इमरान खान गिरफ्तार है और पाकिस्तान अराजकता की गिरफ्त में। गिरफ़्तारी तो तय थी परन्तु जिस तरह से इमराम खान को हिरासत में लिया गया वह काफी नाटकीय था। सरकार को यह अंदाज़ा भी था कि इसके बाद क्या हो सकता है।पूरा देश अजीब-से, असहज माहौल, सस्पेंश में है। भारत में सोशल मीडिया पर हमारे पड़ोसी देश में अफरातफरी और गड़बड़ियों के वीडियो तैर रहे हैं। ताजा खबर है कि इमरान हिरासत में ही रहेंगे। उन्हें सुनवाई के लिए इस्लामाबाद की अदालत में नहीं लाया गया बल्कि अदालत उनके पास गयी।कई मौत हो चुकी है और कई गिरफ्तारियां भी। इन्टरनेट बंद है। पाकिस्तानी लोग ख़बरों से बेखबर है। जहाँ तक भारतीय मीडिया का सवाल है, वह पहले से ही समस्याओं से घिरे पाकिस्तान में इस नयी मुसीबत पर काफी ध्यान दे रहा है। और बहुत कुछ जानने वालों से लेकर कुछ नहीं जानने वाले तक पाकिस्तान के भविष्य के बारे में धड़ाध़ड़ भविष्यवाणियाँ कर रहे हैं।
पाकिस्तान में जो हो रहा है, वह एक न एक दिन होना ही था। पाकिस्तान के जन्म के वक्त से ही वहां की राजनीति में सेना का बोलबाला रहा है। चाहे नेता हो या अर्थव्यवस्था या आम लोग – सभी सेना की छाया और मुट्ठी में रहे हैं। शुरुआत में इमरान भी सेना की कठपुतली थे परन्तु बाद में सत्ता और लोकप्रियता ने उन्हें कुछ बोल्ड बनाया। वे अपने आप को व्यवस्था के खिलाफ विद्रोही के रूप में प्रस्तुत करने लगे। यहाँ तक कि उन्होंने सेना से भी पंगा लेना शुरू कर दिया और उन्हीं जनरलों को निशाना बनाने लगे जिन्होंने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया था। जाहिर है पाकिस्तान की माईबाप सेना को यह गवारा नहीं था और उसने उन्हें चलता कर दिया। उनकी जगह सेना ने अपने एक और मोहरे, शहबाज़ शरीफ, को बिठा दिया। शरीफ को यह हुक्म दिया गया कि वे इमरान को जेल पहुँचाने का इंतजाम करें। और शरीफ ने जो हुक्म मेरे आका की पालना की।
लेकिन प्रधानमंत्री पद से हटने से इमरान की लोकप्रियता में और इज़ाफा हुआ। वे पुलिस को चकमा देते रहे और जेल नहीं गए। उनके पैर में बन्दूक की गोली लगी और उन्हें कई बार अदालतों के चक्कर भी लगाने पड़े। परन्तु इमरान ने सेना और शहबाज़ शरीफ़ पर तीखे हमले जारी रखे। उनका आरोप है कि सेना के जनरल और शरीफ उनका क़त्ल करवाना चाहते हैं। छह मई को एक रैली में इमरान खान ने दो टूक कहा कि सेना की इंटेलिजेंस शाखा के मेजर-जनरल फैसल नसीर उनकी हत्या की साजिश रच रहे हैं। सेना को इस तरह के सीधे आरोप की उम्मीद नहीं थी। शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से रिकॉर्ड पर कुछ कहने वाली सेना ने तब बाकायदा एक आधिकारिक बयान जारी करके आरोप को “अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण, निंदनीय और अस्वीकार्य” बताया। कानूनी कार्यवाही की धमकी दी। परन्तु एक चतुर नेता की तरह इमरान ने इस बयान का इस्तेमाल लोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए किया। उनकी गिरफ़्तारी वाले दिन इमरान ने इस्लामाबाद की अदालत जाते वक्त रास्ते में रिकॉर्ड किये गए अपने एक वीडियो में इस आरोप को दोहराया। इस वीडियो को उनके ट्विटर अकाउंट पर देखा का सकता है। इसके बाद सेना ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया।
