भारतीय जनता पार्टी ने ‘कांग्रेस फाइल्स’ नाम से दो एपिसोड की एक सीरिज बनाई है, जिसमें कांग्रेस के भ्रष्टाचार के बारे में बताया गया है। यह सीरिज देखते हुए जो बात सबसे पहले दिमाग मे आई वह ये है कि इस देश में राजनीति और गवर्नेंस दोनों की अवधारणा सिर के बल खड़ी हो गई है यानी उलटी हो गई है। आमतौर पर सरकार के ऊपर विपक्षी पार्टियां भ्रष्टाचार के आरोप लगाती हैं और जांच की मांग करती हैं। यहां उलटा हो रहा है। अब सरकार ही विपक्ष के ऊपर आरोप लगा रही है और पता नहीं क्यों जांच नहीं करा रही है, जबकि सारी एजेंसियां उसके पास हैं और एजेंसियां कहीं न कहीं जांच भी कर रही हैं। सवाल है कि इस उलटबांसी का क्या मतलब है? और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या आम आदमी को सरकार की ओर से विपक्ष पर लगाए गए आरोपों पर भरोसा करना चाहिए?
भाजपा की ओर से बनाई गई ‘कांग्रेस फाइल्स’ की पहली कड़ी में चार लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के घोटाले के बारे में बताया गया है। इसमें एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए का संचार घोटाला शामिल है और कई लाख करोड़ रुपए का कोयला घोटाला भी शामिल है। इन दो घोटालों की ही रकम चार लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो जाती है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में यानी 2009 से 2014 के बीच हुई इन दो कथित घोटालों की बड़ी चर्चा हुई थी। इनके खिलाफ ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का जन्म हुआ था और अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का आंदोलन हुआ था। कांग्रेस के बुरी तरह से हार कर सत्ता से बाहर होने और नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने का सबसे बड़ा कारण ये दो घोटाले बने थे। इन दो के अलावा उस समय भाजपा ने आकाश से लेकर पाताल तक और धरती से लेकर हवा और अंतरिक्ष तक में घोटाले बताए थे।
बहरहाल, जब नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने तो क्या सबसे पहले यह नहीं होना चाहिए था कि वे दो सबसे बड़े घोटालों- संचार और कोयला, की जांच कराते और दोषियों को सजा दिलाते? क्या किसी को पता है कि इन दोनों मामलों में क्या हुआ है? जो लोग ‘कांग्रेस फाइल्स’ के वीडियो शेयर कर रहे हैं उनको भी पता नहीं होगा कि संचार और कोयला घोटाले में क्या हुआ है। हकीकत यह है कि संचार घोटाले के तमाम आरोपी निचली अदालत से बरी हो गए हैं। सीबीआई ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की है लेकिन ए राजा से लेकर कनिमोझी तक सब न सिर्फ जेल से बाहर हैं, बल्कि सांसद भी हैं। ए राजा तो लोकसभा में पीठासीन पदाधिकारियों के पैनल में भी हैं और सदन का संचालन भी करते हैं। इसी तरह कोयला घोटाले में कोई भी राजनेता जेल में नहीं है। तत्कालीन कोयला सचिव एचसी गुप्ता को छोड़ कर किसी को सजा नहीं हुई है। अगर किसी की स्मृति अच्छी हो तो याद कर सकता है कि कैसे 1989 के लोकसभा चुनाव में वीपी सिंह नाटकीय अंदाज में कागज का एक पुर्जा निकालते थे और सभाओं में लोगों को दिखा कर कहते थे कि इस पर उन लोगों के नाम हैं, जिनको बोफोर्स में रिश्वत मिली है और उनके खाते का नंबर है। सरकार बनते ही घोटालेबाज जेल में होंगे और पैसे उनके खाते से निकाले जाएंगे। वीपी सिंह तो प्रधानमंत्री हो गए लेकिन दोषी और उनके खातों का पता लगाने में एजेंसियों को 20 साल लग गए। वही कहानी संचार और कोयला घोटाले में दोहराई जा रही है।
