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गोलबंद होते सियासी मूड

यह बात लगभग पूरे भरोसे के साथ कही जा सकती है कि देश में भाजपा और उसके विरोध में जनमत अपेक्षाकृत अधिक सघन रूप ग्रहण कर रहा है। इसमें नई बात भाजपा विरोधी जनमत में भाजपा शासन से मुक्त होने का बढ़ रहा संकल्प है।

साल भर बाद होने वाले आम चुनाव के बारे में अभी कोई अनुमान लगाना पूरी तौर पर कयासबाजी है। यह अब एक मान्य सिद्धांत है कि हर चुनाव नए हालात और नई व्यूहरचना के बीच लड़ा जाता है। इसलिए अगले साल के आरंभ में क्या माहौल बनेगा (अथवा बनाया जाएगा) और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी चुनाव अभियान में कैसी आक्रामकता दिखाएगी, उसका अनुमान लगाना अभी मुश्किल ही है। बहरहाल, इस समय जो बात लगभग पूरे भरोसे के साथ कही जा सकती है, वो यह है कि देश में भाजपा और उसके विरोध में जनमत अपेक्षाकृत अधिक सघन रूप ग्रहण कर रहा है। भाजपा के पक्ष का जनमत तो पिछले लगभग दस साल से इसी ठोस रूप में है, लेकिन नई बात उसके विरोधी जनमत में भाजपा शासन से मुक्त होने का बढ़ रहा संकल्प है। कर्नाटक का चुनाव नतीजा भी काफी हद तक इस संकल्प का परिणाम था, जहां अपना वोट प्रतिशत ना खोने के बावजूद भाजपा बुरी तरह हार गई। अब एनडीटीवी-सीएसडीएस लोकनीति के जनमत सर्वेक्षण से संकेत मिला है कि यह परिघटना पूरे देश में हो रही है।

इस सर्वे से सामने आया कि राष्ट्रीय स्तर पर 43 प्रतिशत मतदाता भाजपा के पक्ष में बने हुए हैं। जबकि 38 प्रतिशत मतदाता उसके खिलाफ गोलबंद हैं। सबसे चौंकाने वाला नतीजा राहुल गांधी के प्रति लोगों के नजरिए में आया बदलाव है। 29 प्रतिशत लोग अब उन्हें नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में देख रहे हैं, जिन्हें 43 प्रतिशत लोगों की एप्रूवल रेटिंग मिली हुई है। बेशक, भारत में चुनाव की सेटिंग्स राज्यों के स्तर पर होती है। इसलिए राष्ट्रीय जनमत अक्सर चुनाव नतीजों में व्यक्त नहीं होता। मगर इस मुकाम पर भी भाजपा की चुनौतियां कम नहीं हैं। महाराष्ट्र और बिहार दो ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने पिछले दो बार उसे भारी समर्थन दिया, लेकिन अब वहां समीकरण बदलने के संकेत हैँ। इसके अलावा जिन राज्यों में उसने अधिकतम समर्थन हासिल कियाथा, वहां उसी स्तर का समर्थन सिर्फ किसी भावनात्मक मुद्दे पर आंधी चला कर ही फिर हासिल किया जा सकता है। स्पष्टतः, 2024 के चुनाव की फिलहाल नई सेटिंग तैयार होती दिख रही है।

By NI Editorial

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