कल भारत में घटी चार घटनाओं ने विशेष ध्यान खींचा। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव परिणाम, चुनाव आयोग की नियुक्ति, अडानी-हिंडनबर्ग विवाद की जांच और जी-20 का विदेश मंत्री सम्मेलन। यह सम्मेलन पिछली तीनों घटनाओं के मुकाबले कम ध्यान आकर्षित कर सका लेकिन इसमें भारत के द्विपक्षीय हितों का उत्तम संपादन हो सका। यूक्रेन का मामला छाया रहा, कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं हुआ लेकिन पहली बार रूस और अमेरिका के विदेश मंत्री मिले।
भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से कई विदेशी नेताओं की आपसी भेंट में कई नए समीकरण बने। जहां तक त्रिपुरा, नगालैंड और मणिपुर के चुनावों का सवाल है, तीनों राज्यों में भाजपा का बोलबाला हो गया है। मणिपुर में भी भाजपा सत्ता में शामिल हो जाएगी। दूसरे शब्दों में पूर्वोत्तर में भाजपा का बढ़ता हुआ वर्चस्व राष्ट्रीय एकता के लिए शुभ-संकेत है। एक तो पूर्वोत्तर के राज्यों में जो अलगाववादी प्रवृत्तियां सक्रिय रहती हैं, वे अब शिथिल पड़ जाएंगी। उनको हतोत्साहित करने में कांग्रेस से बड़ी भूमिका भाजपा की होगी।
दूसरा, भाजपा के अपने स्वरूप को बदलने में इन चुनावों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भाजपा और नरेंद्र मोदी को हिंदुत्व का कट्टर समर्थक माना जाता है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों के ईसाइयों का समर्थन उनकी इस छवि को काफी नरम बनाएगा। गोवा और पूर्वोत्तर के ईसाइयों का यह समर्थन भाजपा के लिए दुनिया के ईसाई राष्ट्रों में भी लाभदायक सिद्ध हो सकता है। पूर्वोत्तर के ये राज्य जनसंख्या की दृष्टि से छोटे हैं लेकिन इनमें भाजपा की जीत 2024 के आम चुनावों को भी प्रभावित जरूर करेंगे। उसके पहले जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उनमें भी भाजपा के कार्यकर्त्ताओं का उत्साह बढ़ेगा। इन चुनावों की जीत पर नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिया, वह काफी संतुलित, तर्कपूर्ण और प्रभावशाली था।
कल सर्वोच्च न्यायालय ने जो दो फैसले दिए हैं, उनसे हमारी न्यायपालिका की इज्जत में इजाफा ही हुआ है। उसने चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, विपक्षी नेता और मुख्य न्यायाधीश- ये तीन सदस्य अनिवार्य बताए हैं लेकिन यह भी कह दिया है कि यह प्रावधान संसद के कानून द्वारा लागू किया जाना चाहिए। कानून बनने तक अदालत का फैसला प्रभावी रहेगा। इस फैसले से चुनाव आयोग की प्रामाणिकता बढ़ेगी।
जहां तक अडानी-हिंडनबर्ग विवाद का सवाल है, इस मामले में विपक्ष मोदी सरकार की काफी खिंचाई कर रहा था। ‘सेबी’ ने जांच तो बिठाई है लेकिन सरकार की चुप्पी विपक्ष को काफी मुखर कर रही थी। अब सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज ए.एम. सप्रे की अध्यक्षता में जिन पांच लोगों की कमेटी बनी है, वह अगले दो माह में सारे मामले की जांच करके सर्वोच्च न्यायालय को अपनी रपट देगी। इस कमेटी के सदस्य काफी प्रतिष्ठित, प्रामाणिक और जानकार लोग हैं। इसके बावजूद विपक्ष अब भी संसदीय कमेटी से जांच की मांग पर अड़ा हुआ है, क्योंकि उसके अनुसार यह मामला राजनीतिक भ्रष्टाचार से संबंधित है।