कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कई घटनाएं हो रही हैं। कुछ सतह पर हैं, जो सबको दिखाई दे रही हैं और कुछ सतह के नीचे चल रही हैं, जिसकी आहट तो महसूस की जा रही है लेकिन उसके दूरगामी असर का अंदाजा अभी नहीं लगाया जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके बेटे प्रियांक खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जो हमला किया उसे बेंगलुरू से लेकर दिल्ली तक सुना गया है। वह तात्कालिक राजनीतिक नफा-नुकसान के आकलन से परे एक बड़े राजनीतिक गेमप्लान का हिस्सा हो सकता है। इसी तरह कांग्रेस के घोषणापत्र में बजरंग दल के ऊपर पाबंदी का जो वादा है वह भी दूरगामी असर वाला है। कर्नाटक की सीमा से बाहर पूरे देश में इसका असर महसूस होगा। ये दोनों मुद्दे कांग्रेस के दलित-मुस्लिम के पुराने वोट बैंक से जुड़े हैं और इसलिए कांग्रेस की किस्मत बदलने वाले हो सकते हैं।
असल में कांग्रेस अपने दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण के अपने पुराने वोट आधार में से सबसे पहले ब्राह्मण वोट की वापसी की उम्मीद कर रही थी। उसे लग रहा था कि भाजपा के मौजूदा नेतृत्व की ओबीसी राजनीति ब्राह्मण वोट को उससे दूर करेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उलटे हिंदुत्व की राजनीति ने ब्राह्मण को भाजपा से ज्यादा मजबूती से जोड़ा। तभी अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस दलित, मुस्लिम और उसके बाद ओबीसी वोट पर फोकस कर रही है। कांग्रेस को इस बात की वास्तविक संभावना दिख रही है कि दलित उसके साथ लौट सकता है। यह संभावना मल्लिकार्जुन खड़गे की वजह से भी दिख रहे है, जो दलित समुदाय से आते हैं। और इस वजह से भी दिख रही है क्योंकि देश के बड़े हिस्से में दलित राजनीति का प्रतिनिधित्व करने वाली बहुजन समाज पार्टी हाशिए में जा रही है। ध्यान रहे बसपा ने ही मुख्य रूप से कांग्रेस का दलित वोट तोड़ा था। अब बसपा बहुत कमजोर हो गई है। उसका वोट टूट रहा है। पिछले साल के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बसपा को 12.88 फीसदी वोट मिले, जबकि 2017 के चुनाव में उसे 22.23 फीसदी वोट मिले थे। उसे 10 फीसदी वोट का नुकसान हुआ। ध्यान रहे उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम 35 फीसदी से ज्यादा है।
सो, इस तथ्य की रोशनी में अब खड़गे पिता-पुत्र के बयान को देखें। खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए उनकी तुलना ‘जहरीले सांप’ से की। हालांकि बाद में उन्होंने सफाई दी और खेद भी जताया। इसके बावजूद यह मानना मुश्किल है कि उन्होंने अनजाने में यह बात कही थी। इसके बाद उनके बेटे प्रियांक खड़गे ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘नालायक’ कहा। इस पर उनको चुनाव आयोग का नोटिस भी मिला लेकिन उसके बाद चुनावी सभाओं में उनका बचाव करते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि प्रियांक की टिप्पणी बंजारा समुदाय के लिए कुछ नहीं करने की वजह से की गई थी। बंजारा भी दलित समुदाय में आते हैं। सो, खड़गे पिता-पुत्र का बयान दलित भावना का प्रकटीकरण माना जा सकता है। हो सकता है कि उत्तर भारत में तत्काल इसका असर नहीं पहुंचे लेकिन दक्षिण भारत में एक शुरुआत हो सकती है।
इसके साथ यदि बजरंग दल पर पाबंदी के कांग्रेस के वादे को मिला कर देखें तो एक मुकम्मल तस्वीर बनती है। देश भर के मुस्लिम खासकर नौजवान मुख्यधारा की पार्टियों से उबे हुए हैं। यही असदुद्दीन ओवैसी को मिल रही सफलता का राज है। वे अपने लिए नेता खोज रहे हैं। ऐसा नेता, जो सामने से भाजपा, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों जैसे विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल आदि से भिड़ सके, जो सीधी लड़ाई लड़ सके। कांग्रेस ने यही काम कर्नाटक में किया है। बजरंग दल पर पाबंदी लगाने का वादा करने की हिम्मत न तो ममता बनर्जी कर पाई हैं और न लालू प्रसाद और अखिलेश यादव कर पाए हैं। अब कर्नाटक का नतीजा चाहे जो निकले लेकिन कांग्रेस के लिए मुसलमानों के मन में बनी पुरानी धारणा समाप्त होगी। वह नए सिरे से उसके बारे में सोचना शुरू करेंगे।
ध्यान रहे 1992 में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा टूटने के बाद से मुसलमानों की कांग्रेस से दूरी बननी शुरू हुई थी। उनको जहां भी दूसरा विकल्प मिला उन्होंने इसे अपना लिया। अब मुसलमान कांग्रेस को उन्हीं राज्यों में वोट देता है, जहां उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं या जहां भाजपा से लड़ने वाली कोई क्षेत्रीय पार्टी मौजूद नहीं है। जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है वहां कांग्रेस को मुस्लिम वोट मिलता है। कर्नाटक में कांग्रेस के वादे के बाद यह स्थिति बदल सकती है। मुसलमानों का कांग्रेस पर भरोसा बढ़ेगा। असल में कांग्रेस पिछले कुछ समय से इसका प्रयास कर रही थी। राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा में धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा उठाया। वैचारिक स्पष्टता के कई प्रयास किए। इसी कोशिश में उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर के विचारों का आक्रामक तरीके से विरोध किया। अब कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में अपने घोषणापत्र में बजरंग दल पर पाबंदी का वादा किया है। इस वादे के बाद कांग्रेस नेताओं ने सफाई नहीं दी है, बल्कि इसका बचाव किया है। इससे भी जाहिर होता है कि यह सोची समझी योजना का हिस्सा है। कांग्रेस नेता बजरंग बली के मंदिरों में जा रहे हैं, पूजा-पाठ कर रहे हैं और बजरंग दल का विरोध भी कर रहे हैं। खड़गे के चेहरे पर कांग्रेस दलित और मुस्लिम राजनीति को यदि आगे बढ़ाती है तो पूरे देश में इसका असर हो सकता है। हिसाब से प्रादेशिक पार्टियों को भी कांग्रेस की इस रणनीति से होशियार हो जाने की जरूरत है।