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अजीब किस्म की कूटनीति

भारत के बड़े जनमत की यह अपेक्षा वाजिब है कि विदेश मंत्री जयशंकर को चीन को भी उसी मजबूती के साथ सार्वजनिक जवाब देना चाहिए था, जैसा उन्होंने पाकिस्तान के मामले में किया।

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लेने आए पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बेशक करारा जवाब दिया। उन्होंने सार्वजनिक रूप ले उनकी उपेक्षा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि साथ ही ये खबर भी आई कि जयशंकर ने बतौर मेजबान बिलावल से हाथ मिलाया, लेकिन यह सुनिश्चित होने के बाद कि सारे कैमरे बंद हो चुके हैँ। बिलावल ने पत्रकारों के सामने 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द होने का सवाल उठाया, तो उसके जवाब में जयशंकर ने इसका जवाब उन्हें आतंकवाद का प्रवक्ता बता कर दिया। इस तरह देश में यह संदेश गया है कि वर्तमान भाजपा सरकार पाकिस्तान को उसकी जगह दिखाने के अपने मजबूत इरादे पर कायम है। बहरहाल, सवाल यह उठा है कि ऐसा ही इरादा जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री चिन गांग को क्यों नहीं दिखाया?

अप्रैल के आखिरी हफ्ते में एससीओ की ही बैठक में भाग लेने जब चीनी रक्षा मंत्री आए थे, तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनसे द्विपक्षीय वार्ता करने के बावजूद उनसे हाथ नहीं मिलाया। भारत में सोशल मीडिया पर उसके साथ ही राजनाथ सिंह के अन्य देशों के रक्षा मंत्रियों से हाथ मिलने की तस्वीरें वायरल हुईं। जाहिर है, उसमें एक संदेश छिपा था। सिंह ने चीनी रक्षा मंत्री को भारत यह रुख भी बताया था कि सीमा पर चीनी हालिया गतिविधियों ने दोनों देशों के बीच पहले हुए द्विपक्षीय समझौतों का आधार कमजोर कर दिया है। जबकि जयशंकर और चिन की हुई वार्ता के बाद भारत की तरफ से कोई बयान जारी नहीं हुआ। लेकिन चीन ने बयान जारी किया। उसमें रक्षा मंत्रियों की वार्ता के बाद कही गई बातों को लगभग दोहराया गया। उसका संदेश है कि सीमा पर सब ठीक है और दोनों देश अब संबंध मजबूत करने की तरफ बढ़ रहे हैं। यानी चीन भारत की उन चिंताओं को स्वीकार करने तक को तैयार नहीं है, जिन्हें राजनाथ सिंह ने भी जताया था। ऐसे भारत के बड़े जनमत की यह अपेक्षा वाजिब है कि जयशंकर को चीन को भी उसी मजबूती के साथ सार्वजनिक जवाब देना चाहिए था, जैसा उन्होंने पाकिस्तान के मामले में किया।

By NI Editorial

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