इस सिलसिले में इस बात का भी उल्लेख हुआ है कि अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के जरिए चीन पहले ही गहरी पैठ बना चुका है। अब उसके कूटनीतिक परिणाम सामने आ रहे हैँ।
होंडुरास एक छोटा-सा देश है। सामान्य तौर पर उसकी कूटनीति या विदेश नीति संबंधी बदलाव पर दुनिया गौर नहीं करती। लेकिन दो वजहों से उसकी नीति में आया एक बदलाव दुनिया भर में बहुचर्चित हुआ है। इसमें एक कारण तो इस समय का दुनिया का वातावरण है, जिसमें हर बात को अमेरिका और चीन के बीच रस्साकशी के संदर्भ में देखा जा रहा है। दूसरा कारण यह है कि होंडुरास उस भौगोलिक क्षेत्र में है, जिसे पिछले दो सौ साल से अमेरिका अपना ‘बैकयार्ड’ मानता है। तो इस मौके पर होंडुरास का ताइवान को झटक कर चीन से कूटनीतिक संबंध कायम करना बेशक एक महत्त्वपूर्ण घटना हो जाती है। उसके इस निर्णय के साथ ही ताइवान को मान्यता देने वाले देशों की संख्या घटकर अब सिर्फ 13 रह गई है। पिछले वर्ष ऐसा ही फैसला निकरागुआ ने किया था। ऐसे फैसलों का यह संदेश समझा गया है कि न सिर्फ दुनिया के बाकी हिस्सों में, बल्कि अपने ‘बैकयार्ड’ में भी अमेरिका का प्रभाव तेजी से घट रहा है।
ये बात ध्यान में रखने की है कि होंडुरास ने यह फैसला उस वक्त लिया है, जब चीन को घेरने की अपनी रणनीति में अमेरिका ताइवान को विशेष मोहरा बनाते दिख रहा है। इसीलिए विश्व मीडिया की चर्चाओं में होंडुरास के ताजा फैसले को चीन की बड़ी कूटनीतिक कामयाबी के रूप में देखा गया है। रविवार को होंडुरास और चीन के विदेश मंत्रियों ने एक साझा बयान जारी किया। इससे ठीक पहले होंडुरास ने एक बयान जारी कर बताया कि वह ताइवान से अपने रिश्ते खत्म कर रहा है। होंडुरास के विदेश मंत्रालय ने ट्विटर पर जारी एक बयान में कहा कि उनका देश मानता है कि दुनिया में एक ही चीन है। चीन के विदेश मंत्री किन गांग ने कहा है कि होंडुरास के साथ संबंध स्थापित करना दिखाता है कि चीन की ‘वन चाइना’ नीति लोगों का दिल जीत रही है। इस सिलसिले में इस बात का भी उल्लेख हुआ है कि अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के जरिए चीन पहले ही गहरी पैठ बना चुका है। अब उसके कूटनीतिक परिणाम सामने आ रहे हैँ।