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प्रतिबंध या रस्म-अदायगी?

बेहतर यह होता कि हिरोशिमा में जुटे जी-7 देशों के नेता इसका आकलन करते कि पिछले 15 महीनों में उन्होंने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए, उनका अपेक्षित असर क्यों नहीं हुआ। इसके बजाय उन्होंने नए प्रतिबंधों की बात की।

जब जी-7 के देश अपनी शिखर बैठक के लिए जुटे, तो उन्हें यह जरूरी महसूस हुआ कि वे रूस पर कुछ नए प्रतिबंधों का एलान करें। जबकि बेहतर यह होता कि वे इसका आकलन करते कि पिछले 15 महीनों में उन्होंने जो प्रतिबंध लगाए, उनका अपेक्षित असर क्यों नहीं हुआ। इस दौरान ना तो रूसी मुद्रा रुबल को रबल (मलवा) में बदला जा सका, ना ही रूस की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हुई और ना ही यूक्रेन में युद्ध जारी रखने की उसकी क्षमता खत्म हुई। उलटे इन प्रतिबंधों के असर से कम से कम यूरोप की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। बहरहाल, पश्चिमी नेताओं को रूस के खिलाफ कुछ करने का संकेत देना था, तो ब्रिटेन ने कहा कि वह रूस के हीरों पर प्रतिबंध लगाएगा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने एलान किया कि उनका देश, रूस से हीरे, तांबे, एल्युमीनियम और निकेल जैसी धातुओं का आयात रोक रहा है। रूस हर साल अरबों डॉलर का हीरे बेचता है।

अमेरिका ने संकेत दिया कि वह उन कंपनियों पर सख्ती करेगा, जो प्रतिबंधों को कमजोर करने में रूस की मदद कर रही हैं। जी-7 ने अपने साझा बयान में यह भी कहा- “हम अपने उन कदमों में भी सफलता पा रहे हैं जिनके तहत तय किया जा रहा है कि रूस, हमारे और दुनिया के खिलाफ ऊर्जा को हथियार न बना सके।” प्रतिबंधों के इस शोर के बीच जर्मनी के चांसलर ओलफ शोल्ज अकेले खड़े नजर आए, जिन्होंने रूस पर नये आर्थिक प्रतिबंध लगाने का समर्थन नहीं किया। उन्होंने कहा कि रूस के खिलाफ ऐसे कदम उठाए जाएं, जो तार्किक हों और अमल में लाए जा सकें। बात वाजिब है। रूस के पास कच्चे तेल, गैस, हीरों और कई जरूरी धातुओं का बड़ा भंडार है। इसके कारण पश्चिमी प्रतिबंध रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने में बहुत हद तक नाकाम साबित हो रहे हैं। उधर रूस, दुनिया के दो बड़े देशों भारत और चीन को खूब तेल बेच रहा है, जिससे उसे काफी आमदनी हो रही है। जी-7 ने पिछले साल रूसी तेल की 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा तय की थी। लेकिन यह कदम भी ज्यादा कारगर नहीं हुआ।

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By NI Editorial

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