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कम उम्र की शादियों का नुकसान

भारत में कन्याओं की शादी 18 साल से कम उम्र में करना जुर्म है। गैर-कानूनी है लेकिन इस कानून की कौन परवाह करता है? हिंदू, मुसलमान, ईसाई, आदिवासी, अगड़े-पिछड़े सभी इस जुर्म में शामिल होते हैं। हमारे देश में तो कई दुधमुंहे बच्चों की भी शादी करवा दी जाती थी। भारत में हर साल लगभग 15 लाख अवयस्क लड़कियों की शादी करवा दी जाती है। यह आंकड़ा तो अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘युनिसेफ’ का है लेकिन यह विदेशी संस्था सभी ऐसी अवैध शादियों का ठीक से पता लगा पाती होगी, इसमें मुझे संदेह हैं। 2006 के बाल विवाह विरोधी कानून के मुताबिक अकेले असम प्रांत में इस बार 1800 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इन शादियों को अवैध भी घोषित कर दिया गया है। अकेले असम में पिछले 10 दिन में ऐसी कम उम्र की 4000 शादियों के विरुद्ध पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की हैं। ज़रा सोचिए कि यदि पुलिस थोड़ी और सक्रिय हो जाए तो क्या लाखों लोग पकड़े नहीं जाएंगें? इस तरह के मामलों में वर-वधु को तो पकड़ा जाएगा ही, उनके अभिभावकों और शादी करवानेवाले पुरोहितों, मौलवियों और पादरियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।

कम उम्र की ये शादियां कई दृष्टियों से बड़ी खतरनाक सिद्ध होती है। सबसे पहली बात तो यह कि ब्रह्मचर्य की भारतीय परंपरा का उल्लंघन होता है। उसके कारण किशारोवस्था में ही देश के नौजवानों का शक्तिनाश होता है। उनका दीर्घाष्यु घटता है। बीमारियां बढ़ती हैं। दूसरी बात यह कि कम उम्र की किशोरियां जब माॅं बनती हैं तो प्रायः वे गर्भपात की शिकार हो जाती हैं और वे अपने शरीर में तरह-तरह के रोग पाल लेती हैं। तीसरी बात यह कि कम उम्र में बच्चे हो जाने से उनकी संख्या बढ़ती है और उनका समुचित लालन-पालन और शिक्षण नहीं हो पाता है। इसके कारण देश में अशिक्षा और गरीबी बढ़ती है। चौथी बात यह कि देश में जनसंख्या का विस्फोट होने लगता है। भारत अब जनसंख्या के हिसाब से चीन को भी मात करनेवाला है। किसी एक संप्रदाय या जाति की जनसंख्या बढ़ने पर प्रतिस्पर्धा का भाव सारे समाज में फैल जाता है। यदि शादी की उम्र बढ़ा दी जाए तो हमारे युवक और युवतियां भारत को दुनिया का सबसे शक्तिशाली और संपन्न राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। क्या ही अच्छा हो कि भारत में वर की न्यूनतम आयु 25 और वधू की 22 वर्ष कर दी जाए? इस प्रस्ताव का विरोध कई वर्गों के लोग कर सकते हैं। ऐसे में मेरा निवेदन यह है कि ऐसा कानूनी प्रावधान चाहे न किया जाए लेकिन देश के पुरोहित, मौलवी, पादरी वगैरह इस बात को लोगों के दिलों में प्रेम से बिठा सकें तो भारत का बड़ा कल्याण हो सकता है।

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By वेद प्रताप वैदिक

हिंदी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पत्रकार। हिंदी के लिए आंदोलन करने और अंग्रेजी के मठों और गढ़ों में उसे उसका सम्मान दिलाने, स्थापित करने वाले वाले अग्रणी पत्रकार। लेखन और अनुभव इतना व्यापक कि विचार की हिंदी पत्रकारिता के पर्याय बन गए। कन्नड़ भाषी एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने उन्हें भी हिंदी सिखाने की जिम्मेदारी डॉक्टर वैदिक ने निभाई। डॉक्टर वैदिक ने हिंदी को साहित्य, समाज और हिंदी पट्टी की राजनीति की भाषा से निकाल कर राजनय और कूटनीति की भाषा भी बनाई। ‘नई दुनिया’ इंदौर से पत्रकारिता की शुरुआत और फिर दिल्ली में ‘नवभारत टाइम्स’ से लेकर ‘भाषा’ के संपादक तक का बेमिसाल सफर।

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