सत्ता के लिए इस ज़ोर आजमाइश के बीच पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गर्त में है। मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 36.4 प्रतिशत है – एशिया में सबसे अधिक। खाने-पीने की चीज़ों के दाम हर साल 48.1 फीसद बढ़ रहे हैं। इस साल जीडीपी के मात्र 0.5 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है। खाने की कमी है, लोग भूखे और बेरोजगार हैं, कुदरत एक के बाद एक कहर बरपा रही है (बलूचिस्तान में हाल की भीषण बाढ़ ताज़ा उदहारण), आईएमएफ मदद करने को तैयार नहीं है और देश अपनी देनदारियां न चुका पाने की स्थिति में पहुँचने वाला है। यहाँ तक कि पाकिस्तान का ‘अच्छा दोस्त’ चीन भी उसे आँखें दिखा रहा है। पिछले हफ्ते देश की यात्रा पर आये चीने विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को नसीहत दी कि वह राजनैतिक अराजकता को ख़त्म करे और अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने पर ध्यान दे। हो सकता है कि सेना ने इसी कारण इमरान खान को गिरफ्तार करवाया हो। या शायद यह पहले से ही तय था।
बहरहाल, पाकिस्तान में प्रधानमंत्रियों और सेना में टकराव का लम्बा इतिहास है। इतिहास यह भी बताता है कि वहां के सभी पूर्व प्रधानमंत्री ‘भ्रष्टाचार’ के आरोप में जेल गए है।
इमरान का मामला थोडा अलग है। वे अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों की तुलना में ज्यादा लोकप्रिय हैं।उनकी पार्टी मज़बूत है और उनके भाषण प्रभावी होते हैं। सेना और आईएसआई ने भी नहीं सोचा था कि हालात यहाँ तक पहुँच जाएंगे और इमरान, जो कभी उनके लिए वरदान थे, अभिशाप बनेंगे।
कुल मिलाकर पाकिस्तान बुरी तरह बंटा हुआ है। लोग दो खेमों में बंटे और जगे हुए हैं। देश के इतिहास में पहली बार लोगों ने पुलिस पर हमले किए। सेना पर अपना गुस्सा उतार रहे है। क्या इसके पहले कोई यह कल्पना भी कर सकता था कि लाठी लिए हुए लोग शहर के सबसे बड़े आर्मी कमांडर के किलेनुमा मकान में घुस जाएंगे, खिडकियों के कांच तोड़ देंगें और घर का सामान लूट लें। सोशल मीडिया पर उपलब्ध एक वीडियो में एक प्रदर्शनकारी लाहौर के एक सैनिक कमांडर के घर से लाया गया मोर अपने हाथों में लिए हुए है।“मैंने इसे कोर कमांडर के घर से लिया है। आखिर यह जनता का पैसा है। उन्होंने जो चुराया है हम उसे वापस ले रहे हैं।” एक अन्य वीडियो में रावलपिंडी के सैनिक मुख्यालय के मेन गेट को पार करते विरोध प्रदर्शनकारी देखे जा सकते हैं।
मोर ले जा रहे आदमी के शब्दों पर ध्यान दीजिये – “जनता का पैसा”।पाकिस्तानियों को समझ में आ रहा है कि सेना के राज में वे गरीब बने रहे और जनरल ऐश करते रहे।
इमरान की गिरफ़्तारी से पाकिस्तान के लोगों का मूड भारी बदला लगता है। सेना, जिससे एक समय लोग डरते भी थे और जिसका सम्मान भी करते था, अब ऊंचे पायदान पर नहीं है। लोगों का सेना के प्रति गुस्से का खुला प्रदर्शन नाटकीय और असाधारण है। इस बात की सम्भावना कम ही है कि चुनाव – जो सारे विवाद की जड़ में हैं – जल्दी होंगे। शहबाज़ शरीफ शायद तब तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे जब तक लोग शांत न हो जाएँ। और लोगों के शांत होने के सम्भावना कम ही है। आग सुलग चुकी है। पाकिस्तानी बगावत के मूड में है। अब लडाई इमरान बनाम सेना में नहीं बल्कि जनता बनाम सेना की हो गयी है। अमरीका, इंग्लैंड, चीन और संयुक्त राष्ट्रसंघ हालात पर नज़र बनाये हुए हैं और पाकिस्तान की यात्रा करने वालों को एडवाइजरी जारी कर रहे हैं। अमरीका और इंग्लैंड ने एक संयुक्त बयान जारी कर “प्रजातान्त्रिक सिद्धांतों और कानून के राज का सम्मान” करने की अपील की है।
जहाँ तक इमरान खान का सवाल है, उन्हें इतिहास एक शानदार क्रिकेट खिलाडी के रूप में नहीं बल्कि अब एक ऐसे राजनेता के रूप में याद रखेगा जिसने पाकिस्तानियों का ज़मीर जगाया और उनमें बगावत का जज्बा भरा। इसका अंतिम नतीजा अच्छा होगा या बुरा, यह तो समय बताएगा परन्तु एक बात तय है, पाकिस्तान बड़े परिवर्तन की कगार पर है। जाहिर है कि हमें. सीमा के इस पार वालों को भी सावधान रहना चाहिए (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)