कुपोषण-ग्रस्त, अर्ध-शिक्षित और आज के तकाजे को पूरा ना करने वाले डिग्रीधारी नौजवानों की भीड़ के साथ भारत उन संभावनाओं को हासिल नहीं कर सकता है, जिन्हें चीन ने सबसे बड़ी आबादी का देश रहते हुए प्राप्त किया।
पूरे ज्ञात मानव इतिहास में यह संभवतः पहली बार होने जा रहा है, जब भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बनेगा। ऐतिहासिक रूप से हकीकत यही रही है कि चीन और भारत में हमेशा सबसे अधिक मानव जनसंख्या बसती रही है। इसकी वजह इन दोनों का मनुष्य के रहने लायक अधिक अनुकूल वातावरण और उपजाऊ जमीन रही हैं। आधुनिक तकनीक के विकास के पहले दुनिया के बाकी हिस्सों में इनसान की जिंदगी अपेक्षाकृत ज्यादा मुश्किल थी। बहरहाल, भारत की आबादी चीन से अधिक इसके पहले कभी हुई, इस बारे में जानकारी नहीं है। इसीलिए 2023 को एक ऐतिहासिक वर्ष के रूप में याद किया जाएगा। लेकिन क्या भारत इसे सचमुच एक ऐतिहासिक उपलब्धि का वर्ष बना पाएगा? आबादी अपने-आप में एक बड़ी संपत्ति है। परंपरागत कहावत है, जिस परिवार में काम करने वाले जितने हाथ होते हैं, वह उतना समृद्ध होता है। लेकिन समृद्धि के लिए यह भी जरूरी है कि वो हाथ मजबूत, स्वस्थ और सक्षम हों। विश्व बैंक ने 1980 में चीन के बारे में अपनी एक बहुचर्चित रिपोर्ट में बताया था कि कैसे उसके पहले के तीन दशकों में चीन ने अपनी पूरी आबादी के लिए प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का इंतजाम कर लिया।
इसलिए जब चीन ने सुधार और खुलेपन की नीति अपनाई, तो उसके पास उसे लागू करने के लिए सक्षम श्रम-शक्ति थी। जड़ों को मजबूत करने के इस मोर्चे पर आरंभ से आज तक भारत का रिकॉर्ड बेहतर नहीं है। कुपोषण-ग्रस्त, अर्ध-शिक्षित और आज के तकाजे को पूरा ना करने वाले डिग्रीधारी नौजवानों के साथ भारत उन संभावनाओं को हासिल नहीं कर सकता है, जिन्हें चीन ने सबसे बड़ी आबादी का देश रहते हुए प्राप्त किया। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि मानव विकास आज भी हमारी प्राथमिकता नहीं है। नतीजतन, 140 करोड़ लोगों के देश में महज दस करोड़ व्यक्तियों का उपभोक्ता बाजार बना कर हम फूले नहीं समा रहे हैँ। बहरहाल, सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बनना एक मौका है, जब ऐसी कमियों की निर्ममता से समीक्षा की जानी चाहिए। वरना, आबादी भारत के लिए संपत्ति साबित होने के बजाय एक कठिन चुनौती में बदल जाएगी।