ऐसा होना मुश्किल नहीं है। इसके लिए सभी विपक्षी पार्टियों को साथ बैठ कर तय करना होगा। वस्तुनिष्ठ तरीके से एक दूसरे की ताकत और कमजोरी का आकलन करना होगा और उस आधार पर सीटों का बंटवारा करना होगा। विपक्ष को एक साझा राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की बजाय राज्यवार ऐसा मोर्चा बनाना होगा। ऐसा तब हो पाएगा, जब ऐन केन प्रकारेण अपने को राष्ट्रीय पार्टी बनाने में लगीं प्रादेशिक पार्टियां अपनी जिद छोड़ें। जबरदस्ती राष्ट्रीय पार्टी बनने की महत्वाकांक्षा में क्षेत्रीय पार्टियों के नेता अपने को भाजपा की बजाय कांग्रेस के मुकाबले में खड़ा कर रही हैं। उनको कांग्रेस आसान टारगेट दिख रही है, जिसे नुकसान पहुंचा कर वे अपनी ताकत बढ़ा लेंगी। हो सकता है कि इसमें उनको कुछ राज्यों में फायदा हो जाए लेकिन वे भाजपा का मुकाबला करने वाली ताकत नहीं बन पाएंगी। मिसाल के तौर पर अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने गुजरात में कांग्रेस को कमजोर कर दिया। लेकिन ऐसा नहीं है कि वह अब गुजरात में भाजपा का मुकाबला करने वाली पार्टी हो गई है। हकीकत यह है कि अब कांग्रेस और आप दोनों भाजपा का मुकाबला करने वाली ताकत नहीं रह गए हैं।

इस एक राज्य के उदाहरण से विपक्षी पार्टियों को पूरी तस्वीर समझनी चाहिए। वे कांग्रेस को कमजोर करके अपने को भाजपा से लड़ने लायक नहीं बना पाएंगी। नीतीश कुमार की बातों से लग रहा है कि वे इसी लाइन पर सोच रहे हैं और विपक्षी एकता बनाने की गेंद कांग्रेस के पाले में डाल कर कांग्रेस को फांसी लगाने का प्रयास कर रहे हैं। उनके कहने का मतलब यह है कि भाजपा को हराने के मकसद से विपक्षी एकता बनाने में कांग्रेस कुर्बानी दे? कांग्रेस अपने हितों का त्याग करके प्रादेशिक पार्टियों को मजबूत करे ताकि राज्यों में भाजपा से मुकाबला हो सके? कांग्रेस के पाले में गेंद डाल कर नीतीश विपक्षी खेमे में भी अपनी जगह मजबूत करना चाहते हैं। उनको लग रहा है कि अगर इस दिशा में कोई पहल होती है तो वे कांग्रेस और कांग्रेस विरोधी विपक्षी पार्टियों के बीच पंच बन सकते हैं। ध्यान रहे ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को कांग्रेस की कीमत पर अपनी ताकत बढ़ानी है। उन्होंने जिस तरह की राजनीति की है उसमें उम्मीद नहीं है कि कांग्रेस उनसे बात करेगी। लेकिन अगर नीतीश इन तीनों नेताओं को यह भरोसा दिलाते हैं कि वे कांग्रेस से बात करके वह दिला देंगे, जो उनको चाहिए तो फिर ये तीनों नेता नीतीश की पंच की भूमिका स्वीकार कर लेंगे।

परंतु सवाल है कि कांग्रेस पार्टी पश्चिम बंगाल से बाहर क्यों किसी राज्य में तृणमूल कांग्रेस के लिए या तेलंगाना से बाहर भारत राष्ट्र समिति के लिए सीट छोड़ेगी? आम आदमी पार्टी के लिए भी कांग्रेस दिल्ली, पंजाब के अलावा किसी और राज्य में क्यों अपनी जगह छोड़े? अगर ये पार्टियां अपनी राजनीतिक स्थिति को समझती हैं और अपने मजबूत असर वाले इलाकों के बाहर सीट लेने की जिद नहीं करती हैं तो कांग्रेस के साथ साझा बनने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। मुश्किल तब आएगी, जब कांग्रेस से और जमीन छोड़ने को कहा जाए। अगर बीआरएस महाराष्ट्र, ओड़िशा, कर्नाटक आदि राज्यों में सीट मांगे या आम आदमी पार्टी गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में सीट मांगे या तृणमूल कांग्रेस गोवा से पूर्वोत्तर तक के राज्यों में सीट मांगे तब कांग्रेस को दिक्कत होगी। इन पार्टियों की यह मांग व्यावहारिक भी नहीं होगी क्योंकि कांग्रेस पहले से ही बहुत कमजोर स्थिति में है, उसे और कमजोर करने के प्रयास से अंततः भाजपा को फायदा होगा।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *