विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लुएचओ ने कोविड-19 की महामारी को समाप्त हुआ मान लिया है। उसने ऐलान किया है कि अब कोविड-19 वैश्विक आपातकाल यानी ग्लोबल इमरजेंसी नहीं है। इसका मतलब है कि यह समाप्त हो गया है या इसे एक सामान्य बीमारी की तरह लिया जाए, जो मानवता के लिए खतरा नहीं है। कोई तीन साल पहले 2020 के शुरू में कई महीनों की टालमटोल के बाद डब्लुएचओ ने कोरोना की महामारी को वैश्विक आपातकाल घोषित किया था। उसके बाद पूरी दुनिया इस बीमारी से पार पाने के लिए संघर्ष करती रही। कोरोना को वैश्विक आपातकाल घोषित करने के एक साल बाद जनवरी 2021 में जब इसका ग्लोबल पीक था तब दुनिया में एक हफ्ते में एक लाख मौतें हो रही थीं, जो मई के शुरू में कम होकर चार हजार रह गईं। पिछले पांच महीने में यानी इस साल कोरोना के केसेज में 90 फीसदी की कमी आई है, जिसके बाद लोगों की मुश्किलें कम हुई हैं और अस्पतालों पर से भी दबाव लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गया है। राजधानी दिल्ली और वित्तीय राजधानी मुंबई में चौथी लहर की आशंका देखते हुए कोविड वार्ड तैयार किए गए थे, लेकिन जिस तेजी से रोजाना के केसेज 10 हजार से ऊपर पहुंचे थे उसी तेजी से उनमें कमी आई और अब औसतन दो हजार के करीब केस रोज आ रहे हैं और जो मौतें हो रही हैं वह ऐसे लोगों की हो रही हैं, जो पहले से किसी दूसरी बीमारी से ग्रसित हैं।
पूरी दुनिया में कोरोना की स्थिति में सुधार आने के बाद डब्लुएचओ ने घोषित कर दिया कि यह अब वैश्विक आपातकाल नहीं है। लेकिन सवाल है कि पूरी दुनिया ने इससे क्या सबक लिया और आगे क्या होगा? क्या खुद डब्लुएचओ ने इससे कोई सबक लिया है? ध्यान रहे कोरोना महामारी की शुरुआत 2019 के अंत में हुई थी और इसलिए इसका नाम कोविड-19 रखा गया। ताइवान की सरकार ने नवंबर 2019 में आगाह किया था कि चीन से एक घातक वायरस निकला है, जो पूरी दुनिया को संकट में डाल सकता है। लेकिन डब्लुएचओ के अधिकारी कान में तेल डाल कर सोते रहे। उन्होंने इस पर ध्यान ही नहीं। चीन ने इस मामले को छिपाए रखा। उसने कोई सावधानी नहीं बरती और सारी दुनिया से कनेक्टेड रहा। चीन से दुनिया भर में उड़ानें जाती रहीं, जिससे कोरोना का वायरस दुनिया के कोने कोने में फैला। अगर डब्लुएचओ ने ताइवान की चेतावनी पर ध्यान दिया होता और चीन पर सख्ती करता तो 2019 के अंत में ही इसे दुनिया के दूसरे हिस्सों में फैलने से रोका जा सकता था।
लेकिन डब्लुएचओ ने 2020 के मार्च तक इसे अनदेखा किए रखा और तब तक सारी दुनिया में यह वायरस पहुंच गया। ध्यान रहे भारत में भी 30 जनवरी 2020 को जो पहला केस पकडा गया था वह चीन के वुहान से आए विमान के एक यात्री में ही मिला था। चीन को लेकर डब्लुएचओ की लापरवाही यही पर समाप्त नहीं होती है। कोरोना के सारी दुनिया में फैल जाने के बाद भी यह विश्व संस्था चीन की जांच कराने की सिर्फ बातें करती रही। डब्लुएचओ ने चीन की पूरी सख्ती और ईमानदारी से जांच नहीं कराई, जिससे निर्णायक रूप से यह पता चल सके कि यह वायरस प्राकृतिक था या लैब में तैयार किया गया था। दुनिया इस सवाल पर बंटी हुई है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि वुहान के वायरोलॉजी लैब से कोरोना का वायरस निकला था और सारी दुनिया में फैला। चीन भले इस बात से इनकार करता रहा है लेकिन धारणा यही बनी है। डब्लुएचओ ने जांच की टीम भी भेजी लेकिन उनके निष्कर्षों पर लोगों को यकीन नहीं है। सो, इसकी उत्पत्ति का निर्णायक रूप से पता नहीं चला, बड़ी चिंता की बात है।
