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एवरेस्ट भी जलवायु परिवर्तन का मारा!

इंसान ने 70पहले दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर विजय पताका फहराई थी। लेकिन अब वहा भी जलवायु परिवर्तन का संकट है। गुजरे 60 वर्षों में एवरेस्ट के चारों तरफ मौजूद 79 ग्लेशियरों की मोटाई 100 मीटर घट चुकी है।

climate-change:इस हफ्ते दुनिया ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर इनसान के पहुंचने की 70वीं सालगिरह मनाई। न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाल के तेंजिंग नोर्गे 29 मई 1953 को ऐसे पहले मनुष्य बने थे, जिन्होंने दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने का गौरव प्राप्त किया था। लेकिन 70वीं सालगिरह पर लोगों ने जितना गर्व महसूस किया, उतनी ही चिंता ने भी उन्हें सताया। इस मौके पर उचित ही इस चोटी को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से हो रहे नुकसान पर दुनिया का ध्यान गया है। एवरेस्ट और हिंदुकुश हिमालय के अन्य पर्वत साढ़े तीन हजार किलोमीटर इलाके में फैले हुए हैं। ये पर्वत आठ देशों की सीमा से गुजरते हैं। इन सब पर ग्लोबल वॉर्मिंग का भारी असर देखने को मिल रहा है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट नाम की एक विशेषज्ञ संस्था ने कहा है कि अगर कार्बन गैसों का उत्सर्जन अपने मौजूदा स्तर पर ही बना रहा, तो अगले 70 साल में इस क्षेत्र के दो तिहाई ग्लेशियर पिघल चुके होंगे। गुजरे 60 वर्षों में एवरेस्ट के चारों तरफ मौजूद 79 ग्लेशियरों की मोटाई 100 मीटर घट चुकी है।

साल 2009 के बाद उनका आकार घटने की रफ्तार दो गुनी हो गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक पूरे हिंदुकुश क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से बढ़ा है। वहां ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरनाक प्रभाव काफी समय महसूस हो रहे हैं। गर्म हवाओं, सूखे, प्राकृतिक आपदाओं, अचानक बर्फबारी और ग्लेशियरों के पिघलने का रिकॉर्ड बनता जा रहा है। इससे इस क्षेत्र में रहने वाले दो अरब लोगों की जिंदगी और आजीविका के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। 70वीं सालगिरह के मौके पर पर्वतारोहियों ने अपनी आंखों देखी सुनाई। उन्होंने बताया कि माउंट एवरेस्ट बहुत तेजी से बदल रहा है और जलवायु परिवर्तन का पहाड़ों पर कितना गहरा असर हुआ है। दरअसल, ग्लेशियरों के पिघलने के कारण पहाड़पर्वतारोहियों के लिए अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं। इस अवसर पर उचित ही याद किया गया कि इनसान ने 70 साल पहले एक ऊंची मंजिल तय की थी। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन रोकने की उससे भी ऊंचा लक्ष्य उसके सामने है।

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