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केजरीवाल जेल गए तब भी उनका वोट सुरक्षित!

भाजपा यदि आम आदमी पार्टी को तोड़ डाले, उसकी मान्यता खत्म कर दे तो अलग बात है वरना दिल्ली और देश में केजरीवाल के जो वोट बने थे वे जस के तस हैं! बहुत हैरानी हुई मुझे राजस्थान के मध्य वर्ग परिवार और दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ बस्तियों से काम के लिए कॉलोनी में आने वाली महिलाओं की चर्चा सुन कर। मैं मान रहा था कि अरविंद केजरीवाल के घर की शानो-शौकत, 45 करोड़ रुपए के खर्च की बदनामी से उनके भक्तों में मोहभंग हुआ होगा। लेकिन उलटी बात सुनने को मिली। भक्तों की एक ही बात, एक ही तर्क है। और वह यह कि केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी और अडाणी के खिलाफ बोला इसलिए उसे ऐसे बदनाम कर रहे हैं।

हां, नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल के ग्राफ का फर्क गजब है। केजरीवाल के साथ दिल्ली में उनकी सरकार का काम (खासकर स्कूल, बिजली, पानी) लोगों में जस का तस चर्चित है वही नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की मैसेजिंग में फेल हैं। उस नाते दिल्ली के विधानसभा चुनाव 2020 में केजरीवाल को जो 54 प्रतिशत वोट मिले थे उनमें मध्य उच्च वर्ग के परंपरागत मोदी विरोधी घरों में भले मोहभंग हो और वे कांग्रेस की तरफ मुड़ें लेकिन झुग्गी-झोपड़ी, गरीब वर्ग में टीवी चैनलों के केजरीवाल एक्सपोजर का कोई अर्थ नहीं है। सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया या अरविंद केजरीवाल के जेल जाने से आप के दिल्ली वोटों पर फर्क नहीं पड़ने वाला है। मोदी-शाह को या तो दिल्ली विधानसभा खत्म करनी होगी या आम आदमी पार्टी की मान्यता को उद्धव ठाकरे की शिव सेना की तरह रद्द कराना होगा तभी दिल्ली में भाजपा का मतलब बनेगा।

सवाल है मोदी-शाह को तो सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सात सीटें चाहिए। अपना मानना है उसमें भाजपा को दिक्कत नहीं होगी। पहली बात, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ मिलकर एलायंस में चुनाव लड़ें, इसके फिलहाल आसार नहीं हैं। दूसरी बात, 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में आप को 18 प्रतिशत तथा कांग्रेस को मिले 22 प्रतिशत वोट का कुल जोड़ भी भाजपा के 57 प्रतिशत वोटों से बहुत पीछे था। इसलिए नरेंद्र मोदी के करिश्मे में पहले तो भारी गिरावट हो, फिर कांग्रेस-आप मिल कर साझा चुनाव लड़ें तब जरूर लोकसभा सीटों पर कांटे की टक्कर बनेगी। भाजपा का केजरीवाल पार्टी को खत्म करने का मिशन केजरीवाल की सियासी बला की वैयक्तिक लड़ाई में है। मोदी बनाम केजरीवाल की निजी लड़ाई है। इसलिए लोकसभा की सात सीटें जीतने के बाद मोदी सरकार दिल्ली विधानसभा चुनाव तक आप को लड़ने लायक नहीं रहने देगी। सोचें, यदि डेढ़ साल केजरीवाल, सिसोदिया जेल में रहे, दिल्ली-पंजाब की उनकी सरकारों को लाचार बना दिया या भंग और खत्म कर दिया तो उस स्थिति में भक्त वोटों के होते हुए भी क्या आप चुनाव लड़ने लायक होगी?

इसलिए आजाद भारत की 75 वर्षों की राजनीति में नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल की लड़ाई न केवल बेमिसाल है, बल्कि तमाम तरह की नीचताओं को लिए हुए है और इससे अपने आप वक्त दो शख्सियतों के उत्थान-पतन की गाथा बनवाएगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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