लडखडाता, दरकता हुआ म्यांमार, भारत के लिए सिरदर्द बन रहा है। पिछले ही हफ्ते जारी लन्दन के एक नीति विश्लेषण समूह चैथम हाउस की रपट में कहा गया है कि “कुछ ही समय बाद भारत के युद्धपोतों की आवाजाही पर म्यांमार की सेना की नज़र रहेगी।” यों सन् 1990 के दशक से ही इस आशय की रपटें मिलती रही हैं कि म्यांमार ने चीन को कोको द्वीप समूह पर हवा से गुजरते रेडियो संदेशों को पढ़ने के लिए आवश्यक सुविधाएं विकसित करने की अनुमति दी है। परंतु इस बार ये रपटें गंभीर चिंता का विषय हैं।
उपग्रह से लिए गए चित्रों से पता चलता है कि म्यांमार के कोको द्वीप समूह पर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहा है जिसका उद्धेश्य नजदीकी अंडमान में भारत की सैन्य गतिविधियों की निगरानी के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना है। कोको द्वीप समूह, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के उत्तरी छोर से केवल 55 किलोमीटर दूर है।
दो साल पहले म्यांमार की सेना आंग सांन सू की के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार का तख्ता पलटकर सत्ता पर काबिज हो गई थी। जनरल मिन आंग ल्योन तानाशाह बन बैठे और उन्होंने भय तथा आतंक का जो राज कायम किया है वह सारी दुनिया के लिए चिंता का सबब बन गया है, विशेषकर भारत के लिए (यद्यपि भारत के म्यांमार से ‘अच्छे रिश्ते’ कायम हैं)। प्राप्त खबरों से संकेत मिलता है कि म्यांमार में लोगों को उसी प्रकार के हथियारों से मारा जा रहा है जिनका प्रयोग यूक्रेन में हो रहा है। सैन्य तानाशाह हथियारों के लिए रूस और चीन पर निर्भर हैं। इन हथियारों का प्रयोग जनप्रतिरोध को कुचलने के लिए किया जाता है। सबसे ताज़ा घटना मंगलवार सुबह की है जब सेंयांग इलाके में एक गांव में एक कार्यक्रम के दौरान हवाईजहाज़ से बम गिराए गए, इस क्रूर हमले में करीब सौ लोग मारे गए। इनमें कई महिलाएं और बच्चे थे। यह कार्यक्रम स्थानीय पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ), जो कि सैनिक शासन के विरूद्ध संघर्ष कर रहे वालंटियर्स का समूह है, द्वारा स्थापित प्रशासनिक भवन के उद्घाटन का जश्न मनाने के लिए आयोजित किया गया था।
म्यांमार में जो कुछ हो रहा है उस पर दुनिया की प्रतिक्रिया वैसी नहीं है जैसी होनी चाहिए। कई देश सैनिक शासन और उसके जुल्मों की आलोचना तो कर रहे हैं किंतु जुबानी जमा खर्च से आगे बढ़ने को तैयार नहीं हैं। इनमें भारत भी शामिल है। भयग्रस्त लोग म्यांमार छोड़कर भाग रहे हैं और सीमा पार भारत के मिजोरम और मणिपुर में घुस रहे हैं। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर में म्यांमार के 23 नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है। राज्य में 129 म्यांमारी नागरिक पहले से ही हिरासत शिविरों में हैं। परंतु अब तक भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से यह नहीं बताया है कि म्यांमार की सीमा से सटे भारतीय राज्यों में उस देश से कितने शरणार्थी आ चुके हैं।
म्यांमार पहले से ही बंटा हुआ और बिखरा हुआ देश था। अब वह अफगानिस्तान बनने की राह पर है। अपनी मूलभूत आर्थिक आवश्यकताओं के लिए चीन पर पूर्ण निर्भरता के चलते बीजिंग जब चाहे तब म्यांमार के सैनिक शासकों की बांह मरोड़ सकता है। म्यांमार को चीन और रूस से विमान मिल रहे हैं। इसलिए वहां का सैन्य शासन सार्वजनिक रूप से इन देशों के प्रति अपनी अहसानमंदी और समर्थन व्यक्त कर चुका है।
जहां तक कोको द्वीप समूह का सवाल है, ऐसी खबरें हैं कि भारत सरकार ने म्यांमार को सेटेलाईट से ली गई वे तस्वीरें दिखाई हैं जिनमें चीनी कर्मी रेडियो सिग्नलों को पकड़ने की प्रणाली के निर्माण में जुटे हुए हैं। परंतु मिलिट्री जुंटा ने सभी आरोपों को गलत बताया है। भारत के चीन के साथ पहले से ही संबंध तनावपूर्ण हैं। क्वाड देशों के साथ भारत के बढ़ते सहयोग के चलते भी चीन हिंद महासागर में अपनी गुप्तचर प्रणाली को और सशक्त करना चाहेगा।
चैथम हाउस की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि “अगर कोको द्वीप समूह में म्यांमार का सैन्य ठिकाना पूरी तरह से स्थापित हो जाता है तो अंडमान-निकोबार और भारत की मुख्य भूमि के बीच होने वाले सारे सैन्य वार्तालाप और हवाई जहाजों, युद्धपोतों आदि की आवाजाही पर नजर रखी जा सकेगी। जो जानकारियां इकट्ठी होंगीं वे या तो गुप्तचरों के जरिए अथवा म्यांमार की सरकार की सहमति से शंघाई पहुंच सकती हैं”। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)