अगर कोरोना का वायरस प्राकृतिक रूप से बना था और किसी पशु से निकल कर इंसानों में फैला तो उसकी चिंताएं अलग हैं और उस स्थिति में बचाव के उपाय भी अलग करने होंगे। लेकिन अगर यह मैनमेड था यानी लैब में बना था, तब कि चिंताएं बिल्कुल अलग हो जाएंगी। अगर लैब में इस तरह का घातक वायरस तैयार किया जा रहा है तो इसका मतलब है कि पूरी मानवता का भविष्य किसी एक सनकी व्यक्ति के हाथ में है, जो जब चाहे तक ऐसे वायरस लीक करके दुनिया को संकट में डाल सकता है। मानवीय या तकनीकी भूल से भी अगर ऐसा वायरस फैल जाए तो पूरी दुनिया पर खतरा हो जाएगा। यह नए तरह के जैविक युद्ध की आहट है। दूसरी ओर अगर यह वायरस प्राकृतिक रूप से बना था तब इंसान और प्रकृति के संघर्ष को नए तरह से देखने की जरूरत पैदा होती है। ध्यान रहे पिछले कुछ समय से शहरीकरण की होड़ में जंगल काटे जा रहे हैं या शहर जंगल की सीमा में अंदर घुसते जा रहे हैं। इससे इंसान और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। इसी तरह विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी वन्य जीव समाप्त हो रहे हैं और इस वजह से अलग अलग प्रजातियों के बीच वायरस बनने और फैलने की आशंका बढ़ रही है। सो, यह जरूरी है कि डब्लुएचओ दुनिया भर के देशों को आगाह करे और उनके साथ मिल कर भविष्य की योजना बनाए ताकि से वायरस को बनने, बनाने और फैलने से रोका जाए।
तीन साल के इस संकट का एक सबक यह भी है कि दुनिया के सभी देशों को, चाहे वह सबसे विकसित अमेरिका हो या भारत जैसा विकासशील देश हो, सबको स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर बनाने के लिए काम करना होगा। यह हकीकत सारी दुनिया के सामने है कि अमेरिका और यूरोप में भी स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह से चरमरा गया था। विकसित और सभ्य लोकतांत्रिक देशों ने लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया था। भारत जैसे विकासशील या पिछड़े देशों में तो सब कुछ भगवान भरोसे था। नागरिक पूरी तरह से असहाय और लाचार थे। लोगों को अस्पताल में बेड्स नहीं मिल रहे थे, लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे थे और मरने के बाद सम्मान के साथ अंतिम संस्कार भी नहीं हो पा रहा था। यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कोविड-19 न तो पहला वायरस था और न आखिरी। इबोला से लेकर सार्स तक कितने वायरस पहले आए और उनसे भी बेशकीमती जिंदगियों का नुकसान हुआ। इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता के साथ बेहतर बनाने का काम होना चाहिए।
डब्लुएचओ ने मार्च 2020 में कोविड-19 को वैश्विक आपातकाल घोषित किया था और तब लग रहा था कि दुनिया को लंबे समय तक इस संकट से जूझना होगा। तब किसी ने कल्पना नहीं की थी कि छह महीने के अंदर दुनिया के वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन तैयार कर लेंगे और वायरस को रोकने का प्रयास शुरू हो जाएगा। हालांकि इतने कम समय में वैक्सीन तैयार करने के लिए नियमों और तरीकों में काफी समझौता किया गया लेकिन वैक्सीन आई तो उससे वायरस नियंत्रित हुआ। वायरस से तो लोगों को मुक्ति मिल गई है लेकिन उसके बाद स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की नई जटिलताएं पैदा हो गई हैं। पूरी दुनिया में अचानक हार्ट अटैक से होने वाली मौतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। लंग्स से जुड़ी बीमारियां भी आम हो गई हैं। यह वायरस का असर भी हो सकता है और इलाज का साइड इफेक्ट भी हो सकता है। इस पहलू को भी समझने और ठीक करने की जरूरत है।