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अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से ज्यादा दिक्कत

आमतौर पर जब कोई बड़ा वित्तीय घोटाला खुलता है तो सरकार की कानून प्रवर्तन एजेंसियां सक्रिय हो जाती हैं और जांच शुरू होती है। लेकिन अदानी समूह के मामले में इसका उलटा हो रहा है। भारत की तमाम वित्तीय और केंद्रीय जांच एजेंसियां या तो कुछ नहीं कर रही हैं या दिखावे के कदम उठा रही हैं। जैसे नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने अदानी समूह के तीन शेयरों को निगरानी में लिया है। इसके अलावा कोई सूचना नहीं है कि भारत में एजेंसियां कुछ कर भी रही हैं। अदानी समूह की असली और सारी समस्या अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की वजह से है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ने घोटाले का खुलासा किया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूहों ने दुनिया भर में इसका प्रचार किया। अब अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियां लगाम लगाते हुए हैं।

अमेरिका की संस्था हिंडनबर्ग रिसर्च ने दो साल की मेहनत के बाद घोटाले का खुलासा किया। उसने 106 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में बताया कि कैसे कंपनी ने फर्जी कंपनियों के जरिए शेयरों के दाम बढ़वाए हैं। उसके बाद इकोनॉमिस्ट, फोर्ब्स और टाइम जैसे मीडिया समूहों ने इसकी बारीकियां खोज कर दुनिया को बताईं। इस संकट के समय बचाव के जो उपाय हुए उसके पीछे की कहानी भी अंतरराष्ट्रीय मीडिया खोल रहा है।

अदानी के शेयरों में तीन-चार दिन की लगातार गिरावट के बाद अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसी क्रेडिट सुईस ने अदानी के बांड्स को कोलैटरल के तौर पर रखना बंद कर दिया। उसने अपने बैंकों से कहा है कि वे इस पर मार्जिन लोन नहीं दें। उसके बाद सिटी बैंक ने भी अदानी के शेयरों के बदले मार्जिन लोन देना बंद किया। इसके अगले दिन यानी गुरुवार को अमेरिकी संस्थान एसएंडपी और डाउ जोंस ने अदानी के शेयरों को सस्टेनेबिलिटी इंडिक्स से हटा दिया। इस बीच खबर आई कि अदानी समूह से जुड़े एक वित्तीय फर्म एलारा कैपिटल्स से जुड़े लॉर्ड जो जॉनसन ने इस्तीफा दे दिया है। गौरतलब है कि जो जॉनसन ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भाई हैं। सो, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां, अंतरराष्ट्रीय मीडिया और जानी मानी हस्तियां अदानी समूह की पोल खोल रही हैं, जबकि भारत की एनएसई, सेबी, डीआरआई, ईडी, सीबीआई आदि सब खामोश हैं।

यहां तक कि मामूली बात पर दिन भर ब्रेकिंग न्यूज चलाने और मुर्गा लड़ाई कराने वाले सारे भारत के तमाम चैनल खामोश हैं। अदानी की पोल खुले एक हफ्ते से ज्यादा हो गए। एक हफ्ते में अदानी की बाजार पूंजी में 50 फीसदी से ज्यादा की कमी आ चुकी है। लेकिन न तो हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर कोई टेलीविजन बहस हुई है और न अदानी समूह की गड़बड़ियों और उनकी कंपनियों के डूबने को लेकर कोई बहस है। मुख्यधारा के चैनलों के अलावा, जितने भी बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं उन पर भी इसे लेकर कोई शोधपरक स्टोरी नहीं आई है। सभी सिर्फ शेयर बाजार की गिरावट की रूटीन रिपोर्टिंग कर रहे हैं। हर्षद मेहता और केतन पारिख के समय हुए शेयर घोटालों के समय देश में इतना मीडिया नहीं था। फिर भी आज से ज्यादा शोर मचा था। आज यह धारणा बनाई जा रही है जैसे अदानी के खिलाफ लिखना और बोलना देश के खिलाफ काम है। खुद अदानी ने भी अपनी सफाई में कहा था कि उनके ऊपर हमला भारत के ऊपर हमला है। उसके बाद ऐसा लग रहा है कि भारत की मीडिया ने सचमुच अदानी के खिलाफ लिखने, बोलने को देशद्रोह मान लिया है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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