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सरकार फैक्ट चेक करेगी

यह विशुद्ध रूप से खबर को नियंत्रित करने का प्रयास है। यह प्रत्यक्ष रूप से खबरों को सेंसर करने का प्रयास है। मुख्यधारा की मीडिया पर कमोबेश नियंत्रण के बाद सरकार अब सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है।

अभी एक महीना नहीं हुआ है, जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक अंग्रेजी अखबार के कार्यक्रम में कहा था कि फेक न्यूज विभिन्न समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकता है और साथ ही इससे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है और अब केंद्र सरकार फर्जी खबरों पर रोक लगाने के लिए फैक्ट चेक का कानून लेकर आ गई है। सरकार इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइलाइंस एंड डिजिटल मीडिया इथिक्स कोड) रूल्स, 2021 को लागू करने जा रही है।

इस कानून के पहले मसौदे में कहा गया था कि प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो यानी पीआईबी की ओर से बताया जाएगा कि सरकार से जुड़ी कौन सी खबर फर्जी है और उसे सभी प्लेटफॉर्म्स से हटाना होगा। अब सरकार ने इसमें थोड़ा संशोधन किया है। इसमें से पीआईबी को हटा दिया गया है और उसकी जगह सरकार ने एक फैक्ट चेक यूनिट बनाने को कहा है। इस यूनिट की ओर से जिस खबर को फर्जी बताया जाएगा उसे हर जगह से हटाना पड़ेगा। यह कानून लागू होने का मतलब है कि तमाम ऑनलाइन इंटरमीडियरीज जैसे यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर आदि से लेकर इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों को सरकार की फैक्ट चेक यूनिट की बात माननी होगी और उसकी बताई खबर को हटाना होगा।

सरकार इसे चाहे जो कहे लेकिन यह विशुद्ध रूप से खबर को नियंत्रित करने का प्रयास है। यह प्रत्यक्ष रूप से खबरों को सेंसर करने का प्रयास है। मुख्यधारा की मीडिया पर कमोबेश नियंत्रण के बाद सरकार अब सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है। हालांकि वहां सरकार और सत्तारूढ़ दल के आईटी सेल का बनाया नैरेटिव ही ज्यादा चर्चा में रहता है और ज्यादा फेक न्यूज उनकी तरफ से प्रचारित किया जाता है। फिर भी जो थोड़े बहुत स्वतंत्र यूट्यूब चैनल या सोशल मीडिया अकाउंट्स हैं उनको इसके जरिए नियंत्रित किया जा सकता है।

इस कानून में विवाद की स्थिति में मध्यस्थता का भी कोई प्रावधान नहीं है। अगर किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या उसके यूजर को लगता है कि सरकार की फैक्ट चेक यूनिट की बात सही नहीं है तो उसे इसे अदालत में ही चुनौती देनी होगी। तभी ज्यादा संभावना इस बात की है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां कानूनी मुकदमों में उलझने की बजाय सरकार की बताई खबर को हटाने का विकल्प चुनेंगे। ऐसे में निष्पक्ष और तटस्थ या सरकार विरोधी खबरों का स्पेस और कम होगा।

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By NI Editorial

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