हेनरी किसिंजर की यह बात गौर करने लायक है कि दुनिया में आज हालात ठीक वैसे हैं, जैसे प्रथम विश्व युद्ध के पहले थे। ठीक उसी तरह एक चिंगारी पूरी दुनिया को युद्ध में झोंक सकती है।
हेनरी किसिंजर कल (27) मई को 100 साल के हो जाएंगे। उनके आलोचक आज भी उन्हें एक युद्ध-उन्मादी बताते हैं। एक ऐसा भी तबका है, जो वियतनाम युद्ध में किसिंजर की भूमिका को लेकर उन्हें युद्ध अपराधी बताता है। जबकि दूसरी तरफ उन्हें व्यावहारिक नजरिए वाले ऐसा राजनयिक के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने अपनी सोच और रणनीतियों से दूसरे विश्व युद्ध के बाद की अमेरिका की विदेश नीति दूर तक प्रभावित किया। उनकी सोच का असर सिर्फ तब नहीं था, जब वे अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री थे। बल्कि उसके बाद के पिछले पांच दशकों में भी दुनिया में उनकी बात ध्यान से सुनी जाती रही है। यह दीगर है कि बीते 20-25 साल में उनके अपने देश में उनकी सलाहों को नजरअंदाज किया जाता रहा है। अनेक जानकार मानते हैं कि इस दौर में अमेरिका में आर्थिक ले कर सुरक्षा और विदेश नीति तक पर ‘ऐसे नव-कंजरवेटिव्स’ का नियंत्रण हो गया है, जो देश को मध्य मार्ग से हटाकर उग्रता की तरफ ले गए हैँ। जबकि मध्य मार्ग ही अमेरिकी समृद्धि और रसूख का आधार था। किसिंजर को इस बात का अहसास है।
सौंवें जन्म दिन से पहले उन्होंने ब्रिटिश पत्रिका द इकॉनमिस्ट को जो लंबा इंटरव्यू दिया है, उससे यह बात जाहिर होती है। इससे यह जाहिर होता है कि अमेरिकी शासन-तंत्र इन वर्षों में किस हद तक दक्षिणपंथी धुरी की तरफ खिसक गया है। बहरहाल, किसिंजर की यह बात गौर करने लायक है कि दुनिया में आज हालात ठीक वैसे हैं, जैसे प्रथम विश्व युद्ध के पहले थे। ठीक उसी तरह एक चिंगारी पूरी दुनिया को युद्ध में झोंक सकती है। किसिंजर ने कहा है कि अमेरिका और चीन ने अपने को पूरी तरह समझा लिया है कि दूसरा उसका दुश्मन है। इस वयोवृद्ध राजनयिक के नजरिए में यह बिल्कुल ही गलत आकलन है। इन दोनों देशों में संवाद और मुख्य मुद्दों पर सहमति की गुंजाइश मौजूद है। दरअसल, इसके बिना आज की दुनिया सुरक्षित नहीं रह पाएगी। स्पष्टतः दुनिया किसिंजर की इस विवेकपूर्ण सलाह को अपने लिए जोखिम बढ़ाने की कीमत पर ही नजरअंदाज कर सकती है।