इसी तरह ‘कांग्रेस फाइल्स’ की दूसरी कड़ी में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के कथित घोटाले का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि कैसे एक पेंटिंग जबरदस्ती एक कारोबारी को दो करोड़ रुपए में बेची गई और उस पैसे का इस्तेमाल सोनिया गांधी के इलाज में किया गया। एक अलग घटनाक्रम में यस बैंक के पूर्व चेयरमैन राणा कपूर ने कहा था कि उनको पेंटिग खरीदने के लिए मजबूर किया गया था। ध्यान रहे पेंटिंग एमएफ हुसैन की है और उसकी दो करोड़ रुपए कीमत कोई ज्यादा नहीं है। इसके बावजूद अगर इसमें कोई आपराधिकता है या ‘क्विड प्रो को’ है यानी पेंटिंग खरीदने के बदले में राणा कपूर को कोई मदद पहुंचाई गई थी तो उसकी जांच करके सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को सजा क्यों नहीं दी जा रही है? हकीकत यह है कि इस मामले में अभी तक कोई एफआईआर भी दर्ज नहीं है।
ऐसा नही है कि इतने ही मामले हैं, जिनमें सरकार की ओर से आरोप लगाए गए हैं और न कोई सबूत पेश किया गया है और न कोई कार्रवाई हुई है। ऐसे अनगिनत मामले हैं। जैसे फरवरी के महीने में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मेघालय में प्रचार करते हुए कहा कि कोनरेड संगमा की सरकार देश की सबसे भ्रष्ट सरकार है। अगर केंद्र सरकार का नंबर दो मंत्री यह बात कह रहा है तो उसके पास जरूर कोई सबूत होंगे। लेकिन उन सबूतों के आधार पर कोनरेड संगमा के खिलाफ मुकदमा करने और उन पर कार्रवाई करने की बजाय दो मार्च को आए नतीजों के बाद भाजपा ने उनके साथ फिर सरकार बना ली। इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक में चुनाव प्रचार करने गए तो उन्होंने कहा कि कर्नाटक सरकार कांग्रेस के लिए हमेशा एटीएम की तरह रही है। उन्होंने पहले भी कर्नाटक से दिल्ली पैसा भेजे जाने का आरोप लगाया था। तो क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि केंद्र सरकार की एजेंसियां उस एटीएम का पता लगातीं, दिल्ली पैसा भेजे जाने की छानबीन करतीं और दोषी नेताओं पर कार्रवाई करतीं? लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
तभी सवाल है कि ऐसे आरोपों का क्या मतलब है? भ्रष्टाचार पर इस तरह की जुबानी जमाखर्च से क्या हासिल होगा? अगर इतने बड़े घोटाले करने वालों पर कार्रवाई नहीं होगी तो क्या उससे भ्रष्टाचारियों के हौसले नहीं बढ़ेंगे? कायदे से सरकार को आरोप लगाने की बजाय कार्रवाई करनी चाहिए। संचार घोटाला, कोयला घोटाला, आदर्श घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, देवास घोटाला से लेकर कोनरेड संगमा और कर्नाटक कांग्रेस के कथित घोटाले की पूरी सख्ती से जांच करानी चाहिए और दोषियों को सजा दिलानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो यही माना जाएगा कि भाजपा और उसके शीर्ष नेताओं के लिए भ्रष्टाचार से लड़ना कोई प्रतिबद्धता का मामला नहीं है, बल्कि चुनावी राजनीति का मामला है। वह सिर्फ जुबानी जमाखर्च करके कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को बदनाम करती है और वोट लेती है। इसका यह भी मतलब होगा कि या तो घोटाला नहीं हुआ है और अगर हुआ है तो असली दोषियों को सजा दिलाने की भाजपा की मंशा नहीं है।