दोनों दुनिया के खरबपति। दोनों स्थानकवासी जैन! दोनों के धंधे का मूल जौहरी (जगत सेठ रत्नों के और अदानी का डायमंड्स से शुरू धंधा)। दोनों नजरानों से दिल्ली हुकूमत के कृपापात्र। (जगत सेठ दरबार में रत्न भेट कर, हुंडी-बैंकिंग, हवाला लेन देन से कृपापात्र हुए तो अदानी को कांग्रेस राज की मेहरबानी से मिला था पहला पोर्ट) दोनों का वैभव अपने-अपने प्रदेश के सूबेदारों से (बंगाल के सूबेदार महमूद शाह और गुजरात में नरेंद्र मोदी) बनना शुरू हुआ। दोनों से भारत में नई सत्ता का अभ्युदय। जगत सेठ से जहां लार्ड क्लाइव इज इंडिया वही अदानी से मोदी इज इंडिया। जगत सेठ के वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत कब्जाने का मौका बना वहीं अदानी के वक्त चीन पर आश्रित और असुरक्षित भारत। कहते हैं और इसे अंग्रेजों ने लिखा है कि जगत सेठ 18वीं सदी का बैंकर ऑफ द वर्ल्ड था। जगत सेठ की संपदा ब्रितानी आर्थिकी से ज्यादा थी तो सन् 2023 के गौतम अदानी भी दुनिया के तीसरी बड़े खरबपति का रिकॉर्ड लिए हैं। कई देशों की आर्थिकी गौतम अदानी की संपदा का चूजा होगी।
जगत सेठ के बिजनेस का हब था पटना। तब यह शहर नदी व्यापार मार्ग के कारण बंगाल-बिहार-ओड़िशा का सेंटर और मुहाना था। इसलिए यह भी संयोग गजब है जो अदानी का प्रारंभ भी एक व्यापारिक मुंद्रा बंदरगाह से शुरू हुआ। जगत सेठ और गौतम अदानी दोनों के व्यक्तित्व की समान खूबी में मान सकते हैं कि वित्तीय चतुराई, बैंकिंग-शेयर बाजार पर मास्टरी के अलावा दोनों का राजनीतिक एंटिना बेमिसाल। जगत सेठ ने बादशाह महमूद शाह के समय करेंसी कारोबार, बैंकिंग, हुंडी नेटवर्क मे मोनोपॉली बनाई और हर तरह का धंधा शुरू किया। और ऐसे ही अदानी तेल से एयरपोर्ट तक का धंधा लिए हुए। जगत सेठ बादशाह-जमींदारों को नजराना देते थे तो जरूरत पड़ने पर उधार तथा कर्ज भी। विदेशी व्यापार, एक्सचेंज रेट सब उनके कंट्रोल में। बादशाह को सलाह देते, गाइड करते। पैसे की ताकत में जगत सेठ भारत की सत्ता, उसके कोतवालों (मतलब थानों, ईडी, सीबीआई आदि) पर पूरा कंट्रोल रखते थे। उनसे तय होता था कि सत्ता में कौन रहेगा या कौन नहीं! वह सत्ता निर्धारक, नवाबों, मंत्रियों को रखवाने या उनकी छुट्टी का सूत्रधार था।
उन दिनों बंगाल मुगल साम्राज्य का सर्वाधिक पैसे वाला (जैसे अभी गुजरात) इलाका था। व्यापार और निर्यात का केंद्र। स्वभाविक जो ईस्ट इंडिया कंपनी, डच, फ्रेंच कंपनियां नवाबों से व्यापार-धंधे की छूट के लिए जगत सेठ के जरिए भारत में अवसर तलाशती थीं। कहते हैं ईस्ट इंडिया कंपनी ने जगत सेठ से 1718 से 1730 के बीच औसतन सालाना कोई चार लाख रुपए उधार लिए। इससे दोनों पार्टियों में साझा समझ बनी। जगत सेठ को लगा कि धंधे में अंग्रेजों से ज्यादा मुनाफेदार दूसरा कोई नहीं है। दोनों एक-दूसरे के साझे में वैसे ही फायदे बूझने लगे, जैसे आज चीन से धंधे के फायदे भारतीय व्यापारी बूझते हैं।
सन् 1725 में बंगाल की गद्दी पर मुर्शीद कुली खान, सुजा खान, अलीवर्दी खान के बाद सिराजुद्दौला की तख्तपोशी हुई। उस वक्त औरंगजेब के बाद दिल्ली में बादशाहत मराठा दबदबे से लुंजपुज और लाचार थी। सूबों पर कंट्रोल नहीं रहा। जबकि बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी का लार्ड क्लाइव जगत सेठ की नेटवर्किंग से वर्चस्व फैलाता हुआ था। जगत सेठ भी हवा में उड़ते हुए। सिराजुद्दौला कम उम्र का नौजवान था। वह जगत सेठ से अपमानजनक व्यवहार करता था। उसे धमकी देता था। इसकी जगत सेठ ने गांठ बांधी। लार्ड क्लाइव के साथ साजिश रची। नवाबी सेना के मीर जाफर को लालच दे कर उससे गद्दारी करवाई। जगत सेठ और मीर जाफर की अंग्रेजों के पिट्ठूगिरी का अंत नतीजा था जो सन् 1757 में प्लासी की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी के पांच हजार सैनिकों के आगे सिराजुद्दौला की विशाल सेना भगदड़ में भाग खड़ी हुई। वह दिन था अंग्रेजों की गुलामी की शुरुआत का।
दास्तां लंबी हो गई। गौतम अदानी छूट गए हैं। मगर ठीक भी है। आखिर अभी यह सत्य है गौतम अदानी इज इंडिया। वे खम ठोंक अपने को भारत का पर्याय बतला रहे हैं तो उनकी दास्तां तो आगे बढ़नी है। मैं, आप और भारत की मौजूदा पीढ़ी और नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार तो वक्ती उपस्थिति है। जगत सेठ तो हिंदुओं की वह नियति हैं, जिसे फर्क नहीं पड़ता कि गद्दी पर मेहमूद बैठे या सिराजुद्दौला या लार्ड क्लाइव या भविष्य में कोई चाइनीज! सोचें, भारत में इतिहास की कैसी पुनरावृत्ति होती है नागरिकों की बंद आंखों की हकीकत में!