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भगदड़ में भी आगे!

साल 2000 से 2019 के बीच भगदड़ की जो घटनाएं हुईं, उनमें से लगभग 70 प्रतिशत भारत में हुईं। ये धार्मिक आयोजनों से संबंधित थीं। इनमें से बहुत-सी दुर्घटनाएं जल स्रोतों के किनारे हुईं।

एक और ऐसे इंडेक्स में भारत सबसे ऊपर आया है, जहां अपना नाम देखना कोई देश नहीं चाहेगा। वैज्ञानिकों ने साल 1900 के बाद से अब तक भगदड़ या भीड़भाड़ के कारण हुई घटनाओं का एक डेटाबेस तैयार किया है। इस डेटाबेस में 1900 से 2019 के बीच हुईं 281 उन घटनाओं को शामिल किया गया है, जिनमें या तो कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई या दस से ज्यादा लोग घायल हुए। आंकड़े दिखाते हैं कि भारत और पश्चिमी अफ्रीका भगदड़ की दुर्घटनाओं के सबसे बड़े केंद्र बनते जा रहे हैं। पिछले तीन दशक में इस तरह की घटनाएं घातक होने की संभावना लगातार बढ़ी है। अन्य खतरनाक इलाकों में दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया हैं। साल 2000 से 2019 के बीच दुनिया में जितने भी ऐसे हादसे हुए, उनमें से लगभग 70 प्रतिशत भारत में हुए और धार्मिक आयोजनों से संबंधित थे। इनमें से बहुत-सी दुर्घटनाएं नदी या पानी के अन्य स्रोत के किनारे हुईं। बड़ी संख्या में पुलों, नदी के किनारों और बस या ट्रेन स्टेशनों आदि पर हुए हैं।

इस शोध कार्य से संबंधित विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के आंकड़े देखकर समस्या वित्तीय संसाधनों की समस्या नजर आती है। भारत के अधिकारियों को पता है कि घातक हादसे हो रहे हैं और उन्हें पता है कि कुछ किया जाना चाहिए। लेकिन शायद उनके पास वैसे संसाधन या तकनीक उपलब्ध नहीं है, जैसी धनी देशों के पास है। संभवतः यह एक उदार नजरिया है। जो लोग भारत में मौजूद हैं, उन्हें संसाधनों की कमी से ज्यादा रवैये की लापरवाही नजर आएगी। बहरहाल, इस डेटाबेस से पता चलता है कि दुनिया भर में पिछले बीस साल में भीड़ के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ी है। 1990 से 1999 के बीच हर साल औसतन तीन ऐसी घटनाएं होती थीं जो 2010 से 2019 के बीच बढ़कर 12 प्रतिवर्ष हो गईं। जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर क्लाउडियो फेलिचियानी और ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के डॉ. मिलाद हागानी का यह शोध सेफ्टी साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस पर उचित ध्यान दिया जाए, आगे ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है।

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By NI Editorial

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