आखिर ब्रिटेन में सरकारों ने ऐसी क्या नीतियां या रास्ते अपनाए, जिससे वहां हड़तालों का अटूट दौर चलने और अधिक से अधिक लोगों के फूड बैंकों पर निर्भर होने की नौबत आई, यह विचारणीय प्रश्न है।
यह सुनना आश्चर्यजनक लगता है कि जिस देश के साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था, वहां के लोग आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे हैँ। आखिर ब्रिटेन में सरकारों ने ऐसी क्या नीतियां या रास्ते अपनाए, जिससे वहां हड़तालों का अटूट दौर चलने और अधिक से अधिक लोगों के फूड बैंकों पर निर्भर होने की नौबत आई, यह विचारणीय प्रश्न है। दरअसल, ब्रेग्जिट के बाद चुनौतियां वैसे ही बढ़ती चली गई थीं, लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण बने हालात ने इस देश को बदहाली की एक तस्वीर बना दिया है। गौरतलब है कि फूड बैंक लोगों को मुफ्त भोजन बांटते हैँ। एक ताजा रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि गुजरे महीनों में फूड बैंक की सेवा लेने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। कमरतोड़ महंगाई के कारण जो लोग इन बैंकों पर निर्भर हो गए हैं, उनमें पेंशनधारियों के वर्तमान स्वास्थ्य कर्मी, शिक्षक आदि शामिल हैँ। यानी ऐसे लोग भी मुफ्त भोजन की तलाश में हैं, जो अभी नौकरी में हैं। ताजा शोध रिपोर्ट इंडिपेन्टडेंट फूड एड नेटवर्क (आईफैन) नाम की संस्था जारी किया है। उसने अपनी रिपोर्ट अखबार ऑब्जर्वर के साथ साझा की।
अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दिसंबर और जनवरी में फूड बैंकों पर निर्भर लोगों की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिला। पिछले हफ्ते ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के जारी आंकड़ों के मुताबिक हालांकि अब मुद्रास्फीति दर कुछ घटी है, लेकिन महंगाई के कारण पैदा हुए संकट से लोगों को कोई राहत नहीं मिली है। खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर 16.7 प्रतिशत बनी हुई है। यह साल भर की तुलना में 130 प्रतिशत ज्यादा है। पिछले अक्टूबर में ब्रिटेन के बजट उत्तरदायित्व कार्यालय ने अनुमान लगाया था कि 2022-23 में आम लोगों की आय में 4.3 की गिरावट आएगी। 1956 के बाद ब्रिटेन में आम लोगों की वास्तविक आमदनी में पहली बार ऐसी गिरावट देखने को मिली है। नतीजतन ऐसे लोग भी फूड बैंकों पर निर्भर होने लगे हैँ। जिन्होंने पहले कभी इस तरह की मदद नहीं ली थी। एक तरफ ऐसे हालात हैं, दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार लाचार हाल में नजर आ रही है।